घर के आँगन में एक बच्चे की चहक के लिए परेशान एक दंपत्ति - कितने प्रयास किये, कोई डाक्टर नहीं छोड़ा, कोई मंदिर और मजार नहीं छोड़ी. भाग्य को शायद ये मंजूर न था की उस घर में कोई चिराग रोशन हो.
फिर एक दिन उसकी डाक्टर मित्र ने उसको फ़ोन किया कि तुम दोनों सोमवार को यहाँ पहुँचो. वे बुधवार को पहुँच पाए - उस डाक्टर ने एक जीवन समाप्त करवाने आई माँ से अनुनय की थी कि वह बच्चे को जन्मने दे. खर्च वह उठाएगी. माँ जन्म देते ही चली गयी और डाक्टर बच्ची को अपने नर्सिंग होम में ही रखे रही. उन दोनों के पहुँचते है , उसने गाड़ी से नहीं उतरने दिया और निश्छल के गोद में बच्ची को देकर बोली - 'बधाई हो निश्छल तुम अब पिता बन गए.'
निशा ने बच्चे को गोद में लिया तो जी भर आया क्योंकि उसने झेला था कैसे पढ़ी लिखी औरतें भी अपने बच्चे को उसको देने में हिचकती थी क्यों? क्योंकि उसके कोई बच्चा नहीं था. उसकी आँखें आसुंयों से भीग गयीं और वह डाक्टर को धन्यवाद ही दे सकी क्योंकि ये उसका अपना बच्चा होगा. डाक्टर ने किसी को कुछ भी नहीं बताया न उसके होने वाली माँ को कि बच्चा किसको देंगी और न निशा को कि ये बच्चा किस माँ का है? हाँ एक थर्मस में दूध देकर उन्हें बाहर से ही विदा कर दिया.
निशा बच्चे को लेकर अपनी माँ के घर चली , रास्ते में बच्ची को दूध पिलाया लेकिन वह छोटी बच्ची बोतल से पी नहीं पा रही थी और फिर गर्मी की वजह से दूध ख़राब हो गया. निशा से बच्ची का रोना नहीं देखा जा रहा था. उसको लग रहा था की क्या उसकी गोद इसके बाद भी सूनी हो जायेगी? बच्ची के होंठ नीले पड़ने लगे थे कुछ भूख की वजह से और कुछ रोने से. वह कितनी विवश थी? पास बैठी महिला ने कहा कि आप अपना दूध पिलाइए शायद चुप हो जाए. किन्तु? इसका उसके पास कोई विकल्प और उत्तर न था. आखिर निशा रोने लगी कि इस बच्ची को कैसे चुप कराऊँ मन में चल रहा था कि अब क्या होगा ?
ट्रेन में पिछली ओर बैठी एक बच्चे की माँ उठकर आई और बोली - 'अगर आपको बुरा न लगे तो मैं इसे अपना दूध पिला देती हूँ, शायद चुप हो जाए.' निशा को अँधेरे में रौशनी की एक किरण दिखाई दी. उसने बच्ची को उस महिला की गोद में दे दिया. जब माँ का दूध मिला तो पेट भरने पर वह सो गयी और निशा ने एक राहत की सांस ली. उसने उस अनजानी माँ को बहुत दुआएं दीं , जिसने एक नन्हीं जान को अपने दूध में अमृत की वो बूँदें पिला दीं जिससे उसकी जान बच गई. वह उस माँ के दूध की कर्जदार हो गयी. जिसको वो तो कभी चुका ही नहीं सकती थी.
वो बच्चा गोद लेने वाली माँ मेरी अपनी छोटी बहन ही है.
गुरुवार, 18 मार्च 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
10 टिप्पणियां:
ओह्ह रेखा दी,झुरझुरी सी हो आई....और आँखें नम हो आयीं.....इतने सालों से जानती हूँ आपको...और ये किस्सा अब सुनाया not fair :( .
वह बच्ची जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करे और अपने माँ का दामन खुशियों से भर दे.
romanchit ho utha mann......amrit ki bunden to dono maa me thi
nice
अमिय बिदु रेखा बने, ममता वर्तुल खींच.
मातु यशोदा-देवकी, लें कान्हा को भींच..
माँ तो माँ है, नहीं है, ममता का कुछ मोल.
कोई तराजू दूध को, अब तक सका न तोल..
behad romanchit kar gai katha
mujhe ek kahani yaad aa gai
idhar dekhiye http://sanskaardhani.blogspot.com/ kuchh der baad
mamta ka itna khubsurat drshay akho me nmi de gya .dono maa ko naman aur bachhi ko anek ashirwad.
ममतामयी देवी में मातृत्व कभी ख़त्म नहीं होता|
Very True!!!
"RAM"
maa ka mann aisa hi hota hai.......janam dene wali maa ke alawa ek maa YASODA bhi hoti hai........:)
god bless...........to that child!!
aapki tarif bahut dino se sun rahi thi apne mitr se ,aur aane ki utsukta bhi bani rahi aaj lekh padhkar man me santosh hua ,kyonki inhi achchhaiyon ki wazah se duniya aaj bhi kayam hai .agar inse kuchh sikh le le to hamme me nirasha bhi na ho .sundar .
कहानी मन को छु गयी... इतने कम शब्दों में इतना भाव था,शायद यहीं उत्कृष्ट साहित्य कहलाता है..आपके ब्लॉग से मुझे बहुत सिखने को मिला|
सधन्यवाद,
आस्था "देव"
एक टिप्पणी भेजें