अगर हम सच का साथ न दे सकें तो हम झूठ बन कर सच पर पर्दा न डालें. पिछले दिनों हमारे पास एक स्कूल में ६ कक्षा की १० वर्षीय बच्ची के साथ दुष्कर्म के बाद उसकी मृत्यु का मामला गरमाया हुआ है. पुलिस तो जैसे कार्य कर रही है उसके लिए कुछ कहना ही बेकार है. इस मामले में उसने पड़ोसियों को प्रताड़ित करके अपराध कबूल करवा लिया. माँ को धमकी समझौते के लिए मिलती रही. स्कूल के प्रबंधक और उनके बेटे स्वतन्त्र घूमते रहे.
इत्तेफाक से उन प्रबंधक महोदय के मित्र हमारे पारिवारिक मित्र भी थे. एक दिन हम लोग उनके घर गए तो उनकी बातें जब हमने सुनी तो लगा कि वह हर व्यक्ति अपराधी है जो अपराधी का साथ दे या फिर उसके गुनाह को गुनाह न मान कर पीड़ित को ही दोष मढ़ दे. मेरे पतिदेव ने उनसे पूछा कि आपके मित्र का क्या हुआ?"
"अरे यार तो लड़की दस साल कि नहीं बल्कि १६ साल कि रही होगी, लोगों ने बेकार बदनाम किया हुआ है. मेरे मित्र बहुत सीधे सादे और एक स्कूल के टीचर के पद से रिटायर हुए हैं."
"लेकिन उनके तो पैट्रोल पम्प भी हैं और एक इंग्लिश मीडियम स्कूल भी है. "
"अरे वह तो उनके भाई के हैं, लोगों ने उनको झूठा फंसा दिया. अरे यार उस लड़की की माँ भी बदमाश है. उसके दो दो पति हैं और सहानुभूति में लोगों ने उसके एकाउंट में पैसे इकट्ठे करने शुरू कर दिए. महिला आयोग के आने से तो वह और भी शेर हो गयी है. उसके एकाउंट में करीब २० लाख रुपया जमा हो चुका है. इन लोगों ने तो कमाई का साधन बना दिया है. सारा मामला झूठ है."
मुझे सुनकर बहुत ही गुस्सा आई और मैं ने उठ कर चलने के लिए कहा और हम लोग चले आये. बाद में मैंने अपनी गुस्सा पतिदेव के ऊपर उतरी - कैसे ये इंसान किसी औरत के ऊपर ऐसे लांछन लगा सकता है? पोस्ट मार्टम की रिपोर्ट बच्ची को दस साल की बता रही है और ये उसको मखौल समझ कर १६ वर्ष की बता रहे हैं. '
बाद में सीबीसीआइडी द्वारा जांच करने के बाद पता चला कि ये कुकृत्य प्रबंधक के पुत्र के द्वारा स्कूल में ऊपर बनी लैब में किया गया और डी एन ए टेस्ट के बाद ये बात साबित हुई कि प्रबंधक पुत्र ही असली अपराधी है. .
जो अपराधी हैं वे तो हैं ही उनके पक्ष को निर्दोष बताने के लिए दूसरों पर लांछन लगने वाले भी अपराधी से कम नहीं है. समाज ऐसे अपराधियों के दम पर ही वास्तविक अपराधी को निर्भीक रूप से घूमने के लिए का साहस दे रहे हैं. ऐसे लोगों को शर्म आनी चाहिए खास तौर उन लोगों को जो किसी स्त्री के चरित्र पर बिना सोचे समझे लांछन लगा सकते हैं.
बुधवार, 12 जनवरी 2011
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18 टिप्पणियां:
ठीक कह रही हैं आप .गुनाहगार का पक्ष लेने वाला या उसका बचाव करने वाला भी गुनाहगार ही है.
गुनहगारों का साथ देने वाले चोर के भाई गिरहकट ही तो होते हैं ।
रेखा जी सही कहा आपने. गुनाहगारों को बचाने वाले भी गुनाह में उतने ही संलिप्त हैं.
उक्त मामला अखबारों की सुर्खियों में है हमारे शहर में . शायद ही न्याय मिले . रही बात गुनाहगार का साथ देने वाला तो चोर चोर मौसेरे भाई वाली बात चरितार्थ होती है .
jo gunahgar ka saath deta hai vo bhi gunaahgar hai
use bhi vahi saja milni chahiye jo gunaahgar ko milti hai
.....
ऎसे लोगो से दुरी ही अच्छी हे,ओर एसे लोगो को शर्मिंदा जरुर करना चाहिये
बहन रेखा जी ! आपका गुस्सा जायज़ है। जितना गुस्सा आपको आया है , उतना ही गुस्सा अब मुझे आ रहा है आपसे यह जानकर।
गुनाहगार का सपोर्टर ही नहीं बल्कि हर वह आदमी गुनाहगार है जो सच जानने के बाद भी मज़लूम के हक़ में नहीं बोलता । ऐसी ख़ामोशी को भी ख़ुदा गुनाह क़रार देता है । ऐसा मैं लिख चुका हूं अपने लेख में , देखिए
"आदमी के लिए ईनामे ख़ुदा है औरत"
' 'अहसास की परतें' पर ।
और अब मैं लिखूंगा ग़ुस्से पर ।
गुस्सा क्यों आता है और उसका फ़ायदा क्या है ?
