ये कहानी बनी तो बस स्टॉप से नहीं लेकिन इसके बारे में सब कुछ बस स्टॉप से ही सुनाने वाले मिलते रहे क्योंकि रजनी को तो मैंने वर्षों बाद जाना। वो एक सीधी सादी महिला थी। उनके बारे में बताने के लिए बहुत साल पीछे जाना पड़ेगा --!
रजनी नहीं रही और वह भी उस समय जब कि वह हार्ट की मरीज थी और उसका गैर जिम्मेदार बेटा उसे बीमार छोड़ कर शादी में चला गया हो । उसको हफ़्तों हेल्थ सेंटर में रहना पड़ता था। प्रमिला ने उस दिन बताया कि उस दिन रजनी घर पर अकेली थी। सुपुत्र ससुराल में किसी शादी में गए थे , माँ को ऐसी हालत में छोड़ कर। अचानक एक रात रजनी की तबियत बिगड़ी तो उसने पडोसीको फ़ोन से बुलाया। उन्होंने ही एम्बुलेंस बुला कर हेल्थ सेंटर में भर्ती करवाया। पुत्र को फ़ोन किया गया तो उठा ही नहीं। जब उठाया तो कहा अभी बारात आ चुकी है काम ख़त्म होते ही चलता हूँ। फिर चलने की नौबत ही नहीं आई और रजनी चली गयी। ऑफिस वालों ने सहयोग किया उसके सास ससुर को सूचना दी। छोटा बेटा भी पहुँच गया उसके बाद उनका आना हुआ। रजनी तो जा चुकी थी न। उसके इस कृत्य के लिए सबने बहुत धिक्कारा। मुझे ये सब कुछ पता न था , कभी अगर फेसबुक पर नजर आता और उसको मैसेज देती तो क्विट कर जाता था।
मैंने उसको जब से जाना वो सफर बहुत लम्बा है ----
मैंने कंप्यूटर साइंस विभाग में ज्वाइन किया तो उसके कुछ ही साल बाद राज खन्ना ने ऑफिस में एक क्लर्क की तरह नौकरी ज्वाइन की। हमारा काम ऑफिस से नहीं पड़ता था लेकिन हम जानते तो सबको थे। हाँ मेरे साथ काम करने वाली सहेलियां जो कैंपस में रहती थी , उनसे सबके बारे में पता चलता रहता था क्योंकि कुछ लोगों का ब्लॉक एक ही था। फिर अचानक पता चला कि राज खन्ना बीमार हैं और कुछ दिन बाद नहीं रहे। दो छोटे छोटे बेटे थे उनके -- फिर एक लम्बा अंतराल ! ससुराल वालों ने साथ नहीं दिया , तैयार थे कि सारा सामान लेकर उनके साथ चले और सारे पैसे उनको सौंप दे. लेकिन इस दुनियां में कुछ ऐसे भी लोग भी होते हैं जो निःस्वार्थ दूसरे की भलाई चाहते हैं और उनकी भलाई करते भी हैं. ऑफिस के कुछ लोगों ने रजनी से कैंपस छोड़ने के लिए मना किया क्योंकि यहाँ रहने से उनके लिए नौकरी दिलाने का काम आसान रहेगा।
वर्षों संघर्ष चला , बेटा कुछ बड़ा हुआ उसके लिए ऑफिस वालों ने प्रोजेक्ट में नौकरी लगवा दी। कई दूसरे प्रोजेक्ट में काम करने के बाद वह हमारे प्रोजेक्ट में काम करने आया। वैसे वह बहुत इज्जत देता था क्योंकि उसे पता था कि हम सब उसके पापा के समय से उसके परिवार जानते हैं। वह अपनी शिक्षा इग्नू से करता रहा। उसने MCA किया। उसी बीच एक लम्बे संघर्ष के बाद , वहां के कर्मचारी संगठन को संस्थान से लड़कर रजनी के लिए उसी विभाग में नौकरी की अनुमति मिली। वह अधिक पढ़ी न थी सो उसको चतुर्थ श्रेणी में नौकरी मिली लेकिन विभाग के लोग उसकी मजबूरी और राज की पत्नी के रूप में देख कर उसको बहुत सम्मान देते। काम उन्हें सिर्फ फाइल संभालने और फोटो कॉपी आदि करने दिया जाता था . कभी कभी उनसे मेरी मुलाकात होती थी। अपने बेटे के काम के बारे में पूछा करती थी।
