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बुधवार, 18 मार्च 2009

क्या परिचय दें!

वह मेरी सहेली है, जिसके साथ २२ वर्ष मैंने साथ साथ अगल -बगल बैठ कर गुजरे। अपने सुख-दुःख बांटे। उसे शादी में ही विरासत में ३ माह का पुत्र मिला और उसने उसकी माँँ बन कर ही उसे नहीं पाला बल्कि उसकी माँँ के परिवार वालों को उनकी बेटी, बहन भी वापस की। मैं सच्चे दिल से उसको नमन करती हूँ। उस बेटे के बाद उसके अपने बच्चे भी हुए और उसने कभी यह अहसास न होने दिया की वे सगे भाई बहन नहीं हैं बल्कि उसके सौतेले होने का राज भी किसी दूसरे ने मुझे बताया वर्षों तक मुझे ज्ञात ही नहीं था कि बड़ा बेटे की जन्मदात्री वह नहीं है। आज जब की सब बच्चे अपने अपने लक्ष्य तक पहुँच गए हैं, उसके संघर्षों की कहानी सिर्फ मैं ही जानती हूँ। जब बड़े बेटे की शादी होने का वक्त आया तो यह अहसास उसको ही नहीं मुझको भी हिला गया। एक दिन वह मुझसे बोली "रेखा , मैं अपना परिचय क्या कह कर दूँ कि मैं सौतेली माँ हूँ." और कह कर बहुत फूट-फूट कर रोने लगी. एक बार तो मुझे ख़ुद नहीं समझ आया कि यह किस परिपेक्ष्य में कह रही है। फिर उसने बताया कि एक जगह बड़े बेटे का रिश्ता तय हुआ और कुछ दिन बाद आकर उन्होंने यह सवाल किया कि आपने यह क्यों नहीं बताया कि लडके की सौतेली माँ है। किसी की भावनाओं को आहत करने के लिए शब्द बाणों से कम धारदार नहीं होते हैं. यद्यपि बाद में बेटे ने ही उस रिश्ते को ठुकरा दिया कि जिनको रिश्तों की क़द्र करनी नहीं आती है, वे मेरे घर को बर्बाद कर देंगे. उसका यह प्रश्न एक बहुत बड़ा सवाल उठा रहा है, की सौतेली माँ चाहे कितनी ही सगी क्यों न हो बच्चे उसको सगा मान सकते हैं लेकिन यह समाज इस सौतेले रिश्ते इस बात का अहसास जरूर करवा देंगे कि यह रिश्ता सदैव ही बुरा है। जबकि पूरा जीवन कभी कभी इस सगे और सौतेले से परे इंसान अपने बच्चों , भाई ,बहनों को बनने में लगा देता है.