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रविवार, 26 जून 2011

हम कहाँ जा रहे हैं?

पिछले दिनों एक जबरदस्त अवसाद का सामना करना पड़ा। नहीं सोचा था कि जिन्दगी में हर चुनौती को कष्ट कोपहाड़ की तरह से खड़े होकर झेल सकती हूँ और इस एक छोटी सी घटना मुझे अवसाद में धकेल सकती है और फिर वहजब कि मैं तो नेट के संपर्क में थी और ही मैं उसमें कुछ कर सकती थी। मुझे अपने कुछ शुभचिंतकों के फ़ोन कालमिल रहे थे कि आपका ऑरकुट अकाउंट हैक कर लिया गया है और उस पर बहुत कुछ अश्लील डाल कर स्क्रैप से औरवैसे भी भेज दिया गया है। आप ठीक कर लें।
मैं उस समय लम्बे सफर पर थी और कुछ कर भी नहीं सकती थी वैसे अपनी परिस्थितियों के कारण मानसिक तौर परसामान्य तो नहीं ही थी। मैंने अपनी बेटी को फ़ोन किया कि मेरा ऑरकुट अकाउंट खोलो और उसमें क्या है ? उसकोदेख कर डिलीट कर लो और मेरा पासवर्ड बदल दो। उसने भी मुझे बताया नहीं कि क्या पड़ा था? उसने कहा कि बहुतही गन्दी भाषा में कुछ डाला गया है और मैंने सब डिलीट कर दिया उसपर भी ऑरकुट पर जो लोग थे उनके भी स्क्रैपआये हैं माँ ऐसे लोगों को क्यों रखा है? उनमें से कुछ लड़के तो मेरे अच्छे जानने वाले थे। मिले नहीं थे लेकिन वर्षोंपहले संपर्क में रहे थे। नाम सुनकर शर्म तो आई थी और एक वितृष्णा सी हो गयी ऐसी सोच वालों से। इनमें से एक तोकई बार मुझसे मेरी बेटी कि शादी का प्रस्ताव रख चुका था लेकिन मुझे अपनी बेटी कि शादी उस तरह के नौकरी वालेलड़के से नहीं करनी थी और मैंने उसको सभ्य भाषा में इनकार कर दिया था कि मुझे अभी उसकी शादी नहीं करनी हैऔर फिर अगर करनी है तो उसके कार्य क्षेत्र के लड़के से ही करनी है। हो सकता है कि अपने मन में कुछ पाले उसनेऐसा कृत्य किया , मैं नहीं जानती लेकिन मैंने बहुत कष्ट झेला।
हमारी मानसिक विकृतियाँ हमें कहाँ ले जा रही हैं? क्यों हमारी सोच जाकर सिर्फ अश्लील भाषा और अश्लील चित्रों तकसीमित है? क्या ये हमारे व्यक्तित्व को उजागर नहीं करती - नहीं ये हमारी कुंठाओं को उजागर करती है, जिन्हें हममानसिक रूप से या फिर किसी अन्य रूप से असंतुष्टि के बदले पाल लेते हैं। हाँ हमें उम्र का लिहाज होता है और हीव्यक्ति के कार्यों का। हमारी सोच कितनी गिरी हुई हो सकती है, ये इस बात से पता चल गया। ये आज की पीढ़ी है, इनका अपना चरित्र क्या होगा? भविष्य क्या होगा? अगर अधिक प्रतिभा का प्रयोग सकारात्मक कार्यों में किया जायतो औरों का भला भी हो सकता है लेकिन अगर वही नकारात्मक दिशा में चली जाती है तो वह प्रतिभा प्रतिभा नहींरहती मानसिक विकृति का स्वरूप बन जाती है। इसमें किसका दोष है? क्या हमारे संस्कारों का जो हम आज की पीढ़ीको दे रहे हैं या फिर विज्ञान के बढ़ते स्वरूप को जो इंसान को उत्थान के साथ पतन की अधिक तेजी से ले जा रहा है।नहीं जानती ऐसे लोगों का क्या होगा? हाँ इतना अवश्य है कि ऐसे ही लोग हैं जो समाज में आज बढ़ रही बलात्कार कीघटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। ये उनके कुत्सित विचार उजागर होकर बहुत भयावह हो जाते हैं और ऐसे लोगों का कोईउपचार नहीं है।

सोमवार, 20 जून 2011

कहाँ से लायें पिता का नाम?