उनका बेटा भटकने लगा था , वह अंतर्मुखी तो था ही , कभी कभी काम छोड़ कर बिना बताये हफ़्तों के लिए गायब हो जाता। फिर आता तो हमारे बॉस सिर्फ उसकी माँ के कारण फिर से रख लेते थे। लेकिन माँ उसकी इन हरकतों से बहुत परेशान थी , जवानी में पति के चले जाने से टूटी हुई महिला अंदर से कितनी कमजोर हो चुकी थी इसका प्रमाण उनकी क्षीण काया थी। वह ह्रदय रोग की भी शिकार हो गयीं। कभी डिप्रेशन और कभी हार्ट प्रॉब्लम के कारण हेल्थ सेंटर में भर्ती होना पड़ता था । उस के गायब होने के दौरान ही एक बार मैंने उनसे मिली तो बस रोने लगी कि कुछ बताता नहीं है कि जाता कहाँ है ? आप अबकी बार आये तो उसको समझाइये।
बाद में पता चला कि वह अपनी मर्जी से शादी करना चाह रहा था। माँ ने उसके लिए भी अपनी अनुमति दे दी। शादी हो गयी और उसको बेटा भी हो गया। मेरे साथ काम करने के कारण उसकी शादी में मैं भी शामिल हुई थी। करीब दो साल तक वह काम करता रहा। फिर प्रोजेक्ट CDAC नॉएडा भेज दिया गया। मुझे जाना नहीं था सो मैं घर पर रहने लगी लेकिन वह भी माँ के कारण किसी दूसरे प्रोजेक्ट में काम करने लगा था। फिर कोई खबर नहीं - जब ३ साल बाद बस स्टॉप पर पहुंची तो ये एक जिंदगी के ख़त्म होने की कहानी मिली।
रजनी नहीं रही और वह भी उस समय जब कि वह हार्ट की मरीज थी और उसका गैर जिम्मेदार बेटा उसे बीमार छोड़ कर शादी में चला गया हो । उसको हफ़्तों हेल्थ सेंटर में रहना पड़ता था। प्रमिला ने उस दिन बताया कि उस दिन रजनी घर पर अकेली थी। सुपुत्र ससुराल में किसी शादी में गए थे , माँ को ऐसी हालत में छोड़ कर। अचानक एक रात रजनी की तबियत बिगड़ी तो उसने पडोसीको फ़ोन से बुलाया। उन्होंने ही एम्बुलेंस बुला कर हेल्थ सेंटर में भर्ती करवाया। पुत्र को फ़ोन किया गया तो उठा ही नहीं। जब उठाया तो कहा अभी बारात आ चुकी है काम ख़त्म होते ही चलता हूँ। फिर चलने की नौबत ही नहीं आई और रजनी चली गयी। ऑफिस वालों ने सहयोग किया उसके सास ससुर को सूचना दी। छोटा बेटा भी पहुँच गया उसके बाद उनका आना हुआ। रजनी तो जा चुकी थी न। उसके इस कृत्य के लिए सबने बहुत धिक्कारा। मुझे ये सब कुछ पता न था , कभी अगर फेसबुक पर नजर आता और उसको मैसेज देती तो क्विट कर जाता था।
मैंने उसको जब से जाना वो सफर बहुत लम्बा है ----
मैंने कंप्यूटर साइंस विभाग में ज्वाइन किया तो उसके कुछ ही साल बाद राज खन्ना ने ऑफिस में एक क्लर्क की तरह नौकरी ज्वाइन की। हमारा काम ऑफिस से नहीं पड़ता था लेकिन हम जानते तो सबको थे। हाँ मेरे साथ काम करने वाली सहेलियां जो कैंपस में रहती थी , उनसे सबके बारे में पता चलता रहता था क्योंकि कुछ लोगों का ब्लॉक एक ही था। फिर अचानक पता चला कि राज खन्ना बीमार हैं और कुछ दिन बाद नहीं रहे। दो छोटे छोटे बेटे थे उनके -- फिर एक लम्बा अंतराल ! ससुराल वालों ने साथ नहीं दिया , तैयार थे कि सारा सामान लेकर उनके साथ चले और सारे पैसे उनको सौंप दे. लेकिन इस दुनियां में कुछ ऐसे भी लोग भी होते हैं जो निःस्वार्थ दूसरे की भलाई चाहते हैं और उनकी भलाई करते भी हैं. ऑफिस के कुछ लोगों ने रजनी से कैंपस छोड़ने के लिए मना किया क्योंकि यहाँ रहने से उनके लिए नौकरी दिलाने का काम आसान रहेगा।
