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रविवार, 21 अगस्त 2011

अन्ना को अंगूठा !

जब पूरा देश एकजुट होकर भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा है और इस समय भी जो तस्वीर मैंने देखी वो लगा कि पूरा तंत्र इतना सुदृढ़ किले की तरह से बना है कि इसको तोड़ना बहुत मुश्किल है।
अभी दो दिन पहले ही की बात है, एक बेटी का गरीब पिता उसकी शादी के लिए जद्दोजहद कर रहा था क्योंकि दिन बा दिन बढती मंहगाई ने उसके शादी के बजट को फेल कर दिया। बारात बुलाएगा तो कहाँ से खिलायेगा? उसे याद आया कि उसके पिता जो सरकारी मुलाजिम थे , दो महीने पहले गुजर गए और उनकी पेंशन अशक्त होने के कारण जीवित प्रमाण पत्र न देने के कारण ट्रेजरी में ही पड़ी है। कुछ लोगों ने सलाह दी कि उनका मृत्यु प्रमाण पत्र लेकर जाओ कुछ रास्ता वह लोग सुझा देंगे और अगर कुछ पैसा मिल गया तो इस समय तुम्हारे लिए संजीवनी बूटी की तरह से होगी।
मरता क्या न करता?रोजी रोटी के धंधे को बंद कर ट्रेजरी गया, वहाँ पता किया तो पता चला कि अमुक बाबू ये काम करवा सकते हैं। खोजते हुए उनके पास गया, उन्होंने हिसाब लगाकर बता दिया कि आपको १ लाख रूपया मिल सकता है। उस बेचारे की तो लाटरी निकल आई या कहो उसने बिटिया के भाग्य को खूब सराहा।
लेकिन उसको पाने के लिए उसके २५ हजार घूस भी देनी पड़ रही है लेकिन वह लाये कहाँ से? उसके जितने भी स्रोत थे सारे टटोल डाले लेकिन वे न काम आ सके। आखिर उसके लिए किसी तरह से इंतजाम इस विश्वास पर कर दिया गया कि जैसे ही पैसा मिलेगा वह इस राशि को चुका देगा। अब उस १ लाख की राशि उसको कितने दिन में मिलेगी ये नहीं पता है लेकिन २५ हजार के कर्ज में वह फँस चुका है। आप और हम क्या समझते है कि ये सरकारी मुलाजिम खुद को बदल पायेंगे।
ऐसे लोग ही अन्ना और हमारे संघर्ष को अंगूठा दिखा रहे हैं। देखते हैं कि ये कब गिरफ्त में आते हैं?

9 टिप्‍पणियां:

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

उधर सरकार को भी जो सलाह या समर्थन दे रहे हैं अन्ना के खिलाफ, उनके नाम और करतूतें भी जग जाहिर हैं।

vandana gupta ने कहा…

बस एक बार यदि किसी तरह ऐसा बिल पास हो जाये तो सबको डर हो जाये और फिर ऐसा काम करने की हिम्मत नहीं करेंगे।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

कुछ तो बदलाव आएगा ...शायद तब घूस के लिए पैसा न देना पड़े ..जब सारे लोग इस बिल के तहत आयेंगे तो थोड़ा डर तो रहेगा

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बदलाव की जरुरत है..यह पहली कड़ी है...शुरुवात होनी ही चाहिये!!

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

ऐसा ही हो रहा है दीदी. जिस दिन अन्ना जी ने अनशन शुरु किया, उसी दिन यहां BRCC कार्यालय में एक-एक हज़ार रुपये की घूस ले के स्कूलों की मान्यता की फ़ाइल आगे बढाई जा रही थी. नहीं देने पर मान्यता रद्द.

Kailash Sharma ने कहा…

कब वह दिन आएगा जब सही काम को कराने के लिए भी रिश्वत नहीं देनी होगे? आशा है कि आज जो आवाज़ उठी है वह व्यर्थ नहीं जायेगी..

Dinesh pareek ने कहा…

"सत्याग्रह शब्द का उपयोग अक्सर बहुत शिथिलतापूर्वक किया जाता है और छिपी हुई हिंसा को भी यह नाम दे दिया जाता है। लेकिन इस शब्द के रचयिता के नाते मुझे यह कहने की अनुमति मिलनी चाहिए कि उसमें छिपी हुई अथवा प्रकट सभी प्रकार की हिंसा का,फिर वह कर्म की हो या मन और वाणी की हो,पूरा बहिष्कार है। प्रतिपक्षी का बुरा चाहना या उसे हानि पहुंचाने के इरादे से उससे या उसके बारे में बुरा बोलना सत्याग्रह का उल्लंघन है। सत्याग्रह एक सौम्य वस्तु है,यह कभी चोट नहीं पहुंचाता। उसके पीछे क्रोध या द्वेष नहीं होना चाहिए। उसमें शोरगुल,प्रदर्शन या उतावली नहीं होती। वह जबरदस्ती से बिल्कुल उल्टी चीज़ है। उसकी कल्पना हिंसा से उल्टी परंतु हिंसा का स्थान पूरी तरह भर सकने वाली चीज़ के के रूप में की गयी है।"

Dinesh pareek ने कहा…

अन्नाजी को यह नहीँ कहना चाहिए की अब हम पर काले राज कर रहे है पहले गोरे कर रहे थे क्या हम अपने ही वतन के लोगोँ को काले कहेगेँ क्या ये सँर्घष काले या गोरे का है ये भ्रष्टाचारियोँ से है तभी जनता का साथ है ।

बेनामी ने कहा…

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