आज समाज में बलात्कार की घटनाएँ दिन पर दिन बढ़ती जा रही हैं, इसमें दोष किसे दें? उन लड़कियोंको जो इसका शिकार हो रही हैं या फिर उन पुरुषों को जो अपनी बहशियत में पागल होकर इन मासूमों को अपनाशिकार बना रहे हैंजिन्हें मार दिया - उनके माँ बाप भाग्यशाली है क्योंकि बलात्कार की शिकार बेटी को लेकर समाजके कटाक्षों का सामना तो नहीं करना पड़ता है और वह लड़की उससे भी अधिक भाग्यशाली है क्योंकि इस समाज की हेय दृष्टि वह बेकुसूर होते हुए भी कब तक सहन कर सकती है? वे हेय दृष्टि से नहीं देखे जाते हैं जो ऐसे कुकृत्यों कोअंजाम देते हैं क्योंकि ये या तो उनकी फिदरत में शामिल है और ये लोग या तो रईस बाप की बिगड़ी हुई संतान है याफिर दबंग कहे जाने वाले अपराधी प्रवृति के लोगइन सबके १०० खून माफ होते हैं क्योंकि पुलिस इनके पैसे पर ऐशकरती है और इनके दरवाजे पर हाजिरी लगाने आती है
पिछले दिनों अपनी मूक बधिर बलात्कार की शिकार बेटी के बच्चे को स्कूल में नाम लिखने के लिए एकपिता गया तो उससे बच्चे के पिता का नाम पूछा गया और बता पाने पर उसको लौटा दिया गयाबाप ने बेटी कोसमझाया तो वह चीख चीख कर रोने लगी क्योंकि यह संतान उसके बलात्कार के शिकार का ही परिणाम थी और उसेएक नहीं कई लोगों ने बलात्कार का शिकार बनाया थावह किसका नाम ले ये तो उसको भी पता नहीं है
इतना ही नहीं बल्कि इस बलात्कार की शिकार लड़की को गाँव से बाहर निकाल दिया गया क्योंकि पूरागाँव उन दबंगों के खिलाफ बोल नहीं सकता है अतः दोषी इसी को बना दिया गयाउस गूंगी और बहरी लड़की ने जिसबच्चे को जन्म दिया उसके लिए ये सबसे बड़ा प्रश्न है? ऐसे एक नहीं कई किस्से हो सकते हैं लेकिन कुछ ही घटनाएँऐसे बन जाती हैं की सोचने के लिए मजबूर कर देती हैंये उसका साहस की उसने चुनौती दी उन लोगों को जिन्होंनेउसे अपनी हवस का शिकार बनाया लेकिन अब?
इस अब के लिए अब सोचना होगा , कौन सोचेगा? ये समाज, हम, कानून या फिर हमारी सरकार? येप्रक्रिया इतनी आसान भी नहीं है, ऐसे बच्चों को पिता का नाम देने के लिए विकल्प सोचना होगा क्योंकि ऐसीलड़कियाँ या महिलाएं इन बलात्कारियों का नाम अपने बच्चे को दें यह उनके लिए अपमान होगाअब कानून कीनजर में अगर बाप का नाम जरूरी है तो फिर ये क्या करें? हमें इसका विकल्प कोई भी सुझा सकता हैएक बाप केनाम को पाने के लिए या फिर अपनी अस्तित्व को स्वीकार करने के लिए ऐसे बच्चे खुद क्या लड़ पायेंगे? रोहितशेखर जैसे लड़के इसके लिए लड़ रहे हैं और फिर उसके द्वारा किये गए दावे के लिए जिम्मेदार लोग उससे भाग रहे हैंक्यों ? इसलिए कि उनकी प्रतिष्ठा का सवाल है और ये सौ प्रतिशत सच है कि अगर वह दोषी होता तो उसको डी एन टेस्ट कराने में कोई भी आपत्ति होती
वह तो मामला ही इतर है , लेकिन ऐसे बच्चे के लिए क़ानून के द्वारा माँ का नाम ही काफी होना चाहिएजोजीवित है उसका नाम देंपिता का नाम माँ के अतिरिक्त कोई नहीं बता सकता और फिर ऐसे मामले में तो कोई पिताकहा ही नहीं जा सकता हैऐसे लोग क्या डी एन टेस्ट करने की चुनौती दें और फिर बच्चे को दाखिला दिलाएंअबआवाज ऐसे ही उठाई जानी चाहिए कि ऐसे मामलों में पिता का नाम हो तो उसको माँ के नाम के आधार पर शिक्षासंस्थानों में प्रवेश दिया जाना चाहिएइस बात के लिए एक लम्बी लड़ाई लड़नी होगी क्योंकि ऐसा काम आसान नहींहै और फिर इसको अब सोचने का एक मुद्दा तो मिल ही गया हैअब आप भी कहें की क्या मेरी ये सोच गलत है? याफिर इस पर विचार किया जाना चाहिए

गुरुवार, 16 जून 2011

इसका दोषी कौन?

