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शनिवार, 4 अगस्त 2012

अब इसके आगे क्या ?

         

घर से बाहर साथियों  के साथ 





   मेरे के पारिवारिक मित्र जो डॉक्टर हें बिठूर  के एक वृद्धाश्रम में वृद्धों के स्वास्थ्य परीक्षण के लिए अक्सर जाते हैं, एक दिन मैंने उनके साथ चलने का विचार बनाया . मुझे वैसे भी ऐसी जगहों पर जाने में अच्छा लगता है. उस दिन मेरे ही सामने जो तमाशा हुआ उसको देख कर लगने लगा कि अब बुजुर्गों को घर से निकाल कर भी उनके बेटे और बहू को चैन नहीं मिल रहा है वे कुछ और भी चाहते हैं लेकिन वे चाहते क्या है? इसको इस घटना से देख कर समझा जा सकता है.
                             वह बुजुर्ग श्रीमान शर्मा एक उच्च पदाधिकारी थे और अपने रिटायर्ड होने के बाद आज उनको चालीस हजार पेंशन मिल रही है . उनकी पत्नी की मृत्यु के बाद उनको विविध तरीके से परेशान करना शुरू कर दिया गया. वह इंसान जो जीवन भर ऑफिस में और घर में ए सी में रहा उसको अपने ही तीन मंजिले मकान में ऊपर टिन शेड में रहने के लिए आदेश दिया गया.  जीवन भर ऐशो आराम से न सही लेकिन आराम से जीवन जिया था. खुद्दारी भी थी , फिर जब सब कुछ अपने बल बूते पर किया था तो फिर डरना किससे ? उन्होंने अपने मकान के सारे दस्तावेज लिए , बैंक के सारे दस्तावेज और अपने कपड़े लेकर घर छोड़ दिया. वह इस आश्रम में आकर रहने लगे. इस बारे में उन्होंने अपने घर में बेटे और बहू को कुछ भी नहीं बताया था. एक दो दिन तो उन लोगों ने सोचा कि चलो बाला ताली कुछ दिन चैन से रहेंगे और उन लोगों ने उनके बारे में कुछ भी पता लगाने की जरूरत नहीं समझी.
                           फिर आया बिजली का बिल जो कई हजार था , अब बहू बेटे के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं क्योंकि ये सारे खर्च तो पापाजी ही उठते थे. अब वे क्या करें? अब जरूरत समझी कि अपने पिता का पता लगायें . उनके यार दोस्तों से पता किया और फिर पता तो लगाना ही था. उस दिन वे दोनों बिठूर  वृद्धाश्रम में पहुंचे थे. पहले तो उन लोगों ने अकेले में बात करने की बात कही जो पिता ने मान ली और फिर पता नहीं क्या हुआ? बेटे ने पिता को मारना शुरू कर दिया . मार पीट की आवाज सुनकर सभी लोग उस तरफ भागे उनको उठाया. पूरी बात क्या हुई? इस बारे में जानने और पूछने की किसी को कोई जरूरत थी ही नहीं. वहाँ के बुजुर्गों ने ये भी देखा कि शर्मा जी की बहू ने अपने ससुर के हाथ में दाँत से काट लिया तो शर्मा जी ने भी उत्तर में उसका हाथ अपने दाँत के बीच में ले लिया. उसके बाद उसने उनको धक्का दे दिया और वे दूर जा गिरे.  वहाँ उपस्थित बुजुर्गों ने यह हालात देख कर उनके बेटे की सबने मिल कर पिटाई कर दी और फिर बेटे और बहू को वहाँ से भागते ही बना.  शर्मा जी के हाथ में उनकी बहू ने काट लिया था जिससे खून बह रहा था. उनकी ड्रेसिंग  की गयी . फिर उनको आराम से बिठा कर पूछा  गया कि ये लोग क्यों आये थे? फिर क्या हुआ जो इस तरह मार पीट पर उतार आये.
                             शर्मा जी का सिर शर्मिदगी से झुका हुआ था, वह सिर जो अपने ऑफिस में कभी झुका नहीं था और आज अपने ही खून के कारनामों से झुका हुआ था. उन्होंने ने बताया कि - घर के सारे खर्च मैं  उठाया करता था , फिर मैं इतनी पेंशन का करता भी क्या? बच्चों के लिए है लेकिन शायद उनका ख्याल था कि मकान का किराया मैं उन्हें दे दूं और घर भी उनके लिए खाली करके ऊपर छत पर शेड में चला जाऊं क्योंकि यहाँ पर उसके साले के बेटा और बेटी कोचिंग के लिए आने वाले थे तो उनके लिए मेरा कमरा ही सबसे ज्यादा ठीक रहेगा और मेरा क्या ? मैंने तो कहीं भी रह सकता हूँ, लेकिन ये मैं कैसे सहन कर सकता था? मैंने कोई विरोध नहीं किया और मैं घर छोड़ कर यहाँ आ गया. आज वे ए टी एम का पासवर्ड माँगने केलिए आये थे क्यों कि मेरा ए टी एम अलमारी में ही छूट गया था. मेरे वहाँ रहने या न रहने से उन्हें कोई मतलब नहीं है. बेटे से जब मैंने देने से इनकार कर दिया तो पहले उसने अपने बच्चों और खर्चे का हवाला दिया लेकिन मैं अब बिल्कुल भी तनाव लेने के लिए तैयार नहीं था. पत्नी के जाने के बाद वर्षों मैंने इन लोगों को हर तरीके से सहन किया लेकिन अब बिल्कुल नहीं. मैंने जब इनकार कर दिया तो बेटा गाली गलौज  पर उतार आया लेकिन मैं सोच चुका था कि नहीं देना है तो नहीं देना है. मैं ए टी एम बैंक जाकर ब्लाक करवा दूँगा और दूसरा ले लूँगा. मेरे बार बार इनकार पर उसने हाथ उठा दिया और जैसे ही मैंने उस पर हाथ उठाया तो मेरी बहू  ने मेरे हाथ में दाँत से काट लिया और जब मैंने उसके हाथ में काटा तो उसने मुझे धक्का दे दिया. बाकी आप लोगों के सामने है. 











                             हम कहते हैं कि हमारे बुजुर्ग भी कहीं न कहीं गलत होते हैं, हाँ कुछ बुजुर्ग होते हैं लेकिन उस समय घर बुजुर्ग नहीं बहू बेटे छोड़ने की सोचते हैं ताकि वे अलग जाकर चैन से रह सकें. यहाँ तो घर बुजुर्ग ने छोड़ा है  और फिर भी बेटे और बहू को चैन नहीं है. ये सोचने पर मजबूर करता है कि हम बुजुर्गों को इज्जत और आराम से रखना तो नहीं चाहते हैं लेकिन उनके धन के प्रति हमारे मन में पूरा लालच है ऐसी ही एक घटना तो मैंने अपने बहुत ही करीबी बुजुर्ग के जीवन में भी देखा था लेकिन वहाँ बस इतना था कि बेटे समर्थ थे और पिता को रखना नहीं चाहते थे क्योंकि उन्हें मालूम था कि पिता के पास जो भी है वह कहीं और नहीं जाएगा मिलना तो उन्हीं को है. जब तक वह जिन्दा है अपने तरीके से जिए , हम अपने व्यक्तिगत जीवन में उनको क्यों दखल देने दें.  पिता को कौन चाहता है? ये हद है हमारी निम्न मानसिकता की. और इससे आगे कुछ कह नहीं पाई लेकिन ये मेरा किसी वृद्धाश्रम का दूसरा अनुभव था.