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गुरुवार, 26 नवंबर 2009

भिक्षाटन सबसे अच्छा व्यवसाय!


हमारी संस्कृति में दान को बहुत ही महत्व दिया गया है और आज भी कितने अवसर आते हैं जब कि दान के लिए हमारे हाथ उठ जाते हैं। शास्त्रों में तो ब्राह्मण को सबसे अधिक सुपात्र बताया गया है - तब वे वन में रहकर अपना जीवन यापन इसी से करते थे। आज भी धार्मिक कृत्य के लिए ब्राह्मण को दान दिया जाता है।
कालांतर में इस का दूसरा रूप सामने आया और वह बना भिक्षा का रूप - लेकिन इसके लिए भी ब्राह्मण ही सुपात्र माना गया। अपने सम्पूर्ण आय से एक हिस्सा दान के लिए रखा जाता था।
आज भिक्षा एक घिनौना धंधा बन चुका है। वे भिखारी जो सड़क पर अपाहिज बने बैठे हैं, सुना था कि बड़े बड़े अपार्टमेन्ट के मालिक भी हैं, उनके बच्चे पढ़े लिखे और नौकरी कर रहे हैं। पर ऐसा कुछ देखा नहीं था। बच्चे जो सड़क पर भीख मंगाते हुए घूम रहे हैं या तो ये उनका पुश्तैनी धंधा है या फिर किसी गैंग की कमी का साधन बने हुए हैं। आज विश्वास ही ख़त्म हो चुका है, इससे वास्तव में जरूरतमंद भी विश्वसनीय नहीं रहे हैं।

कुछ दिन पहले ही मैं इलाहबाद से वापस आ रही थी, रात को स्टेशन पर एक निर्वस्त्र आदमी सर्दी से कांप रहा था। उस सर्दी में मुझे लगा की इसको कुछ देना जरूरी है और मैंने अपनी शाल उसके ऊपर डाल दी।

इसके बाद इस वाकिये को मैं भूल गई। इत्तेफाक से कल मुझे फिर बाहर जाना पड़ा और स्टेशन पर रात में वापस आई तो वही भिखारी फिर उसी तरह से बैठा कांप रहा था। लोग उसकी ओर न देखते हुए निकले जा रहे थे, शायद उनमें से कई उससे पहले ठग चुके होंगे ।
मेरी दृष्टि पड़ी कि मेरी शाल उससे कुछ दूर बैठी एक भिखारिन ने ओढ़ रखी थी। माजरा मेरी समझ में आ गया ।
जब मुझे अपने ठगे जाने का अहसास हुआ तो लगा कि न जाने कितने जरूरतमंद इस घटना के बाद मुझसे तो कुछ न पा सकेंगे। किसके चेहरे पर लिखा है कि ये नाटक नहीं कर रहा है। मानव की सदवृत्तियों का फायदा इस तरह से उठाया जाना कष्टदायक बन जाता है।