कई बार हम मध्यम वर्गीय लोग कुछ ऐसे निर्णय ले बैठते हैं की उसके दुष्परिणामों से वाकिफ नहींहोते हैं। हमारी आँखों पर सिर्फ पैसे का इतना मोटा पर्दा होता है की और कुछ दिखाई ही नहीं देता है और अगर कोईदिखाने का प्रयास भी करे तो हमें लगता है की ये हमसे जलता है। इससे हमारी आने वाली सम्पन्नता देखी नहीं जारही है।
आज हमारे एक कुछ दूर के रिश्तेदार स्वर्ग सिधार गए। वह डिग्री कॉलेज में प्रोफेसर थे। दो बेटे औरएक बेटी के पिता। बड़ा बेटा पढ़ाने में उतना तेज न था तो उसको प्रभाव से किसी कॉलेज में लगवा दिया। दूसरा बेटाएम सी ए करके किसी कंपनी में नौकरी पा गया। उन्होंने सोच रखा था कि उसके पैदा होने से लेकर अपने शेष जीवनभर का खर्च इसकी शादी में ही वसूलना है। वैसे ये आम बात है कि हम मध्यमवर्गीय परिवारों में- मैंने भी इसकेलिए बहुत खाक छानी है अगर लड़की की योग्यता के अनुसार वर खोजना है तो काम से काम १५ लाख लड़के वालोंको दे जाइए फिर अपना देखिये क्या करना है? लेकिन न मैं ऐसा सौभाग्य प्राप्त कर सकी कि इतना पैसा दहेज़ में देसकती और न ही मेरे पास इतना पैसा है। फिर बेटियों की ही हिदायत थी कि अगर दहेज़ देकर ही शादी करनी थी तोहै स्कूल करवा कर कर देती सारा पैसा इकठ्ठा तो रहता। अब तो पैसा पढ़ाई में भी लग गया।
उनको एक बेटी वाला मिल ही गया , उसकी अकेली बेटी थी उसे घर जमाई चाहिए था उसने इनको२१ लाख रुपये दिए शादी के पहले ही और इन्होने बढ़िया बंगला बनवा लिया और आधुनिक सुविधायों से युक्त जीवनजीने लगे। बेटा शादी के बाद जो गया तो फिर कभी बहन की शादी में ही आया।
बहुत दिनों से बीमार चल रहे थे, बार बार बेटे को खबर जा रही थी कि पापा की इच्छा देखने की हैलेकिन उसको समय नहीं था उसके ससुर भी बीमार चल रहे थे। फिर बेचीं हुई चीज पर अपना अधिकार नहीं रहजाता है। वह महीनों बीमार रहे लेकिन बेटे का मुँह देखने के लिए तरस गए और आख़िर बगैर मुँह देखे ही स्वर्गसिधार गए। सारे रिश्तेदार लड़के के लिए थू थू कर रहे हैं कि ऐसा भी क्या की बाप के आखिरी समय भी नहीं आसका। बाप बेटे की शक्ल देखने की हसरत लिए चला गया।
इसमें दोष किसका है ? बेटे का या बाप का। आपने अपने बेटे का सौदा किया - मुंहमांगी रकम ली औरऐश का जीवन जीने लगे ये भी नहीं पूछा की बेटा कहाँ है? और कैसा है? तब उसकी याद नहीं आई क्योंकि उनके पासमें एक बेटा था और बहू थी। ये सौदा करने वाले ये भूल जाते हैं कि इस सौदे से बेटे को कभी कभी कितनी तकलीफहोती है। उससे बगैर पूछे आप ने बेच दिया और उसने आपकी इच्छा का सम्मान किया । कभी लड़कियाँ गाय बकरीकी तरह से भेज दी जाती थीं और वे चली जाती थी एक खूंटे से छूट कर दूसरे खूंटे पर बंधने के लिए . अब बेटे भीजाने लगे हैं। बेटियों की सौदा नहीं होती थी लेकिन बेटे की खुले आम सौदा होती है।
अगर हम कहें की अब दहेज़ कानून के कारण दहेज़ नहीं लिया जाता तो ये शत प्रतिशत गलत है। क्यानहीं लिया जाता है? लड़के वालों को फाइव स्टार होटल से शादी चाहिए। गाड़ी भी चाहिए महँगी वाली। लड़का अगरसरकारी नौकर है तो फिर तो ब्लैंक चैक है उसमें रकम भरने का हक़ उनका ही होता है। ये हकीकत है इस समाज की।
वह समाज जिसमें हम रहते हैं। लोगों को दिखाने के लिए चाहिए कि इतना हमें मिला है। कितने प्रतिशत हैं जो दहेज़के नाम पर नहीं लेते हैं लेकिन इतर तरीकों से लेते हैं। मेरी एक कलीग हैं , पतिदेव उनके आई आई टी में प्रोफेसर है। एक बेटा और एक बेटी दोनों इंजीनियर। बेटी की शादी की तो आई आई टी के ही कम्युनिटी सेंटर से की जो किलगभग मुफ्त ही रहता है । सब कुछ बढ़िया किया। लेकिन जब लड़के की शादी की तो कानपुर के बढ़िया होटल सेएंगेजमेंट की और शादी दूसरे होटल से क्योंकि खर्च तो लड़की वाले को ही करना था यद्यपि लड़की वाले भी मेरे हीपरिचित थे लेकिन बेटे और बेटी दोनों की शादी में प्रबुद्ध कहे जाने वाले लोग भी इस तरह से दोहरे प्रतिमान अपनातेहैं। हम समझ नहीं पाते हैं कि हमारे दोहरे चेहरे क्या हमें कभी खुद को धिक्कारते नहीं है। अब भी हम ऐसी घटनाओंसे कोई सबक नहीं लेंगे।
बुधवार, 27 जुलाई 2011
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7 टिप्पणियां:
jis par biitatii hai wahii jaanataa hai.
सिक्षाप्रद आलेख!
विचारणीय लेख ..
सार्थक पोस्ट...
Ladki agar padhi likhi hai or samajhdaar hai to or kya chahiye ?
Pta nahi kab samjhenge log?
Jai hind jai bharat
यही विडंबना है जिसका हल हमारे पास ही है मगर दिखावे की प्रवृति ने ही इंसान की ये दुर्गत कीहै।
क्या कहा जाये...विचारणीय...सार्थक लेखन!!
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