काम करने वाली की पोती आई -' दादी के हाथ में कील घुस गयी है , वो आज नहीं आ पायेगी। '
सुनकर गृहस्वामिनी के पैरों तले खिसक जमीन गयी , कैसे करेगी? यह सब अपने ही काम नहीं निबट पाते हैं . अचानक मालकिन वाली बुद्धि जागृत हुई - 'सुन तू मेरे सारे बर्तन साफ कर दे। तेरी दादी अब तुझे बना कर तो कुछ खिला नहीं पायेगी . मैं तुझे देती हूँ (वह सुबह काम वाली को नाश्ता देती थीं).
वह आठ साल की बच्ची थी , जिसकी माँ नहीं थी और वह दादी के साथ रहती थी। बिना माँ और की बच्ची को वह स्कूल में पढ़ा रही थी।
घर के मालिक अख़बार पढ़ते हुए ये सुन रहे थे. पत्नी से कुछ नहीं बोले , लेकिन अपने अतीत में झूलने लगे. माँ दूर स्कूल पढ़ाने जाती थी और वह छोटा था. स्कूल से लौट कर पड़ोसन चाची के यहाँ चाबी लेकर घर जाता था लेकिन घर में माँ खाने के लिए कुछ बना नहीं पाती थी वह दूध रख कर जाती थी. वह डबलरोटी और दूध खा लेता लेकिन कब तक? जब स्कूल से आता तो पड़ोसन चाची चाबी देने के पहले उसे लालच देती कि 'तुम मेरी गायों का गोबर साफ कर दो मैं तुम्हें सब्जी रोटी खिला दूँगी.'
बस्ता वही रख कर सब्जी रोटी के लालच में गोबर साफ करता लेकिन कभी माँ को नहीं बताया. तब वही बरामदे में बैठ कर रोटी सब्जी खा लेता.
"नहीं , तुम उसको नाश्ता दे दो, वह बर्तन साफ नहीं करेगी." उनकी आवाज सुनकर पत्नी चौकी.
"अरे आपको इससे क्या लेना देना कि मैं अपना काम कैसे करवाऊं. आपको तो धोने नहीं हें." बिफर ही तो पड़ी थी वह.
"मैं धोता हूँ बर्तन , इस बच्ची को जाने दो. मैं अपने इतिहास को नहीं देखना चाहता हूँ. " कहने को तो वह कह गए लेकिन फिर एक लम्बी चुप्पी साध कर बैठ गए.
अतीत के दंश से मुक्त होना आसान नहीं होता.
सुनकर गृहस्वामिनी के पैरों तले खिसक जमीन गयी , कैसे करेगी? यह सब अपने ही काम नहीं निबट पाते हैं . अचानक मालकिन वाली बुद्धि जागृत हुई - 'सुन तू मेरे सारे बर्तन साफ कर दे। तेरी दादी अब तुझे बना कर तो कुछ खिला नहीं पायेगी . मैं तुझे देती हूँ (वह सुबह काम वाली को नाश्ता देती थीं).
वह आठ साल की बच्ची थी , जिसकी माँ नहीं थी और वह दादी के साथ रहती थी। बिना माँ और की बच्ची को वह स्कूल में पढ़ा रही थी।
घर के मालिक अख़बार पढ़ते हुए ये सुन रहे थे. पत्नी से कुछ नहीं बोले , लेकिन अपने अतीत में झूलने लगे. माँ दूर स्कूल पढ़ाने जाती थी और वह छोटा था. स्कूल से लौट कर पड़ोसन चाची के यहाँ चाबी लेकर घर जाता था लेकिन घर में माँ खाने के लिए कुछ बना नहीं पाती थी वह दूध रख कर जाती थी. वह डबलरोटी और दूध खा लेता लेकिन कब तक? जब स्कूल से आता तो पड़ोसन चाची चाबी देने के पहले उसे लालच देती कि 'तुम मेरी गायों का गोबर साफ कर दो मैं तुम्हें सब्जी रोटी खिला दूँगी.'
बस्ता वही रख कर सब्जी रोटी के लालच में गोबर साफ करता लेकिन कभी माँ को नहीं बताया. तब वही बरामदे में बैठ कर रोटी सब्जी खा लेता.
"नहीं , तुम उसको नाश्ता दे दो, वह बर्तन साफ नहीं करेगी." उनकी आवाज सुनकर पत्नी चौकी.
"अरे आपको इससे क्या लेना देना कि मैं अपना काम कैसे करवाऊं. आपको तो धोने नहीं हें." बिफर ही तो पड़ी थी वह.
"मैं धोता हूँ बर्तन , इस बच्ची को जाने दो. मैं अपने इतिहास को नहीं देखना चाहता हूँ. " कहने को तो वह कह गए लेकिन फिर एक लम्बी चुप्पी साध कर बैठ गए.
अतीत के दंश से मुक्त होना आसान नहीं होता.
21 टिप्पणियां:
सच में दिल को छू लेने वाली है ये लघु कथा...
ह्म्म...बस..........................
ऐसा अक्सर ही होता है हमारे समाज में....
अतीत का दंश सीख दे तो बहुत अच्छा होता है ...
सार्थक संदेश देती कथा ...
गहरी मार करती लघुकथा
मार्मिक ... कुछ कहने के हालात में नहीं छोड़ती ये कहानी ...
aise hota hai... sach me
अच्छी कहानी है.
किसी अन्य के बच्चे से किसी भी हालत में कम नहीं करवाना चाहिए.
घुघूतीबासूती
हृदयस्पर्शी!
wah gramin jivan ki ek jawardast tasveer dikhaye h aapne es khani k madhyam se....
बहुत अच्छी कथा....
हृदयस्पर्शी....
सादर
अनु
काश,इतनी संवेदना सब में जाग जाये!
रेखाजी आँखें नम कर गयी आपकी कथा .....!!!
मर्मस्पर्शी लघु कथा
सादर
दिल को छू गयी रचना !
~सादर !
बहुत से लोगों का आईना दिखाती पोस्ट ...
कम शब्दों में बहुत कुछ बता दिया
मर्मस्पर्शी । काश कि वे अपना कहा कर भी लेते ।गृह स्वामिनि की समस्या भी हल हो जाती ।
bahut achha pryaas ........agar har koi apne pe beeti yaad kar auron ka aaj sanwarne ki koshish kare to zaroor badlaav aa sakta hai .....nayi puraani halchal par aapka link dekha :)
karun kahani.....
बहुत मार्मिक कथा है रेखा जी सच में काम काजी महिलाओं के बच्चे सफ़र करते हैं
एक टिप्पणी भेजें