मेरी यह बहुत ही बुरी आदत है कि मैं अपने उम्र वालों के साथ ही नहीं बल्कि अपने से बड़ों और छोटों के साथ भी उतनी ही घुली मिली रहती हूँ कि वे अपनी समस्याएं और तकलीफें बयां कर देते है।
ऐसी ही घटना दिनों सामने आई की इंसान के जीवन में कभी कभी इंसान से जानवर अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। वैसे तो ये आम बात है कि बड़े घरों में कुत्ते नौकरों से बेहतर जीवन जीते हैं। वह बड़े घरों की बाते हैं लेकिन ये बात अब हमें अपने मध्यम वर्गीय परिवारों में भी देखने को मिलने लगी है। माताजी के घर में उनका बेटा और बहू और एक कुत्ता है। उनके दोनों बच्चे बाहर रहते हैं सो वह कुत्ता ही उनके लिए बेटा बन चुका है। पत्नी के मायके में शादी थी सो वह पति पत्नी ससुराल चले गए . घर में माँ और कुत्ता बचा . बहू रानी सास के लिए तीन दिन के लिए रोटियां कैसरोल में सेंक कर रख गयीं क्योंकि उनको कुछ कम दिखलाई देता है और सब्जी भी बना कर फ्रिज में रख गयी लेकिन कुत्ते के लिए काम करने वाली से कह कर गयी कि ये गरम रोटी ही खाता है सो जब वह काम करने आये तो इसको गरम रोटी बना कर खिला दे और सास से कह दिया कि जब इसका दूध का बरतन खाली हो जाए तो उसमें दूध भर दिया करें . इस घर में सास को एक कप दूध नसीब नहीं है और कुत्ते के लिए 1 किलो दूध आता है . पति प्राइवेट नौकरी में थे फंड मिला था बच्चे के लिए घर बनवा दिया और पत्नी के लिए जो कुछ छोड़ा था वह बेटे ने समय समय पर निकाल लिया ।
एकांत पाकर माताजी ने दिल और मुंह दोनों खोल कर हलके होना चाहा क्योंकि उनकी उम्र के लोग अब कम ही बचे हैं सो वह किसके पास जाएँ और कहाँ जाकर बैठें सो अपने कमरे में चुपचाप लेटी रहती हैं। आँखें कमजोर हैं तो टीवी भी नहीं देख पाती। कई कई दिन हो जाते हैं - बगैर किसी से बात किये। बहू बेटा अपने कमरे में उस कुत्ते के साथ बातें करते रहते हैं . जितना समय वह कुत्ते के साथ गुजरते हैं उसका अगर एक प्रतिशत भी उनके पास बैठ कर गुजारें तो उनको भी लगे कि वह इसी घर का सदस्य हैं।
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