अभी मैं इस वाकये को बयान करने के लिए मानसिक रूप से तैयार भी नहीं हूँ, लेकिन अपने को रोक भी नहीं पा रही हूँ।इस दर्द से मैं भी आहत हूँ क्योंकि कोई बहुत अपना जब गुजरता है इस दर्दनाक हादसे तो आत्मा तक काँप जाती है।
वह एक बहुत भला इंसान जिसने अपने जीवन में किसी का दिल दुखाना तो दूर तेज आवाज में बोलना भी नहीं सीखा है।पांच साल पहले अचानक पता चला कि उसके जांघ में कैंसर हो चुका है। उसको हम टाटा मेमोरिअल कैसर हॉस्पिटल मेंले कर गए और डॉक्टर ने उसका ऑपरेशन करके उसे घर भेज दिया। उसको पहले हर महीने में चेक अप के लिएबुलाते रहे कि कहीं उसकी सेकेंडरी फैल रही हो। फिर महीने में और फिर साल में एक बार। डॉक्टर उसको हर तरीकेसे निरोग बताते रहे। सारी जानकारी जिस तरीके या जिस टेस्टिंग से वह लेते रहे हों। वह भी अपनी पत्नी और बच्ची केसाथ खुश था कि इस रोग से मुक्त हो चुका है।
पांच साल बीतने के बाद भी वह चेक अप के लिए बराबर जाता रहा। कुछ दिनों से उसको कुछ तकलीफ महसूस होने लगीथी। पिछले अप्रैल में वह वहाँ गया तो डॉक्टर ने चेक करके बता दिया कि अब आप को कोई खतरा नहीं है और आप अबचेक कराने आये तो कोई बात नहीं तो उसने बताया कि उसको पिछले हिस्से में दर्द होने लगा है। तो डॉक्टर ने कहा किआप अपनी तसल्ली के लिए एम आर आई करवा लीजिये और हम उसको देख लेते हैं। उसने एम आर आई करवाई औरजब डॉक्टर ने देखा तो उसका कैंसर बोन मेरो में बहुत ज्यादा फैल चुका था। टाटा मेमोरिअल जैसे संस्थान के डॉक्टर सेइस तरह की लापरवाही की आशा नहीं की जा सकती थी। वह तो पत्नी और बच्ची के साथ गया था। और जब लौटा तो पूरीतरह से निराश होकर। उसे ऑपरेशन की तिथि महीने बाद दी गयी थी।
१३ जून को जब ऑपरेशन किया तो उसको सभालने में खुद डॉक्टर ही हार गए और फिर उन्होंने घर वालों से उसके पूरेपैर को ही काट देने के विकल्प पर विचार करने को कहा कि अगर जिन्दगी चाहिए तो ये ही करना पड़ेगा। हमारे सामनेकोई दूसरा चारा नहीं था। आखिर कल डॉक्टर ने वही काम कर दिया। अभी उसको होश में नहीं ला रहे हैं क्योंकि इसट्रौमा को सहन वह कर पायेगा या नहीं इस बात से हम भी वाकिफ नहीं है। लेकिन इस बात के लिए पूरी तरह से तैयार हैंकि उसको कैसे मानसिक रूप से इसको स्वीकार करने के लिए समझा पायेंगे। उसके बाद के विकल्प भी हमने सब सोचलिए क्योंकि जिन्दगी से बड़ा कुछ भी नहीं होता। उसकी जिन्दगी उसकी पत्नी और ११ साल की बच्ची के लिए सबसे महत्वपूर्ण है।
इसके लिए हम किसको दोष दें उन डॉक्टर को जो पांच साल तक उसको बुलाते रहे और ठीक होने की रिपोर्ट देते रहे फिरउस बेचारे कि किस्मत को जिसकी जिन्दगी में ये दिन भी लिखा था। ये पीड़ित और कोई नहीं मेरी छोटी बहन का पतिहै। उसके इस हादसे को सहन करने के लिए खुद को और उसके लिए साहस जुटा रहे हैं क्योंकि बड़ी होने के नाते सिर्फवही नहीं इससे जुड़े सभी परिवार के सदस्यों को भी संभालना होगा। और मैं ऐसी दुखिया कि सबके सामने रो भी नहींसकती हूँ। अकेले में रोकर दर्द आप सबसे बाँट रही हूँ।

मंगलवार, 7 जून 2011

क्यों बनते हैं मुन्ना भाई ?

