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बुधवार, 19 अक्तूबर 2016

करवा चौथ !

                          रमेश बार के बाहर साहब का इन्तजार कर रहा था और बार बार घडी भी देख रहा था।  सुनीता ने कहा था कि  जल्दी आ जाना आठ बजे तक चाँद निकल आएगा तो पूजा तो तभी करेगी न जब वो वहां पहुँच जाएगा। रोज की बात होती तो चाहे जब पहुँच जाये।
                              सात बजने वाला था , साहब अभी मेम साहब के लिए कुछ खरीदने के लिए कह रहे थे सो बाजार में भी समय लगेगा।  साहब को फ़ोन लगाने का साहस तो उसमें न था लेकिन सुनीता की भी चिंता थी उसको।
                  रमेश गाड़ी से उतर कर बार में गया तो साहब एक मेम साहब के साथ ड्रिंक ले रहे थे।  उसके दिमाग में एकदम कौंधा  कि  मेम साहब भी तो करवा चौथ व्रत होंगी लेकिन वह व्यवधान भी नहीं डाल  सकता था।  जब बहुत देर होने लगी तो उसने फोन मिलाया --
" साहब आज जल्दी घर पहुँचना होगा आपको भी , करवा चौथ है न। "
" नहीं नहीं कोई जल्दी नहीं। ."
"लेकिन साहब मुझे तो जल्दी पहुँचना होगा। "
"ओह तेरी पत्नी व्रत होगी , तू ही अच्छा है कम से कम इसी बहाने पूजा करवा लेता है अपनी।  अच्छा सुन गाड़ी तो घर पर छोड़कर निकल जा, मैं आ जाऊँगा। '
                    रमेश गाड़ी गैरेज में खड़ी करके चाबी देने के लिए अंदर जाता वैसे ही मेमसाहब  सजी धजी आ गयीं - 'रमेश मुझे क्लब ले चलो , करवा चौथ स्पेशल का प्रोग्राम है। "
"मेम साहब मुझे भी घर जाना है , सुनीता मेरी रास्ता देख रही होगी। "
"अच्छा अच्छा  तू जा , चाबी मुझे दे मैं खुद चली जाऊँगी। " चाबी लेकर मेम साहब गार्ड से बोली - ' साहब आएं तो कह देना डिनर ले लें मुझे डिनर वहीँ करना है। "
                                   रमेश सोच रहा था कि शायद बड़े लोगों में ऐसा ही होता होगा।

4 टिप्‍पणियां:

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

सटीक ... भावनाएं सब जगह नहीं होतीं

रश्मि प्रभा... ने कहा…

हर जगह के अपने रंग !
पूजा आस्था से अलग शो ऑफ हो जाये तो किसको क्या कहा जाए और समझा जाए !
ये तथाकथित बड़े लोग हैं

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 20-10-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2501 में दिया जाएगा
धन्यवाद

संध्या शर्मा ने कहा…

संस्कार और संस्कृति आधुनिकता की होड़ में सिर्फ दिखावा बनकर रह गए हैं, आत्मा कहीं खो गई ... समाज की कड़वी सच्चाई बयान करती लघुकथा