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सोमवार, 31 दिसंबर 2012

कोई लौटा दे मुझे बीते हुए दिन ...........

                              नववर्ष की पूर्व संध्या पर आज जब हम लोग अकेले अकेले बैठे टीवी देख  हैं और फिर नींद आने पर सो जायेंगे। कोई जरूरी नहीं कि हम 12:00 तक जागने की कोशिश करें हीं . बच्चों को भी ये बात पता है कि हम लोग बहुत देर तक जाग कर इंतजार नहीं करेंगे इसलिए वे भी सुबह ही विश करते हैं। ये रूटीन वर्षों से चल रहा है जब से बच्चों ने पढाई के लिए घर छोड़ा, खासतौर पर जब सबसे छोटी बेटी मुंबई गयी। कभी कभी भरे मन से ये पंक्तियाँ निकल ही जाती हैं कि "कोई लौटा दे मुझे बीते हुए दिन ........" 
             आज से 12 साल पीछे चलते हैं तो लगता है कि हम कभी वह दिन भी नए वर्ष पर जी रहे थे . इन्हीं को तो यादें कहते हैं और यादें सिर्फ मन और मष्तिष्क में ही संचित होने के लिए होती हैं। यही हमारी धरोहर हैं और बच्चों को भी याद आते हैं वे दिन।  
                उस समय हमारे घर में एक टीवी था और सब वही बैठ कर नए वर्ष पर आने वाले प्रोग्राम को देखा करते थे। हम लोगों ने बच्चों की पढाई के कारण डिश नहीं लगवाई थी . सिर्फ नेशनल टीवी पर आने वाले प्रोग्राम देखा करते थे। हमारे संयुक्त परिवार में 5 बेटियां हैं ( 3 हमारे जेठ जी की और दो हमारी ) . नए वर्ष की पूर्व संध्या पर सब लोग टीवी रूम में फोल्डिंग पर गद्दे बिछा कर रजाई रख कर बैठ जाते , सर्दी के कारण  सोफे या कुर्सी पर बैठने का कोई सवाल ही नहीं उठता था। उस समय खाने के लिए करारी करारी मूंगफली बीच में रखी होती और गजक होती , प्रोग्राम के देखते देखते खाने का प्रोग्राम चलता रहता और प्रोग्राम पर कमेन्ट .  शांति का तो सवाल ही नहीं उठता था। 12:00 बजते ही सबको गाजर का हलुआ जो पहले से न्यू इयर विश करने पर देने के लिए रखा जाता था। नए साल का मीठा खाकर स्वागत करने केलिए और बस उसके बाद सब अपने अपने बिस्तर में पहुँच जाते .

हमारी पाँचों बेटियां बड़ी की शादी के अवसर पर 

                   तब न मोबाइल और न  ही नेट का इतना अधिक प्रचलन था की रात में ही लोग विश करना शुरू कर देते , इसलिए उसके बाद सोने का ही प्रोग्राम होता था। आज जब रात में अकेले टीवी देखते हैं या फिर सुबह बच्चे विश करते हैं तो सिर्फ हम ही नहीं बल्कि बच्चे भी उन दिनों को याद करके दुखी हो लेते हैं क्योंकि अब पांच बेटियों में सबसे बड़ी बैंगलोर, फिर दूसरी नॉएडा , तीसरी पुर्तगाल , चौथी दिल्ली और पांचवी मुंबई में होती हैं। फिर पाँचों इस दिन कभी इकट्ठी हो पाएंगी ये सिर्फ हम सोच सकते हैं।

शनिवार, 1 दिसंबर 2012

कर्म प्रधान विश्व ........!

                 कर्म प्रधान विश्व रचि राखा  , जो जस करिय सो तस फल चाखा .

          ये तुलसी दास की पंक्तियाँ कालातीत  चुकी हैं लेकिन मैं आज भी इनमें विश्वास करती हूँ . वैसे तो कलयुग में रामायण और गीता के मूल्यों को चुनौती देने वाले वाकये जीवन में बहुत देखे हैं लेकिन अपने विश्वास को कभी डिगने नहीं दिया है। बस कर्म किया है , उसके बाद क्या होगा ? ये सोचने की जरूरत नहीं समझी और यही कारण  है कि  मैं अपने जीवन में सिर्फ और सिर्फ आज में जीती रही हूँ। किसके साथ क्या किया? उसको याद करने की जरूरत नहीं समझी लेकिन न जीवन में किसी का बुरा चाहां और न किया। शायद यही कारण रहा हो कि  मैं आज इस पोस्ट को लिखने के लिए आप सबके समक्ष हूँ। 

                        बात पिछले इतवार की है , मैं बहुत दिनों बाद अपनी दोनों बेटियों के साथ घर में थी और मेरे साथ मेरी भतीजी भी थी। मैं किचेन में दाल चढ़ा कर कमरे में बैठ कर बच्चों के साथ बात कर रही थी। अचानक बम फूटने की आवाज सुनाई दी . मेरा खुद का घर और कभी बड़ा और खुला हुआ है . उस दिन मुहर्रम का दिन था तो सोचा कि किसी ने बम फोड़ा होगा। हम इससे बेखबर थे। बगल से आवाज आई की - रेखा क्या हुआ? मैं बाहर निकल कर आई तो मेरे किचेन में कुकर फट गया था। उसका ढक्कन किचेन से बाहर मुडा हुआ पड़ा था। अन्दर गयी तो गैस स्टोव टूटा हुआ था। दाल पूरे किचेन में छिटकी हुई पड़ी थी। बस इतना ही - उस समय किचेन में गैस के सिलेंडर भरे हुए रखे थे। वाटर प्यूरीफायर था लेकिन किसी को कोई भी क्षति नहीं  पहुंची थी। उस समय किचेन की हालत देख कर मेरे हाथ पैर कांपने लगे। बेटियों ने अन्दर बिठा दिया और समझाया कि मम्मी अगर हममें से कोई भी किचेन में होता तो शायद इस हादसे में कुछ भी हो सकता था। 
मुझे समान्य होने में बहुत देर लगी लेकिन फिर सोचा कि अगर जीवन में कुछ अच्छा किया है तो उसके प्रतिफल में इश्वर ने मुझे मेरे परिवार सहित सुरक्षित रखा। अभी सत्य , परोपकार,दया और औरों के दुःख को बाँट लेने का मोल ईश्वर की नजर में भी है। न्याय और अन्याय वह सोच समझ कर  करता है। इसे मेरी धर्मभीरुता भी आप कह सकते हैं लेकिन मेरी धारणा कल भी यही थी और आज भी यही है कि  आप सबका भला सोचिए इश्वर आपका भला जरूर करेगा