घर में कैद करके रख.दिया इस कोरोना न । यही एक भाई ऐसा था जो चक्कर लगा ही जाता ।
उस दिन रति ने उसे बहुत डाँटा - "क्यों निकलते हो बाहर धूप में , घर में नहीं रहा जाता ।"
"क्या करूँ सबकी खोज खबर रखनी पड़ती है ।" कहते हुए बेफिक्री से हँस दिया ।
" इस समय जैसे तुमने ही सारा ठेका ले रखा है । इतनी तेज धूप पड़ रही है , ऊपर से बाइक से चलना ।"
"चिंता मत करो बड़ी कड़ी जान हूँ , मुझे कुछ नहीं होनेवाला ।"
बस उससे रति की वही आखिरी मुलाकात थी । उसी दिन घर पहुँचकर उसे बुखार हुआ । फिर टेस्टिंग में पॉजिटिव निकला और कोरोना की जद्दोजेहद शुरू ।
बस चार दिन- अस्पताल में एडमिट होना , ऑक्सीजन की कमी, आईसीयू और फिर वेंटीलेटर पर जाना और रात भतीजे का फोन आना - "बुआ पापा नहीं रहे।"
आधी रात वह बैठी रोती रही , उसके बाद मिलना ही न हो सका । शाम तक सब खत्म ।
भाभी से मुलाकात भी चार महीने पहले भतीजे की शादी में हुई थी , उसका वही खिलखिलाता चेहरा सामने घूमता है। अब फोन करके वह क्या समझाये? खुद धैर्य नहीं रख पा रही थी तो जिसकी दुनिया ही उजड़ गई हो ?
अचानक आज कॉल आई, नाम भाई का ही आया , एकदम धक से रह गई । दूसरी तरफ भाभी थी । रति तो हैलो कहते ही रो पड़ी । दूसरी तरफ से आवाज आने लगी - "दीदी रोओ मत , आपका भाई गया है न , भाभी अभी जिंदा है । उनके जितना तो नहीं कर पाऊँगी, लेकिन आपका मायका तो रहेगा सदा ।"
रति भाभी के धैर्य और प्यार से कही बात को सुनकर फफक फफक कर रो पड़ी।
3 टिप्पणियां:
हृदय स्पर्शी।
दारूणा।
मर्मस्पर्शी सृजन ।
बहुत मार्मिक अभिव्यक्ति।
सादर
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