aन्ना के भ्रष्टाचार विरोध में पूरे देश को जागृत कर दिया तो कुछ वे भी जाग कर गुहार लगाने लगे जो कल दूसरों को चूस रहे थे। मैंने ये बात इस लिए कह सकती हूँ कि गुहार लगाने वाले को व्यक्तिगत तौर पर और एक कैम्पस में रहने के नाते पूरी तरह से जानती हूँ। २८ साल पहले हम भी विश्वविद्यालय कैम्पस में ही रहते थे। हमारे ससुर जी वहाँ की डिस्पेंसरी के इंचार्ज थे। अपने सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्ति के बाद वह चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े रहना चाहते सो उन्होंने यहाँ पर ज्वाइन कर लिया। विश्वविद्यालय के बाबुओं के जीवन स्तर को देख लें तो लगता था कि क्या आई ए एस का स्तर होगा?
ये सज्जन भी वहाँ पर रहते थे। एक बाबू होने के बाद भी उस समय वे कार के मालिक थे और बच्चों के कपड़े कोई देख ले तो निश्चित तौर पर उनकी ड्रेस बहुत महँगी होती थी। कमाई का कोई अंत तो था नहीं। चूंकि डिस्पेंसरी से सबको ही काम पड़ता था तो सबको जानती भी थी । अब दुर्भाग्य वश इनको वी आर एस लेना पड़ गया तो फिर वहाँ पर इनके जगह पर कोई और आ कर बैठ गया और इनसे खाने की जुगाड़ करने लगा तो इनका खून खौल उठा कि ये मुझसे भी खाने वाले आ गए लेकिन ये भूल गए कि इस पौध को पानी तो इन्होने ही दिया था। हो सकता है कि इनमें से किसी व्यक्ति से इन्हीं ने पैसा खा कर काम किया हो और अपनी बारी आई तो भ्रष्ट तंत्र के नाम पर अखबार में गुहार लगा दी। ये भूल गए कि इनके जानने वाले अभी कुछ लोग तो बाकी हैं कि इनका अपना चरित्र क्या रहा है? जब खुद थे तो तंत्र भ्रष्ट नहीं था और अब भ्रष्ट हो गया है।
जीवन भर खूब ऐश की। अब वे अपना कल भूल गये। शायद ये भूल गए कि तुम जोंक बन कर कल दूसरों का खून पीकर अपनी कार में पेट्रोल डलवा रहे थे तो यह नहीं सोचा होगा तुम्हारी जगह कोई और भी तो आएगा और अब तो पेट्रोल काफी महंगा cहुका है तो फिर वो जो आज तुम्हारी जगह पर बैठा है उसको भी तो कार में पेट्रोल डलवाना होगा। वैसे भी अब बच्चों की पढ़ाई बहुत महंगी हो चुकी है। ab रोना क्यों रो रहे हैं , जब खुद थे तो भ्रष्ट तंत्र नहीं था अब उसको ही भ्रष्ट कहते हुए गुहार लगा रहे हो। एक यही नहीं बल्कि जो भी इसका इस तरह से कमाई कर रहे हैं , कल वे भी इसका खामियाजा भुगतेंगे जब भ्रष्टाचार नहीं होगा तब भी उन्हें अपने काली कमाई को सहेजना मुश्किल पड़ जाएगा।
मंगलवार, 23 अगस्त 2011
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11 टिप्पणियां:
आपकी बात में दम है!
रेखा दीदी ...ये ही तो ... कल, आज और कल.... की परिभाषा है ...यही सबका हिसाब चुकता कर के जाना है ...
sach kaha hai aapne ..
जैसे तो तैसा तो मिलता ही है ना .एकदम सटीक आलेख .
भ्रष्टाचारी यही बात तो भूल जाता है कि कल उसके साथ भी ऐसा हो सकता है।
राजनीतिज्ञ अच्छी तरह जानते हैं कि जनता की यादास्त कमजोर होती है, समय के साथ सबकुछ भूल जाती है ....राजनीति से ज्यादा गंदी कुछ भी नहीं हमारे समाज में ....अन्ना को कोई नहीं समझ पाया !
रेखा दी’दो-चार लोगों के नाम पते लिख देतीं तो कम से कम अण्णा हजारे के समर्थक उनके घर जाकर भी घेराव कर सकते थे थोड़ा उन लोगों का और मनोरंजन हो जाता। मैंने निजी तौर पर उन कथित समर्थकों को देखा है वे समर्थन के लिये कम मनोरंजन के लिये अधिक ये सब कर रहे हैं।
आपको शायद हिंदी लिखने में तकनीकी दिक्कत हो रही है।
डॉ.रूपेश श्रीवास्तव
दीदी,आज तो हर तीसरा आदमी ऐसा ही है.इस देश और समाज को ऐसे ही भेड़ की खाल में छिपे भेड़ियों से अधिक खतरा है.अब आप देख लीजिये न.लालू और अमर सिंह जैसे घोटालेबाजों(600 करोड़ का चारा खा जानेवाले) और घोड़ा-खरीद व्यापारी(भ्रष्टाचारी) को उस समिति में जगह दी गई है जो जन लोकपाल बिल की जाँच करेंगे.नस-नस में वयो गई है ये महामारी.इसे तो अन्ना वैक्सीन के सहारे ही धीरे-धीरे ख़त्म किया जा सकता है.आँखें खोलती सच्चाई से रूबरू कराने के लिए आभार.
ऐसे ही लोग मौका परस्त कहलाते हैं।
सही कहा है ... जब खुद रिश्वत देनी पड़ती है तब ही तंत्र भ्रष्ट दिखता है
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