पिछले दिनों एक जबरदस्त अवसाद का सामना करना पड़ा। नहीं सोचा था कि जिन्दगी में हर चुनौती को कष्ट कोपहाड़ की तरह से खड़े होकर झेल सकती हूँ और इस एक छोटी सी घटना मुझे अवसाद में धकेल सकती है और फिर वहजब कि मैं न तो नेट के संपर्क में थी और न ही मैं उसमें कुछ कर सकती थी। मुझे अपने कुछ शुभचिंतकों के फ़ोन कालमिल रहे थे कि आपका ऑरकुट अकाउंट हैक कर लिया गया है और उस पर बहुत कुछ अश्लील डाल कर स्क्रैप से औरवैसे भी भेज दिया गया है। आप ठीक कर लें।
मैं उस समय लम्बे सफर पर थी और कुछ कर भी नहीं सकती थी वैसे अपनी परिस्थितियों के कारण मानसिक तौर परसामान्य तो नहीं ही थी। मैंने अपनी बेटी को फ़ोन किया कि मेरा ऑरकुट अकाउंट खोलो और उसमें क्या है ? उसकोदेख कर डिलीट कर लो और मेरा पासवर्ड बदल दो। उसने भी मुझे बताया नहीं कि क्या पड़ा था? उसने कहा कि बहुतही गन्दी भाषा में कुछ डाला गया है और मैंने सब डिलीट कर दिया । उसपर भी ऑरकुट पर जो लोग थे उनके भी स्क्रैपआये हैं । माँ ऐसे लोगों को क्यों रखा है? उनमें से कुछ लड़के तो मेरे अच्छे जानने वाले थे। मिले नहीं थे लेकिन वर्षोंपहले संपर्क में रहे थे। नाम सुनकर शर्म तो आई थी और एक वितृष्णा सी हो गयी ऐसी सोच वालों से। इनमें से एक तोकई बार मुझसे मेरी बेटी कि शादी का प्रस्ताव रख चुका था लेकिन मुझे अपनी बेटी कि शादी उस तरह के नौकरी वालेलड़के से नहीं करनी थी और मैंने उसको सभ्य भाषा में इनकार कर दिया था कि मुझे अभी उसकी शादी नहीं करनी हैऔर फिर अगर करनी है तो उसके कार्य क्षेत्र के लड़के से ही करनी है। हो सकता है कि अपने मन में कुछ पाले उसनेऐसा कृत्य किया , मैं नहीं जानती लेकिन मैंने बहुत कष्ट झेला।
हमारी मानसिक विकृतियाँ हमें कहाँ ले जा रही हैं? क्यों हमारी सोच जाकर सिर्फ अश्लील भाषा और अश्लील चित्रों तकसीमित है? क्या ये हमारे व्यक्तित्व को उजागर नहीं करती - नहीं ये हमारी कुंठाओं को उजागर करती है, जिन्हें हममानसिक रूप से या फिर किसी अन्य रूप से असंतुष्टि के बदले पाल लेते हैं। हाँ हमें उम्र का लिहाज होता है और न हीव्यक्ति के कार्यों का। हमारी सोच कितनी गिरी हुई हो सकती है, ये इस बात से पता चल गया। ये आज की पीढ़ी है, इनका अपना चरित्र क्या होगा? भविष्य क्या होगा? अगर अधिक प्रतिभा का प्रयोग सकारात्मक कार्यों में किया जायतो औरों का भला भी हो सकता है लेकिन अगर वही नकारात्मक दिशा में चली जाती है तो वह प्रतिभा प्रतिभा नहींरहती मानसिक विकृति का स्वरूप बन जाती है। इसमें किसका दोष है? क्या हमारे संस्कारों का जो हम आज की पीढ़ीको दे रहे हैं या फिर विज्ञान के बढ़ते स्वरूप को जो इंसान को उत्थान के साथ पतन की अधिक तेजी से ले जा रहा है।नहीं जानती ऐसे लोगों का क्या होगा? हाँ इतना अवश्य है कि ऐसे ही लोग हैं जो समाज में आज बढ़ रही बलात्कार कीघटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। ये उनके कुत्सित विचार उजागर होकर बहुत भयावह हो जाते हैं और ऐसे लोगों का कोईउपचार नहीं है।
रविवार, 26 जून 2011
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17 टिप्पणियां:
विज्ञानं और पाश्चात्य दोनों इसमें दोषी हैं|
यह भी नेट की एक समस्या है ... पतन तो निश्चय ही है ..जितना विज्ञान का विस्तार हो रहा है उतना ही समाज पतन की ओर अग्रसर ...