आज जब कि हर किसी कोर्स के लिए प्रवेश परीक्षाएं होने लगी हैं और दूसरे दिन जब देखते हैं तो पता चलता है कि इतने मुन्ना भाई पकड़े गए और उनको जेल में डाल दिया गया। यहाँ मुन्ना भाई बनने वालों का दर्द और उनकी मजबूरी किसी ने नहीं समझी और उन्हें जेल में डाल दिया गया।
एक परीक्षा में बैठे मुन्ना भाई से पता चला कि उसको आँत की कोई बीमारी है और उसके इलाज के लिए २० हजार रुपये मिल जाना बहुत बड़ी बात है, इसलिए उसने किसी और की जगह पर परीक्षा देना स्वीकार कर लिया और फिर पकड़ा गया। वह पेशेवर मुन्ना भाई नहीं था। नहीं तो वह २० हजार में नहीं बिकता। ये खेल तो इंजीनियरिंग कॉलेज में भी चलता है। वहाँ पढ़ने वाले छात्रों को खरीद लिया जाता है और वे परीक्षा दे आते हैं। कभी ये सोचा है कि इसके लिए वाकई दोषी कौन है? वे बच्चे जो पैसे के लालच में बिक जाते हैं या फिर वे पैसे वाले लोग जो अपने नाकारा बेटों के लिए (बेटियों के लिए कोई ये काम नहीं करेगा और अगर करे भी तो शायद बेटियाँ स्वीकार न करेंगी।) कितना भी पैसा खर्च करके मुन्ना भाई खरीद लेते हैं और मुन्ना भाई वे बिचारे ठगे जाते हैं उन ठेकेदारों के हाथ जिनका ये धंधा है कि वे पैसे वालों से कई गुण ज्यादा पैसा लेकर मुन्ना भाई को उसकी स्थिति के अनुसार पैसे देकर खरीद लेते हैं और बाकी उनकी अपनी जेब में जाता है। फिर पकड़े भी वही मुन्ना भाई जाते हैं।
कभी मुन्ना भाइयों के खिलाफ ये मुहिम छेदने वालों ने ये सोचा है कि पकड़ा किसे जाना चाहिए? इसमें पकड़ा उन्हें जाना चाहिए जो वाकई इसके गुनाहगार हैं। उन माँ बाप को पकड़ा जाना चाहिए जो अपने बच्चों के लिए इन्हें खरीदने के लिए तैयार होते हैं और फिर उन दलालों को जो इसको पेशा बना कर लाखों रुपये कमा रहे हैं। जब तक ये दलाल बने रहेंगे , तब तक मुन्ना भाइयों का अंत हो ही नहीं सकता है और वे अपनी मजबूरी में बिकते रहेंगे। इसके लिए कभी सोचा जाता है कि क्यों ऐसा हो रहा है? नहीं इसको सोचने के लिए किसी के पास फुरसत ही कहाँ है? मेधावी छात्र जो अपनी मेधा के साथ भी आज भी बेकार घूम रहे हैं , उन्हें पैसा कहाँ से मिलेगा वे अपनी मेधा बेच रहे हैं क्योंकि हमारे देश में उनकी मेधा का उपयोग नहीं हो पा रहा है। वे जायेंगे हर हाल में अपराध की ओर ही क्योंकि हमारे यहाँ मेधा की नहीं बल्कि कुछ विशेष श्रेणियों की जरूरत होती है जिससे उनके भविष्य सुरक्षित हो सके।
इन मुन्ना भाइयों पर अंकुश लगाने के लिए पहले दलालों और फिर उन अभिभावकों को भी अन्दर करना चाहिए जो इस खरीद-फ़रोख्त के असली नायक हैं। शायद पुलिस उन पर हाथ न डाल सके क्योंकि यहाँ क़ानून तो सिर्फ मुन्ना भाइयों के लिए ही बना है उन्हें मुन्ना भाई बनाने वालों के लिए कोई भी सजा नहीं है। इसी को कहते हैं अंधेर नगरी चौपट राजा।