@ बहन रेखा जी ! आपकी रचना दिल से निकली है इसीलिए पढ़ने वाले के दिल पर असर करती है । आपने इसमें रिश्तों की हक़ीक़त को ही नहीं बल्कि मौजूदा समाज की स्वार्थी सोच को भी सामने ला खड़ा किया है।
हज़रत मुहम्मद साहब सल्ल. ने एक शख़्स से कहा था कि तेरी जन्नत तेरी मां के क़दमों तले है ।
इसमें मां के प्रति विनय और सेवा दोनों का उपदेश है । मां भी अपनी औलाद को हमेशा नेकी का रास्ता बताती है ।
हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया है कि जब तक तुम बच्चों की मानिंद न हो जाओ स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकते ।
बच्चे मासूम होते हैं , ख़ुद को अपनी मां पर निर्भर मानते हैं । उसका कहना मानते हैं लेकिन आज माँ बाप औलाद को बेईमानी के रास्ते पर खुद धकेल रहे हैं।
वे अपने बच्चों को ज्यादा से ज्यादा दौलतमंद देखना चाहते हैं । जिसके लिए वे खुद भी बेईमानी करते हैं और उनके बच्चे भी उनसे यही सीखते हैं और अपनी मासूमियत खो बैठते हैं जो कि बच्चे की विशेषता थी । मां ने भी सही गाइडेंस देने का अपना गुण खो दिया और बच्चे की मासूमियत भी नष्ट कर दी और तब इस धरती पर नर्क उतर आया हर ओर । इससे मुक्ति का उपाय आप जैसे बुद्धिजीवियों को सोचना ही होगा ।
सादर !
हर नेकी और भलाई के काम में आपके लिए एक सहयोग के लिए
सदा तत्पर
अनवर !!
मीनाक्षी शेषाद्री की एक फिल्म याद आ गयी...जिसमे उसका देवर ही नौकरानी के साथ बलात्कार करता है, और वो रणचंडी का रूप धारण कर लेती है...अंततः उस नौकरानी को इंसाफ मिलता है...बेशक पूरा समाज उसकी खिल्ली उतरता है...उसे पता नहीं कितने दुःख झेलने होते हैं...तो ऐसा ही है हमारा समाज.....और हम यहीं जीते रहेंगे....दिल से आवाज आती है मार डालो ऐसे लोगो को...लेकिन जब यथार्थ में ऐसा कुछ होगा तो क्या ये दिल ऐसा बोलेगा...ये बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह है...!!!
बहुत सुंदर ...
कभी समय मिले तो हमारे ब्लॉग//shiva12877.blogspot.com पर भी अपनी एक नज़र डालें .
रेखा जी,
जिनके पास पैसा है वो गरीबों को इस्तेमाल की चीज समझते हैं !
आपने सही कहा ,समस्या यही है कि दूसरे लोग भी सब कुछ जानते हुए भी ऐसे लोगों का साथ देते है ! वो लोग भी उतने ही दोषी हैं !
आपकी पोस्ट जो सच्ची घटना है , सोचने पर विवश करती है !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
अक्षरशः सत्य कह रही हैं आप
मेरे पड़ोस के लड़के ने किसी के घर की लड़की के प्रति गलत नीयत से घुसने और मुंह दबा कर कुकर्म करने का प्रयास किया था... पहले तो पुलिस ने रिपोर्ट लिखने में आनाकानी की... जैसे तैसे रिपोर्ट लिखी भी गयी तो केस वापस लेने के लिए ऊर्जामंत्री उत्तरप्रदेश के भाई के नाम से, समाचार चैनल के प्रबंधक के नाम से और यहाँ तक कि विभाग की तरफ से फोन पर लड़की के पिता को धमकी दी गयी और केस वापस लेने का दबाव डाला गया... अंततः पुलिस से सांठ गाँठ कर मामला ठंडे बस्ते में चला गया और अपराधी खुला घूम रहा है.
अधिकतर इस तरह के प्रकरण में लड़कियों को ही दोष दिया जाता है.. तर्क यह कि लड़कियां बन संवर कर निकलेंगी तो ऐसे हादसे तो होंगे ही... कितनी घटिया सोच हो गयी है ऐसे लोगों की...
गुनाहगार का साथ देने वाला भी गुनाह में लिप्त है ..वाकई न जाने कैसे कैसे समर्थक होते हैं ...जो बिना सोचे समझे गलत बात का समर्थन करते हैं
दु:खद स्थिति है लेकिन यही वर्तमान है सामाजिक व्यवस्था का।
यही होत है पीड़ित के पक्ष के और जानने वाले उसका साथ देते है और अपराधी के साथ वाले उसका | अपराधी का साथ देने वाले कभी इस बात पर सोचने की जरुरत ही नहीं समझते है की सच्चाई क्या है |
@ बहन रेखा जी ! मैंने अपने वादे के मुताबिक़ एक लेख लिखा है .
कृपया आप और दीगर सभी लोग उसे एक नज़र देख लीजिये और बताइए की उसमें क्या कमी है ?
आपकी महरबानी होगी .
http://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/01/energy-of-anger.html
kitne dukh ki baat hai... I pray that the child gets justice and all the right opportunities to grow up into a strong woman.
स्त्री का एक यथार्थ ये भी हो सकता है, अगर वो चाहे। देखें http://rajey.blogspot.com/पर
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