आज चोखेर बाली ब्लॉग पर कुमारेन्द्र भाई का लड़कियों के द्वारा की गयी माँ की अन्त्येष्टि का आलेख पढ़ा . ऐसी घटनाएँ अब यदा कदा होने लगी हैं और हमें इस पर नाज होना चाहिए. पर इस पर ही एक टिप्पणी भी देखी कि यही लड़कियाँ जब बहू बन जाती हैं तो अपने दायित्वों से विमुख क्यों हो जाती हैं?
इस बारे में कहना है कि पाँचों अंगुलियाँ बराबर नहीं होती , हाँ अगर आजकल ऐसा हो रहा है तो इसलिए कि हमारी अपनी बेटियों को दी जा रही शिक्षा में कुछ कमी है या फिर हम खुद कहीं गलत कर रहे हैं. हमारे बच्चे हमको ही देख कर सीखते हैं. अगर हम अपने माता पिता या सास ससुर को सम्मान देते हैं तो शायद ही घर ही बच्चे उनका तिरस्कार करें या फिर बेटियाँ अपने घर में तिरस्कार करें. संभव ही नहीं है. अपवाद इसके भी हो सकते हैं.
मेरी शुरू से ईश्वर से यही कामना थी कि जैसा मैं अपनी ससुराल में सास ससुर के साथ अपने व्यवहार को करूँ वैसा ही मेरे माँ पापा को उनकी बहू से भी मिले . शायद मेरी धारणा सही थी और मुझे अपनी धारणा पर फख्र है. मेरे इसी व्यवहार से शायद मेरी बेटियों में भी ऐसे ही संस्कार आये हैं. सिर्फ लड़कियाँ ही क्यों? बेटों पर भी ये बात लागू होती है. अगर वे अपने माता पिता और सास ससुर को समानता से देखें तो शायद कोई कारण नहीं कि बहू उनसे इसके विपरीत अपेक्षा रखे या फिर उनको उनके कार्य से च्युत करे. कुछ साल पहले मेरी माँ की कूल्हे की हड्डी टूट गयी और उरई में उनका आपरेशन हम नहीं करवाना चाहते थे इसलिए भाई साहब को कहा कि वे कानपुर ले आयें. उनका आपरेशन जिस अस्पताल से मेरे पति जुड़े थे उसी में करवाया गया. वैसे भी वे कोई भी बीमार हो उसकी देखभाल पूरे मन से करते हैं . इसके लिए परिवार , पड़ोस या मित्र की सीमा निर्धारित नहीं है. मेरी माँ के लिए भी वे हर चीज में बहुत सावधानी बरत रहे थे. वहाँ अस्पताल में किसी ने व्यंग्य किया - 'सास है इसलिए इतनी केयर हो रही है, माँ की चाहे न करते ?'
उनका जवाब था - मेरे लिए दोनों बराबर हैं और अपनी माँ की तो मैं पिछले ३९ साल से बराबर सेवा कर रहा हूँ. (मेरी सास जी का इतने वर्ष पहले एक भयानक एक्सीडेंट हुआ था, जिसमें वे ३ वर्ष अस्पताल में रहीं और फिर शारीरिक तौर पर विकलांग हो गयीं थीं. ) ये बात बिल्कुल सच है और उन्होंने कभी जरूरत पड़ने पर मेरे परिवार की उपेक्षा नहीं की.मुझसे भी कभी ये कहने कि जरूरत नहीं पड़ी कि तुम्हें ऐसा करना चाहिए. जिसको इस सम्बन्ध में जो भी सहायता जरूरी हुई . उसको तन मन और धन से पूरा किया.
बेटों की सोच में परिवर्तन अपने आप नहीं आता है. अक्सर सुना जाता है कि शादी के पहले मेरा बेटा ऐसा नहीं था. शादी के बाद बदल गया. इसमें सीधे सीधे पत्नी पर आरोप आता है. इसके पीछे सिर्फ पत्नी ही नहीं होती है बल्कि उसके पीछे उसकी वे शिक्षाएं भी होती हैं जो उसको अपने घर से मिली होती हैं. हर माँ का यही प्रयास होना चाहिए कि उन्हें अच्छी संस्कारित बेटी दें और उनसे संस्कारित बेटा अपने घर में लें. माँ बाप से उनका बेटा छीने नहीं.
इस बारे में कहना है कि पाँचों अंगुलियाँ बराबर नहीं होती , हाँ अगर आजकल ऐसा हो रहा है तो इसलिए कि हमारी अपनी बेटियों को दी जा रही शिक्षा में कुछ कमी है या फिर हम खुद कहीं गलत कर रहे हैं. हमारे बच्चे हमको ही देख कर सीखते हैं. अगर हम अपने माता पिता या सास ससुर को सम्मान देते हैं तो शायद ही घर ही बच्चे उनका तिरस्कार करें या फिर बेटियाँ अपने घर में तिरस्कार करें. संभव ही नहीं है. अपवाद इसके भी हो सकते हैं.
