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बुधवार, 2 अगस्त 2017

राखी का तोहफा ! done

                   नितिन को निधि की बहुत चिंता हो रही थी कि प्रसव के बाद कैसे सभाँल पायेगी वह दो दो बच्चों को ? उसका दिमाग चारों तरफ दौड़ रहा था कि आखिर किसको बुलायें ?  माँ बीमार रहती है , बहनों के अपने परिवार हैं और बच्चे पढ़ने वाले हैं । संयुक्त परिवार में बचपन जिया था तो प्यार तो सभी को आपस में था लेकिन हालात की मजबूरी ! कई दिनों तक सोचने के बाद उसे अपनी चचेरी बहन निभा का ख्याल आया ।
            निभा दी की शादी को दस साल हो गये थे लेकिन वह माँ नहीं बन पायी । पति के सहयोग से वह उस घर में थी ,.नहीं तो ससुराल वालों ने तो कब का घर से निकाल दिया होता । बाँझ का तमगा पहने वह घर के बोझ को ढोने वाली एक नौकरानी थी । 
       नितिन ने अपने जीजाजी से बात की - 'दी बहुत दिनों से आई भी नहीं है और निधि को किसी बड़े की जरूरत भी है ।' 
        निभा के पति ने स्वीकृति दे दी । नितिन निभा को लेने गया तो निभा की सास का कटाक्ष - 'इस बाँझ को लिए जाते हो , अरे इससे तो अच्छा कोई नौकरानी रख लेते । '
       नितिन ये तो जानता था कि निभा दी की सास बहुत तेज हैं लेकिन उसके सामने ही उनके लिए ऐसा बोलेंगी उसे उम्मीद नहीं थी । वह निभा को लेकर चुपचाप चला आया ।
   समय पर निधि ने दो बेटों को जन्म  दिया , जिनमें एक बहुत कमजोर था उसके बचने की उम्मीद बहुत कम थी । डॉक्टर ने उसे वहीं अपनी देखरेख में रखा । निधि एक बच्चे को लेकर घर आ गयी । बच्चे के लिए निभा ने घर आने से इंकार कर दिया । वह अस्पताल में ही एक बेंच पर बैठी रहती , डॉक्टर से हालचाल पूछती रहती और भगवान से दुआ -- ' हे ईश्वर तूने मेरी नहीं सुनी लेकिन उस माँ के लिए , जिसने इतना कष्ट सहा है  , इस बच्चे को जीवनदान दे दे ।'
     पंद्रह दिन बाद उसकी प्रार्थना रंग लाई और बच्चे को घर भेज दिया गया । घर में सभी उसकी सराहना कर रहे थे । उस बच्चे की पूरी देखभाल निभा ही करती थी ।
       आखिर पति का संदेश आया कि अगर सब कुशल मंगल हो तो वह वापस आ जाये । नितिन बोला - ' अब एक हफ्ते बाद रक्षाबंधन है दी , बहुत दिनों से कोई नहीं आया । अब राखी बँधवा कर ही भेजूँगा ।
          नितिन ने रक्षाबंधन तक रोकने की अनुमति जीजाजी से भी ले ली । रक्षाबंधन के बाद निभा को छोड़ने के लिए नितिन तैयार हुआ तो निभा के बैग के अतिरिक्त एक बैग और था । निभा निकलने लगी तो निधि देवांश को लेकर आई और निभा की गोद में दे दिया । निभा उसे छोड़कर जाने की बेला आने पर  सीने से लगा कर रो पड़ी ।
    नितिन ने निभा की पीठ पर हाथ रखा और बोला - ' दी रोइए मत , देवांश आपकी राखी का तोहफा है , इसे जीवन आपने दिया है और अब आपका बेटा है ।' 
       निभा को लगा कि वह क्या सुन रही है ?  उसने देवांश को सीने से कस कर चिपका लिया ।

8 टिप्‍पणियां:

Jyoti Dehliwal ने कहा…

दिल को छूती कहानी।

Digvijay Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 04 अगस्त 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Archana Chaoji ने कहा…

अहा!कितना प्यारा तोहफा और भाई बहन का प्यार

Sweta sinha ने कहा…

बहुत सुंदर कहानी।

Sudha Devrani ने कहा…

लाजवाब...
बहुत सुन्दर...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

मर्मस्पर्शी कहानी .शायद ही ऐसा उपहार किसी भाई ने दिया हो .

कविता रावत ने कहा…

मर्मस्पर्शी प्रस्तुति c

संजय भास्‍कर ने कहा…

... प्यारा तोहफा मर्मस्पर्शी प्रस्तुति