हम अगर चाहें कि किसी चीज की हद बना दें तो उसको तोड़ने वाले बहुत मिल जाते हैं। एक हकीकत कही थी मैंने विडम्बना ( http://kriwija.blogspot.in/2014/07/blog-post.html ) लेकिन उसके आगे की हदें आज देखी तो लगा कि कोई हद नहीं इंसान के खून को सफेद होने की।
कल रात उनकी हालत बिगड़ी और उनको दूसरे नर्सिंग होम में शिफ्ट कर दिया गया और उनको वेंटीलेटर पर रखा गया। मेरे घर फ़ोन आया कि ऐसा हुआ है और उनको यहाँ लेकर आये हैं। मैं तो नहीं पतिदेव वहां गए। करीब ३ घंटे वह वेंटीलेटर रहीं और उसके बाद चिर निद्रा में लीन हो गयीं. वह रात ९ बजे नहीं रहीं।
इन्होने उनके बेटों से कहा कि घर ले चलने के लिए कार्यवाही करवाऊं। वे बोले - भाई साहब अभी तो पूरे पेमेंट पैसे साथ में नहीं है।सोचते हैं कल सुबह यहाँ से ले जाते हैं।
इन्होने कहा - 'यहाँ पेमेंट की चिंता मत करो। मैं यहाँ कह देता हूँ , पेमेंट दो दिन बाद भी कर सकते हो।'
भाई साहब अब इतनी रात को कहाँ ले जाएँ ? यहीं कह दीजिये सुबह ले जाएंगे। घर में ले जाकर और लोग भी डिस्टर्ब होंगे। वैसे भी हम लोग हर बात से वाकिफ तो हैं ही। सब चले आये। उतनी रात को किसी को खबर भी नहीं दी। उनके और चाचा चाची और कजिन जिन्हें आना था सुबह खबर दी गयी। अब जब कुछ लोग आ जाएँ तो पार्थिव शरीर नर्सिंग होम से लाया जाय। आखिर दिन के ग्यारह बजे वहां से उनके पार्थिव शरीर को लाया गया। कुछ लोग वहां पहुंच गए थे। उनके पिता के परिचित भी आने लगे थे। हम भी उन लोगों से सिर्फ उनके पापा और माँ के कारण ही जुड़े हैं।
सोच ये रहे होंगे कि क्या कोई अपने परिजन का पार्थिव शरीर बिना किसी कारण के नर्सिंग होम में क्यों रखेगा? अगर इस जीवन की कटु सत्यता को हम देख पाते हैं तो ये है कि धन का मद ऐसा होता है कि वह अपने बराबर किसी को नहीं समझता। बेटे भी रइस बाप के बेटे लेकिन उनकी बहुएं तो अपने आगे किसी को कुछ नहीं समझतीं तो न उन्हें किसी के यहाँ जाना आना और न किसी को उनके यहाँ। जो स्वर्ग सिधार गयीं - हमेशा सबसे मिलनसार रहीं क्योंकि उन्होंने इस स्थिति में आने से पहले एक सामान्य जीवन जिया था और वे जमीन से जुडी रहीं। जब तक उनसे संभव था वे दोनों ही सबके सुख और दुःख में शामिल हुए । अगर वे पार्थिव शरीर को घर ले आते तो सारी रात उसके पास बैठता कौन ? किसी सुख - दुःख में शामिल नहीं रहे तो कोई और तो आने से रहा। खबर मिली भी तो सुबह ही आएंगे लोग। बस इसी लिए शव घर बाद में लाया गया उनके कफन दफन का सामान पहले आ चूका था।
सोचती हूँ , उन्होंने कुछ किया था तो उनके गाँव से और दूसरे भाई लोग आ गए लेकिन जिन चाचा और चाची को बहुएं पहचानती नहीं है , गाँव का कभी मुंह नहीं देखा तो सब के सब तुरंत ही वापस हो गए। क्या चार कन्धों के बिना भी कोई जा सकता है। क्या वे उस पैसे से पार्थिव शरीर के गिर्द बैठने वाले चार लोग खरीद पाएंगे ? क्या किराये के कंधे भी मिल सकेंगे ? अगर नहीं तो फिर कल उनका क्या होगा ?