मेरी शुरू से ईश्वर से यही कामना थी कि जैसा मैं अपनी ससुराल में सास ससुर के साथ अपने व्यवहार को करूँ वैसा ही मेरे माँ पापा को उनकी बहू से भी मिले . शायद मेरी धारणा सही थी और मुझे अपनी धारणा पर फख्र है. मेरे इसी व्यवहार से शायद मेरी बेटियों में भी ऐसे ही संस्कार आये हैं. सिर्फ लड़कियाँ ही क्यों? बेटों पर भी ये बात लागू होती है. अगर वे अपने माता पिता और सास ससुर को समानता से देखें तो शायद कोई कारण नहीं कि बहू उनसे इसके विपरीत अपेक्षा रखे या फिर उनको उनके कार्य से च्युत करे. कुछ साल पहले मेरी माँ की कूल्हे की हड्डी टूट गयी और उरई में उनका आपरेशन हम नहीं करवाना चाहते थे इसलिए भाई साहब को कहा कि वे कानपुर ले आयें. उनका आपरेशन जिस अस्पताल से मेरे पति जुड़े थे उसी में करवाया गया. वैसे भी वे कोई भी बीमार हो उसकी देखभाल पूरे मन से करते हैं . इसके लिए परिवार , पड़ोस या मित्र की सीमा निर्धारित नहीं है. मेरी माँ के लिए भी वे हर चीज में बहुत सावधानी बरत रहे थे. वहाँ अस्पताल में किसी ने व्यंग्य किया - 'सास है इसलिए इतनी केयर हो रही है, माँ की चाहे न करते ?'
उनका जवाब था - मेरे लिए दोनों बराबर हैं और अपनी माँ की तो मैं पिछले ३९ साल से बराबर सेवा कर रहा हूँ. (मेरी सास जी का इतने वर्ष पहले एक भयानक एक्सीडेंट हुआ था, जिसमें वे ३ वर्ष अस्पताल में रहीं और फिर शारीरिक तौर पर विकलांग हो गयीं थीं. ) ये बात बिल्कुल सच है और उन्होंने कभी जरूरत पड़ने पर मेरे परिवार की उपेक्षा नहीं की.मुझसे भी कभी ये कहने कि जरूरत नहीं पड़ी कि तुम्हें ऐसा करना चाहिए. जिसको इस सम्बन्ध में जो भी सहायता जरूरी हुई . उसको तन मन और धन से पूरा किया.
बेटों की सोच में परिवर्तन अपने आप नहीं आता है. अक्सर सुना जाता है कि शादी के पहले मेरा बेटा ऐसा नहीं था. शादी के बाद बदल गया. इसमें सीधे सीधे पत्नी पर आरोप आता है. इसके पीछे सिर्फ पत्नी ही नहीं होती है बल्कि उसके पीछे उसकी वे शिक्षाएं भी होती हैं जो उसको अपने घर से मिली होती हैं. हर माँ का यही प्रयास होना चाहिए कि उन्हें अच्छी संस्कारित बेटी दें और उनसे संस्कारित बेटा अपने घर में लें. माँ बाप से उनका बेटा छीने नहीं.
9 टिप्पणियां:
इसके पीछे सिर्फ पत्नी ही नहीं होती है बल्कि उसके पीछे उसकी वे शिक्षाएं भी होती हैं जो उसको अपने घर से मिली होती हैं.
यह बात शत प्रतिशत सही है ....विचारणीय पोस्ट
यह बात सही है
गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाइयाँ !!
Happy Republic Day.........Jai HIND
आपने बिलकुल सही कहा
बहुत ही सुन्दर पोस्ट
आभार
गणतंत्र दिवस की मंगलकामनाएं
आप की बात से सॊ प्रतिशत सहमत हे जी, घर को बसाने ओर उजाडने मे पत्नि का ही नही उस के मायके परिवार का भी बहुत हाथ होता हे, अच्छे संस्कारी परिवार की लडकी घर को स्वर्ग बना देगी, ओर ऒंछे संस्कार वाली स्वर्ग जेसे घर को भी नर्क समान बना देती हे, सहमत हे जी आप से
बेटियों को अच्छे संस्कार दिए जाने चाहिए , और बेटियों को ही क्यों , बेटों को भी ताकि दो परिवारों के बीच प्रेम और सौहार्द्र बना रहे ...
बहू के आने के बाद घर टूटता है तो इस का कारण उसके संस्कार ही हों आवश्यक नहीं , बेटे के बहुत से गुण /अवगुण उसकी शादी के बाद खटकने लगते हैं क्योंकि एक ससुराल वालों का एक पूर्वाग्रह सा होता है ..मैं नहीं कहती की हर मामले में ही ऐसा होता होगा , मगर अक्सर ऐसा भी होता है बेटे के किसी भी कार्य का ताना बहू को दिया जाता है...और बेटा अपने ससुराल वालों के काम आये तो उसे छीन लेने का ताना भी और छोटी छोटी बातें बढ़कर बड़ी हो जाती है , परिवार का विघटन हो जाता है ....देर सवेर अपनी गलतियों का पता होता है दोनों पक्षों को , मगर बीता समय लौट कर नहीं आ सकता ...इसलिए पहले ही दोनों पक्षों द्वारा समझदारी दिखाते हुए कुछ बातों को नजरंदाज किया जाए तो आपसी प्रेम बना रहता है और परिवार संगठित होता है ..
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.....
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इसके पीछे सिर्फ पत्नी ही नहीं होती है बल्कि उसके पीछे उसकी वे शिक्षाएं भी होती हैं जो उसको अपने घर से मिली होती हैं.
बिल्कुल सही बात कही है आपने…………पूरी तरह सहमत्।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (27/1/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
बहुत सार्थक विवेचन..गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाये !
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