समस्या क्या? हर सिक्के के दो पहलू तो होते ही हैं लेकिन उसके प्रयोग में अगर नकारात्मक सोच लग जाती है तो पतन निश्चित है.
नैतिक पतन की जड़ में मानसिक विकृतियों का योगदान अहम् है . किसी भी तकनीक का दुरुपयोग हमारी जड़ता और समाज के पतन द्योतक है .
आपने बहुत सही लिखा है!
आभासी दुनिया का यह सबसे नकारात्मक पहलू है!
जब पैदा होते ही बच्चों को पैसा कमाने की मशीन बनाने का उपक्रम शुरु हो जाता है तो नैतिक मुल्य कहां से आयेगें इस नयी पीढ़ी में। बहुत दुख हुआ जान कर कि किसी जान पहचान वाले ने ही आप के साथ ऐसा किया।
नेट का दुरूपयोग करने वालों को क्या कहा जाए.
रेखा जी आप जिस समस्या से गुजरी हैं, वह नेट की एक आम समस्या बन गई है। ऐसा हमारे साथ भी हुआ है। और एक बार नहीं दो'तीन बार। पर इसमें अपने परिचितों का हाथ नहीं होता है। यह सचमुच कुछ शरारती लोगों का शगल है। इसलिए मेरा अनुरोध है कि अपने उन परिचितों को जिन्हें आप वर्षों से जानती हैं, भला बुरा मत कहिए। न उन पर शक करिए। बल्कि जिस तरह आपको किसी ने सूचित किया संभव हो तो आप भी उन्हें सूचित कर दें कि आपके नाम से इस तरह के मेल आ रह हैं।
वाकई बहुत ही गंभीर समस्या का आपने जिक्र किया है। इस पर निश्चित रुप से विचार किया जाना चाहिए।
आभार
bahut bura laga jo hua yah jankar......chaliye aage sakaratmakta ki ummeed karen.....
रेखा जी ये तो चिन्ता का विषय है मैने तो महीनो से आर्कुट नही खोला। हर चीज़ के फायदे नुक्सान दोनो हैं लेकिन समाज से लुप्त हो रहे अच्छे संस्कार ही इसका कारण हैं शायद हम सब भी।
आदरणीया रेखा जी बहुत सुन्दर और सार्थक लेख आप का हर चीज का दुरूपयोग हो रहा बच्चों के हाथ में कंप्यूटर नेट देना बड़ी समस्या पर निजात नहीं अश्लीलता हर जगह भरी अब सिनेमा घर बाहर अख़बार क्या क्या आदमी नहीं पढ़े क्या न करे ये एक अंग बनता जा रहा और हम पतन और अपनी संस्कृति से भटकते जा रहे केवल कुछ सीख नैतिकता ही बचा शायद पाए
बधाई और शुभ कामनाएं -
शुक्ल भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
हमारी मानसिक विकृतियाँ हमें कहाँ ले जा रही हैं? क्यों हमारी सोच जाकर सिर्फ अश्लील भाषा और अश्लील चित्रों तकसीमित है? क्या ये हमारे व्यक्तित्व को उजागर नहीं करती - नहीं ये हमारी कुंठाओं को उजागर करती है,
गंभीर समस्या ...मन अत्यंत दुखी कर जाती है ....ईश्वर सबको सद्बुद्धि दें यही प्रार्थना कर सकते हैं .....!!
बिल्कुल सही कहा है ..।
विज्ञानं और पाश्चात्य की चमक दमक दोनों इसमें दोषी हैं.....
जहां जहां उपयोग है वहाँ दुरूपयोग भी तो साथ साथ ही है ... पर कुछ हद तक आपका कहना उचित है ..
रेखा दी.....नेट पर सिर्फ हम औरते ही क्यों ऐसी हादसों का शिकार बनती है ......यहाँ के पुरुष हर तरफ से सुरक्षित है ....और हमको एक एक कदम फूंक फूंक के रखना पड़ता है...कोई मित्र कैसे व्यवहार करेगा ये हम नहीं जानते ........पर बहुत बार देखा गया है की आखिर में सारा दोष भोगने वाली महिला के सर ही फोड़ दिया जाता है .......?
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