कल रात उनकी हालत बिगड़ी और उनको दूसरे नर्सिंग होम में शिफ्ट कर दिया गया और उनको वेंटीलेटर पर रखा गया। मेरे घर फ़ोन आया कि ऐसा हुआ है और उनको यहाँ लेकर आये हैं। मैं तो नहीं पतिदेव वहां गए। करीब ३ घंटे वह वेंटीलेटर रहीं और उसके बाद चिर निद्रा में लीन हो गयीं. वह रात ९ बजे नहीं रहीं।
इन्होने उनके बेटों से कहा कि घर ले चलने के लिए कार्यवाही करवाऊं। वे बोले - भाई साहब अभी तो पूरे पेमेंट पैसे साथ में नहीं है।सोचते हैं कल सुबह यहाँ से ले जाते हैं।
इन्होने कहा - 'यहाँ पेमेंट की चिंता मत करो। मैं यहाँ कह देता हूँ , पेमेंट दो दिन बाद भी कर सकते हो।'
भाई साहब अब इतनी रात को कहाँ ले जाएँ ? यहीं कह दीजिये सुबह ले जाएंगे। घर में ले जाकर और लोग भी डिस्टर्ब होंगे। वैसे भी हम लोग हर बात से वाकिफ तो हैं ही। सब चले आये। उतनी रात को किसी को खबर भी नहीं दी। उनके और चाचा चाची और कजिन जिन्हें आना था सुबह खबर दी गयी। अब जब कुछ लोग आ जाएँ तो पार्थिव शरीर नर्सिंग होम से लाया जाय। आखिर दिन के ग्यारह बजे वहां से उनके पार्थिव शरीर को लाया गया। कुछ लोग वहां पहुंच गए थे। उनके पिता के परिचित भी आने लगे थे। हम भी उन लोगों से सिर्फ उनके पापा और माँ के कारण ही जुड़े हैं।
सोच ये रहे होंगे कि क्या कोई अपने परिजन का पार्थिव शरीर बिना किसी कारण के नर्सिंग होम में क्यों रखेगा? अगर इस जीवन की कटु सत्यता को हम देख पाते हैं तो ये है कि धन का मद ऐसा होता है कि वह अपने बराबर किसी को नहीं समझता। बेटे भी रइस बाप के बेटे लेकिन उनकी बहुएं तो अपने आगे किसी को कुछ नहीं समझतीं तो न उन्हें किसी के यहाँ जाना आना और न किसी को उनके यहाँ। जो स्वर्ग सिधार गयीं - हमेशा सबसे मिलनसार रहीं क्योंकि उन्होंने इस स्थिति में आने से पहले एक सामान्य जीवन जिया था और वे जमीन से जुडी रहीं। जब तक उनसे संभव था वे दोनों ही सबके सुख और दुःख में शामिल हुए । अगर वे पार्थिव शरीर को घर ले आते तो सारी रात उसके पास बैठता कौन ? किसी सुख - दुःख में शामिल नहीं रहे तो कोई और तो आने से रहा। खबर मिली भी तो सुबह ही आएंगे लोग। बस इसी लिए शव घर बाद में लाया गया उनके कफन दफन का सामान पहले आ चूका था।
सोचती हूँ , उन्होंने कुछ किया था तो उनके गाँव से और दूसरे भाई लोग आ गए लेकिन जिन चाचा और चाची को बहुएं पहचानती नहीं है , गाँव का कभी मुंह नहीं देखा तो सब के सब तुरंत ही वापस हो गए। क्या चार कन्धों के बिना भी कोई जा सकता है। क्या वे उस पैसे से पार्थिव शरीर के गिर्द बैठने वाले चार लोग खरीद पाएंगे ? क्या किराये के कंधे भी मिल सकेंगे ? अगर नहीं तो फिर कल उनका क्या होगा ?
3 टिप्पणियां:
आपकी इस रचना का लिंक कल यानी शनिवार दिनांक - 19 . 7 . 2014 को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !
किसी सुख - दुःख में शामिल नहीं रहे तो कोई और तो आने से रहा।
किसी सुख - दुःख में शामिल नहीं रहे तो कोई और तो आने से रहा।
नगरीकरण के ये दुष्परिणाम आज नही तो कल सभी को भीगने है। --
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