नितिन को निधि की बहुत चिंता हो रही थी कि प्रसव के बाद
कैसे सभाँल पायेगी वह दो दो बच्चों को ? उसका दिमाग चारों तरफ दौड़ रहा था
कि आखिर किसको बुलायें ? माँ बीमार रहती है , बहनों के अपने परिवार हैं और
बच्चे पढ़ने वाले हैं । संयुक्त परिवार में बचपन जिया था तो प्यार तो सभी
को आपस में था लेकिन हालात की मजबूरी ! कई दिनों तक सोचने के बाद उसे अपनी
चचेरी बहन निभा का ख्याल आया ।
निभा दी
की शादी को दस साल हो गये थे लेकिन वह माँ नहीं बन पायी । पति के सहयोग से
वह उस घर में थी ,.नहीं तो ससुराल वालों ने तो कब का घर से निकाल दिया होता । बाँझ
का तमगा पहने वह घर के बोझ को ढोने वाली एक नौकरानी थी ।
नितिन ने अपने जीजाजी से बात की - 'दी बहुत दिनों से आई भी नहीं है और निधि को किसी बड़े की जरूरत भी है ।'
निभा के पति ने स्वीकृति दे दी । नितिन निभा को लेने गया तो निभा की
सास का कटाक्ष - 'इस बाँझ को लिए जाते हो , अरे इससे तो अच्छा कोई नौकरानी
रख लेते । '
नितिन ये तो जानता था कि निभा दी
की सास बहुत तेज हैं लेकिन उसके सामने ही उनके लिए ऐसा बोलेंगी उसे उम्मीद
नहीं थी । वह निभा को लेकर चुपचाप चला आया ।
समय
पर निधि ने दो बेटों को जन्म दिया , जिनमें एक बहुत कमजोर था उसके बचने की
उम्मीद बहुत कम थी । डॉक्टर ने उसे वहीं अपनी देखरेख में रखा । निधि एक
बच्चे को लेकर घर आ गयी । बच्चे के लिए निभा ने घर आने से इंकार कर दिया ।
वह अस्पताल में ही एक बेंच पर बैठी रहती , डॉक्टर से हालचाल पूछती रहती और
भगवान से दुआ -- ' हे ईश्वर तूने मेरी नहीं सुनी लेकिन उस माँ के लिए ,
जिसने इतना कष्ट सहा है , इस बच्चे को जीवनदान दे दे ।'
पंद्रह दिन बाद उसकी प्रार्थना रंग लाई और बच्चे को घर भेज दिया गया ।
घर में सभी उसकी सराहना कर रहे थे । उस बच्चे की पूरी देखभाल निभा ही करती
थी ।
आखिर पति का संदेश आया कि अगर सब कुशल
मंगल हो तो वह वापस आ जाये । नितिन बोला - ' अब एक हफ्ते बाद रक्षाबंधन है
दी , बहुत दिनों से कोई नहीं आया । अब राखी बँधवा कर ही भेजूँगा ।
नितिन ने रक्षाबंधन तक रोकने की अनुमति जीजाजी से भी ले ली ।
रक्षाबंधन के बाद निभा को छोड़ने के लिए नितिन तैयार हुआ तो निभा के बैग के
अतिरिक्त एक बैग और था । निभा निकलने लगी तो निधि देवांश को लेकर आई और
निभा की गोद में दे दिया । निभा उसे छोड़कर जाने की बेला आने पर सीने से
लगा कर रो पड़ी ।
नितिन ने निभा की पीठ पर हाथ रखा
और बोला - ' दी रोइए मत , देवांश आपकी राखी का तोहफा है , इसे जीवन आपने
दिया है और अब आपका बेटा है ।'
निभा को लगा कि वह क्या सुन रही है ? उसने देवांश को सीने से कस कर चिपका लिया ।
8 टिप्पणियां:
दिल को छूती कहानी।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 04 अगस्त 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अहा!कितना प्यारा तोहफा और भाई बहन का प्यार
बहुत सुंदर कहानी।
लाजवाब...
बहुत सुन्दर...
मर्मस्पर्शी कहानी .शायद ही ऐसा उपहार किसी भाई ने दिया हो .
मर्मस्पर्शी प्रस्तुति c
... प्यारा तोहफा मर्मस्पर्शी प्रस्तुति
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