वर्षों संघर्ष चला , बेटा कुछ बड़ा हुआ उसके लिए ऑफिस वालों ने प्रोजेक्ट में नौकरी लगवा दी। कई दूसरे प्रोजेक्ट में काम करने के बाद वह हमारे प्रोजेक्ट में काम करने आया। वैसे वह बहुत इज्जत देता था क्योंकि उसे पता था कि हम सब उसके पापा के समय से उसके परिवार जानते हैं। वह अपनी शिक्षा इग्नू से करता रहा। उसने MCA किया। उसी बीच एक लम्बे संघर्ष के बाद , वहां के कर्मचारी संगठन को संस्थान से लड़कर रजनी के लिए उसी विभाग में नौकरी की अनुमति मिली। वह अधिक पढ़ी न थी सो उसको चतुर्थ श्रेणी में नौकरी मिली लेकिन विभाग के लोग उसकी मजबूरी और राज की पत्नी के रूप में देख कर उसको बहुत सम्मान देते। काम उन्हें सिर्फ फाइल संभालने और फोटो कॉपी आदि करने दिया जाता था . कभी कभी उनसे मेरी मुलाकात होती थी। अपने बेटे के काम के बारे में पूछा करती थी।
उनका बेटा भटकने लगा था , वह अंतर्मुखी तो था ही , कभी कभी काम छोड़ कर बिना बताये हफ़्तों के लिए गायब हो जाता। फिर आता तो हमारे बॉस सिर्फ उसकी माँ के कारण फिर से रख लेते थे। लेकिन माँ उसकी इन हरकतों से बहुत परेशान थी , जवानी में पति के चले जाने से टूटी हुई महिला अंदर से कितनी कमजोर हो चुकी थी इसका प्रमाण उनकी क्षीण काया थी। वह ह्रदय रोग की भी शिकार हो गयीं। कभी डिप्रेशन और कभी हार्ट प्रॉब्लम के कारण हेल्थ सेंटर में भर्ती होना पड़ता था । उस के गायब होने के दौरान ही एक बार मैंने उनसे मिली तो बस रोने लगी कि कुछ बताता नहीं है कि जाता कहाँ है ? आप अबकी बार आये तो उसको समझाइये।
बाद में पता चला कि वह अपनी मर्जी से शादी करना चाह रहा था। माँ ने उसके लिए भी अपनी अनुमति दे दी। शादी हो गयी और उसको बेटा भी हो गया। मेरे साथ काम करने के कारण उसकी शादी में मैं भी शामिल हुई थी। करीब दो साल तक वह काम करता रहा। फिर प्रोजेक्ट CDAC नॉएडा भेज दिया गया। मुझे जाना नहीं था सो मैं घर पर रहने लगी लेकिन वह भी माँ के कारण किसी दूसरे प्रोजेक्ट में काम करने लगा था। फिर कोई खबर नहीं - जब ३ साल बाद बस स्टॉप पर पहुंची तो ये एक जिंदगी के ख़त्म होने की कहानी मिली।
8 टिप्पणियां:
कभी बहुत कड़वी हो जाती है जिंदगी इसी तरह ।
ब्लॉग बुलेटिन आज की बुलेटिन, ज़ोहरा सहगल - 'दा ग्रांड ओल्ड लेडी ऑफ बॉलीवुड' - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
सुंदर प्रस्तुति , आप की ये रचना चर्चामंच के लिए चुनी गई है , सोमवार दिनांक - १३ . ७ . २०१४ को आपकी रचना का लिंक चर्चामंच पर होगा , कृपया पधारें धन्यवाद !
यादगार संस्मरण।
यादगार संस्मरण।
यादगार संस्मरण।
यादगार संस्मरण।
यथार्थ अपने कडवे रूप में मिलता है अक्सर !!
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