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बुधवार, 12 सितंबर 2012

अतीत का दंश !

                       काम करने वाली की पोती आई -' दादी के हाथ में कील घुस गयी है , वो आज नहीं आ पायेगी। '
सुनकर गृहस्वामिनी के पैरों तले खिसक  जमीन  गयी , कैसे करेगी? यह सब अपने ही काम नहीं निबट पाते  हैं . अचानक मालकिन वाली बुद्धि जागृत हुई - 'सुन तू मेरे सारे  बर्तन साफ कर दे। तेरी दादी अब तुझे बना कर तो कुछ खिला नहीं पायेगी . मैं तुझे  देती हूँ (वह सुबह काम वाली को नाश्ता देती थीं). 
                      वह आठ साल की बच्ची थी , जिसकी माँ  नहीं थी और वह दादी के साथ रहती थी। बिना माँ और   की बच्ची को वह स्कूल में पढ़ा रही थी। 
                  घर के मालिक अख़बार पढ़ते हुए ये सुन रहे थे. पत्नी से कुछ नहीं बोले , लेकिन अपने अतीत में झूलने लगे. माँ दूर स्कूल पढ़ाने जाती थी और वह छोटा था.  स्कूल से लौट कर पड़ोसन चाची के यहाँ चाबी लेकर घर जाता था लेकिन घर में माँ खाने के लिए कुछ बना नहीं पाती थी वह दूध रख कर जाती थी. वह डबलरोटी और दूध खा लेता लेकिन कब तक? जब स्कूल से आता तो पड़ोसन चाची चाबी देने के पहले उसे लालच देती कि  'तुम मेरी गायों  का गोबर साफ कर दो मैं तुम्हें सब्जी रोटी खिला दूँगी.' 
                  बस्ता वही रख कर सब्जी रोटी के लालच में गोबर साफ करता लेकिन कभी माँ को नहीं बताया. तब वही बरामदे में बैठ कर रोटी सब्जी खा लेता.
"नहीं , तुम उसको नाश्ता दे दो, वह बर्तन साफ नहीं करेगी." उनकी आवाज सुनकर पत्नी चौकी.
"अरे आपको इससे क्या लेना देना कि मैं अपना काम कैसे करवाऊं. आपको तो धोने नहीं हें." बिफर ही तो पड़ी थी वह.
"मैं धोता हूँ बर्तन , इस बच्ची को जाने दो. मैं अपने इतिहास को नहीं देखना चाहता हूँ. " कहने को तो वह कह गए लेकिन फिर एक लम्बी चुप्पी साध कर बैठ गए.
अतीत के दंश से मुक्त होना आसान नहीं होता.



21 टिप्‍पणियां:

पी के शर्मा ने कहा…

सच में दिल को छू लेने वाली है ये लघु कथा...

Udan Tashtari ने कहा…

ह्म्म...बस..........................

Shah Nawaz ने कहा…

ऐसा अक्सर ही होता है हमारे समाज में....

रश्मि प्रभा... ने कहा…

अतीत का दंश सीख दे तो बहुत अच्छा होता है ...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सार्थक संदेश देती कथा ...

vandana gupta ने कहा…

गहरी मार करती लघुकथा

दिगम्बर नासवा ने कहा…

मार्मिक ... कुछ कहने के हालात में नहीं छोड़ती ये कहानी ...

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

aise hota hai... sach me

ghughutibasuti ने कहा…

अच्छी कहानी है.
किसी अन्य के बच्चे से किसी भी हालत में कम नहीं करवाना चाहिए.
घुघूतीबासूती

मनोज कुमार ने कहा…

हृदयस्पर्शी!

Unknown ने कहा…

wah gramin jivan ki ek jawardast tasveer dikhaye h aapne es khani k madhyam se....

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत अच्छी कथा....
हृदयस्पर्शी....

सादर
अनु

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

काश,इतनी संवेदना सब में जाग जाये!

Saras ने कहा…

रेखाजी आँखें नम कर गयी आपकी कथा .....!!!

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

मर्मस्पर्शी लघु कथा


सादर

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

दिल को छू गयी रचना !
~सादर !

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

बहुत से लोगों का आईना दिखाती पोस्ट ...
कम शब्दों में बहुत कुछ बता दिया

Asha Joglekar ने कहा…

मर्मस्पर्शी । काश कि वे अपना कहा कर भी लेते ।गृह स्वामिनि की समस्या भी हल हो जाती ।

Poonam Matia ने कहा…

bahut achha pryaas ........agar har koi apne pe beeti yaad kar auron ka aaj sanwarne ki koshish kare to zaroor badlaav aa sakta hai .....nayi puraani halchal par aapka link dekha :)

mridula pradhan ने कहा…

karun kahani.....

Rajesh Kumari ने कहा…

बहुत मार्मिक कथा है रेखा जी सच में काम काजी महिलाओं के बच्चे सफ़र करते हैं