आई आई टी सैक बस स्टॉप |
एक मध्यम वर्गीय इंसान के लिए बस स्टॉप एक ऐसी जगह है , जहाँ से सब चल देते है गंतव्य को और फिर वापस अपने घर को। हाँ आने और जाने के ये बस स्टॉप अलग अलग होते हैं और जाने के समय का मूड और लौटने के समय का मूड भी अलग अलग होता है। ऑफिस या स्कूल या कॉलेज कहीं भी जाना हो। जाते समय बस एक मन केंद्रित होता है कि जल्दी से पहुँच जाय। कल का कुछ काम बाकी है उसको पूरा कर लेंगे - आज के लेक्चर पर कुछ खास देख लेंगे। प्रेजेंटेशन है तो कुछ और खोज कर उसमें शामिल कर लेंगे.
यही बस स्टॉप नए नए रिश्तों के गढ़ने का एक स्थान भी बन जाता है। हम एक दूसरे को अच्छी तरह से जानने लगते हैं। घर की , बाहर की , रिश्तों की और बच्चों की सारी बातें शेयर होने लगती हैं। अब जब कि मैं बस स्टॉप छोड़ चुकी हूँ लेकिन फिर मन हुआ कि ३ साल बाद फिर बस स्टॉप से बस में चढ़ कर आया जाय कितने लोग अभी तक हैं कितने कहीं और चले गए।
मैं आई आई टी कभी बस से गयी नहीं क्योंकि बस बहुत जल्दी जाती है और मेरे घर के रुट पर कोई बस आती ही नहीं इसलिए मैंने हमेशा जाने के लिए खुद का साधन चुना और लौटने में स्टाफ बस लेती रही क्योंकि वहां से लौटने समय तो निश्चित होता था। दिन में एक फ्रेंड के घर गयी थी , उनके पतिदेव ने कहा कि वो गाड़ी से छोड़ देते हैं मैंने मना कर दिया। सोचा बहुत दिन बाद फिर एक बार बस से जाते हैं और वह भी समय से पहले बस स्टॉप पहुंचा जाय। बस स्टॉप की ओर बढ़ते बढ़ते कितने साथी मिलने लगे --
- 'अरे मैडम आज कहाँ से दर्शन हो गए ?'
-' मैडम जी कैसे आप बिलकुल से गायब हो गयीं ?'
-'आंटी हम आपको बहुत मिस करते हैं। '
-'आपको पता है आपके डिपार्टमेंट के ऑफिस में जो रजनी थी न , जिसका बेटा आपकी लैब में था , अचानक नहीं रही। '
-मिसेज बहरानी भी ऐसे ही अचानक नहीं रहीं। '
मुझे साथ आने वाली सभी वर्ग की महिलायें , स्टूडेंट्स , रिसर्च से जुड़े लोग सब से एक लगाव था। जब कि उनमें से मेरे साथ काम करे वाला कोई भी नहीं था। इन तीन सालों में किसी के बच्चे का सिलेक्शन हो चूका था , किसी की पढाई पूरी हो चुकी थी और किसी की शादी हो चुकी थी। जिनके बच्चे छोटे थे वे स्कूल जाने लगे थे। सबके डिटेल्स ले नहीं सकती थी। फिर भी कुछ कहानियां बन चुकी थी और जिनके बारे में शुरू से जुडी थी , सुनकर दुःख हुआ। वे कहानियां जो बस स्टॉप से जन्मी हो - सिलसिला सा बना और फिर उस सिलसिले को आगे ले चलने का मन हो रहा है। कुछ नाम , कुछ जीवन और कुछ लोग जिन्हें कभी किसी ने तवज्जो दी ही नहीं कुछ तो ऐसा था जो लिखा जाय। कुछ नाम जिनके जीवन के संघर्ष , झंझावातों से झूझते हुए अपनी कश्ती खींचते हुए लोगों की एक तस्वीर , एक झलक प्रस्तुत करने का मन हुआ सो आगे उनके बारे में लिखना है जो यथार्थ है और कटु भी। फिर मिलते हैं इसी बस स्टॉप पर ……………\\
5 टिप्पणियां:
जी हां, ज़रूर, इंतज़ार है आप की अगली पोस्टों का.......आपका लिखा ब्लॉग परिचय ही बहुत पसंद आया।
जी हां, ज़रूर, इंतज़ार है आप की अगली पोस्टों का.......आपका लिखा ब्लॉग परिचय ही बहुत पसंद आया।
सच जिंदगी में जाने कितने ही ऐसे ही भूले बिसरे मोड़ आते हैं जो कभी भूले नहीं भूलते हैं हम ..
बस स्टॉप की यादों में हम भी खो गए ..
कितना कुछ बदल जाता है एक अंतराल बाद ....
निश्चित ही किस्सा ए बस स्टॉप की ऑंखें नम कर देंगी कुछ ख़ुशी भर देंगे ...
लौट कर देखे तो स्थिर हुए रास्तों पर बहुत कुछ अस्थिर होता है , जीवन यात्रा की मानिंद !
इन्तजार रहेगा अन्य प्रविष्टियों का !
ज़िंदगी के कितने हसीन पल, कितनी यादें आज भी रुकी हुई हैं बस स्टॉप पर..अगली कड़ी का इंतजार रहेगा..
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