देश और समाज कि प्रगति और के लिए सरकार तो बहुत कुछ कर रही है लेकिन यथार्थ क्या है? इसके सही और सच्ची तस्वीर पेश कर रही है - ये घटना जो अभी २४ घंटे पहले ही घटी है .
स्कूल के बच्चों को स्कूल से पढ़ाई के समय में कुछ मजदूरी का लालच देकर किसी अध्यापक के खेत में आलू खोदने के लिए ट्रैक्टर से ले जाया गया. ट्रैक्टर चालक ने मानव रहित क्रासिंग पर सामने आती हुई ट्रेन को अनदेखा कर क्रासिंग पार करने का दुस्साहस किया और ट्राली ट्रेन कि चपेट में आ गयी. जिसमें ९ की मृत्यु हो गयी. इन में ५ लड़के , २ लड़कियाँ और २ महिलाएं थीं. ये बच्चे स्कूल में पढ़ने वाले १० से १५ साल के बीच के थे. कितने घर उजड़ गए?
ये एक बहुत छोटी घटना हो सकती है, क्योंकि ऐसे एक्सिडेंट रोज ही हुआ करते हैं और हम एक खबर की तरह पढ़ कर अखबार रख देते हैं किन्तु ये घटना कितने कानूनों के ठेंगा दिखा रही है.
१. बाल श्रमिक निरोधक क़ानून.
२. अनिवार्य शिक्षा
३. अधिकारों का दुरूपयोग
इतनी कम उम्र के बच्चों को खेत में आलू खोदने के लिए श्रमिक के रूप में प्रयोग करना दंडनीय अपराध है. उस समय और भी दंडनीय बन जाता है जब कि ये कार्य एक शिक्षक के द्वारा अपने खेत में करवाने के लिए हो रहा हो.
वे बच्चे माँ-बाप ने पढ़ने के लिए स्कूल भेजे थे न कि मजदूरी के लिए. बच्चों को पैसे का लालच देकर खेतों पर ले जाना कहाँ और किस क़ानून में लिखा है? दबंगों को तो सुना था कि बेगार और जबरदस्ती अपने खेतों और फार्म हाउस में काम करवाने के लिए ले जाते हैं लेकिन एक शिक्षक ये काम करे तो अपराध कौन तय करेगा और दंड कौन?
अनिवार्य शिक्षा के तहत गाँव के बच्चे स्कूल भेजे जाने लगे हैं, वह भी प्रतिशत अभी बहुत नहीं है . श्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षक या शिक्षक मित्र वही गाँव के होते हैं और बहुधन्धी भी होते हैं. अपने अधिकारों का प्रयोग करके उस शिक्षा के कानून पर कालिख पोत दी. बच्चे पढ़ने आते हैं और वे मजदूरी के लिए ले जाते हैं. अगर कल वे बिना पढ़े माँ-बाप अपने बच्चों को स्कूल भेजने से इनकार कर दें तो? बच्चे हर माँ-बाप के लिए जान से ज्यादा प्यारे होते हैं वे सोचेंगे कि अनपढ़ ही सही मेरे बच्चे मेरे पास तो रहेंगे.
शिक्षक के ऊपर पूरे स्कूल का दारोमदार होता है, गाँव में तो और भी क्योंकि वहाँ एक या दो शिक्षक होते हैं. बाकी तो सिर्फ वेतन भोगी होते हैं. अगर शहर के हैं तो कभी एक दिन जाकर दस्तखत करके वेतन उठा लेते हैं. बाकी तो गाँव के लिए लोग देख लेते हैं. स्कूल के जिम्मेदारी होती है शिक्षा देने कि और शिक्षक अपने अधिकारों का दुरूपयोग करते हुए , विद्यालय के समय बच्चों को दूसरे कामों में प्रयोग करते हैं. खेतों के काम के लिए मुफ्त के मजदूर मिल गए या फिर १०-२० रुपयों में काम चल गया और वे तो स्कूल में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा ही रहे हैं.
इस सब कानूनों के अबहेलना का परिणाम क्या होगा ?
ये तो नहीं पता लेकिन सोचने पर मजबूर कर रहा है कि क्या शिक्षक , विद्यालय पर विश्वास किया जा सकेगा?
इन शिक्षकों का दंड कौन निर्धारित करेगा?
क्या वास्तव में ये दण्डित होंगे?
किस दफा में इनका अपराध रखा जाएगा?
बुधवार, 10 मार्च 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
6 टिप्पणियां:
रेखा जी, आपेकी बात सही है समाज में आज ऐसे नियमों की वजह से कई दिक्कते हो रही है और साथ में जिस तरह गे-कानून के बाद अब सेक्स वर्करों को कानूनी मान्यता दी जारीह है उसके खिलाफ आवाज उठानी ही पडेगा ...आगे केलिए कृपा मेरा ब्ळॉग़ पढे http://bit.ly/9Ctt9K
रेखा जी इतना ही कहूँगा की दुर्घटना का शिकार व्यक्ति अगर पिछड़ा, अति पिछड़ा, अति अति पिछड़ा वर्ग का है, या किसी अल्पसंख्यक वर्ग का है तो लालू पासवान से संपर्क किया जा सकता है और अगर कोई दलित है तो मायावती को जांच और मुवावजे के नाम पर सरकार को चुना लगाने और घडियाली आंसू बहाने के लिए कहा जा सकता है. ये लोग ऐसे ही लाशो पर वोटो की राजनीति के माहिर शैतान है. अगर वो सामान्य गरीब है तो फिर गरीब का तो भगवान भी नहीं होता, तो देश और नेता इसमें क्या कर सकते है. सचमुच ये हर्दय विदारक घटना है लेकिन अफ़सोस आज हम लोगो में इंसानियत बची नहीं और सभ्य हमारा समाज कभी हो नहीं सका इसलिए देश में आज आम इन्सान जानवर से भी बदतर जिन्दगी जीने को मजबूर है.
atyant saarwaan aur saarthak lekh.aise lekhon kee zaroorat hai.
Thanks shahroz bhai.
बहुत ही बेहतरीन और सार्थक लेख आम जाग्रति की आवश्यकता
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084
aise hi lekho ke dvara shayd hmme bhi kuch karne ki bhavna jage anytha ye sirf khbre hi rh jayegi .atynt vichrneey aalekh.
एक टिप्पणी भेजें