घर से कहीं बाहर जाने के लिए निकलते हैं तो सोचते हैं कि यात्रा सुखद ही होगी. लेकिन हम ये नहीं सोच पाते हैं कि ये कैसे किसकी कृपा से जद्दोजहद में बदल जाती है. इस बार तो हमारे रेलवे के भेंट ही चढ़ गयी हमारी यात्रा और हम जिन्दगी भर नहीं भूल पायेंगे. किसी खेल के तरीके से या मैच के दौरान जब हमारी जीत और हार कुछ ही रनों के ऊपर निर्भर होती है और हम सब खेल प्रेमी हाथ जोड़ कर भगवान से मनाते हैं कि ये मैच हम जीत जाएँ. उनका हो तो उनका ये विकेट जल्दी से गिरे और हमारा हो तो बचा रहे. बस एक छक्का लग जाये . रन और बाल के बीच के अंतर को तौलते हुए चलते रहते हैं ठीक वैसे ही हम भी दो ट्रेनों के बीच के अंतर को तौलते हुए चल रहे थे.
हम कानपुर से चले कि किसी भी ट्रेन से झाँसी पहुँच जायेंगे और वहाँ से हमारा रिजर्वेशन गौंडवाना एक्सप्रेस में था, जो कि रात ९:५७ पर नागपुर के लिए जाती है. हम १ बजे स्टेशन पहुंचे तो पता चला कि झाँसी के लिए ८ बजे से कोई ट्रेन नहीं आई. राप्ती-सागर आने वाली है लेकिन वह भी ३ घंटे लेट है. हम ने बीच का अंतर निकल कर मन को समझा लिया कि अगर ५ घंटे में भी पहुंचा दिया तो हम समय से पहुँच जायेंगे. किसी तरह से राप्ती-सागर आई और हम उसमें बैठे. अभी तक तो निश्चिन्त थे कि हमारी ट्रेन मिल ही जाएगी. अब गाड़ी कि गति धीरे धीरे कम होने लगी . कानपुर से उरई के बीच के लड़के जहाँ उतरना हुआ आराम से चेन खींची और उतर गए. हम अभी भी मन में समय का तालमेल बैठाये दिल को तसल्ली दे रहे थे कि ट्रेन तो हमको मिल ही जाएगी. हम झाँसी के किनारे तक पहुँच गए और हमें आशा थी कि अभी भी हमें दस मिनट का समय मिल जायेगा और हम ट्रेन पकड़ ही लेंगे लेकिन ये क्या? ट्रेन एक नए बने स्टेशन पर खड़ी हो गयी और हमारे दिल की धडकनें भी तेज हो गयीं किअब हमें हमारी ट्रेन नहीं मिल पायेगी. पता नहीं कितने सारे भगवान याद कर लिए कि किसी तरह से ये ट्रेन समय से पहुँच जाये नहीं तो हम क्या करेंगे? वैसे भी तत्काल में लिया हुआ रिजर्वेशन उसके बाद कोई और सूरत नहीं होगी. लेकिन अब भगवान भी कोई सहायता नहीं कर सकता था क्योंकि झाँसी outar पर आ कर ट्रेन खड़ी हो गयी. अब हम कोई और सूरत तो सोच ही नहीं पा रहे थे. हमारी ट्रेन जो ६:४५ पर झाँसी स्टेशन आनी थी ठीक ९:५६ पर आ कर खड़ी हुई और हमारी ट्रेन का समय था ९:५७. दो प्लेटफार्म पार करके ट्रेन पकड़ना आसान नहीं था. फिर कोशिश कर ली जाये और हम लोग भागे. जब प्लेटफार्म की सीढियां उतर रहे थे तो सामने ट्रेन खिसकने लगी और B1 कोच एकदम सामने थी. पतिदेव बोले कि अपनी कोच सामने है जल्दी से चढ़ लो. हम दोनों ही गिरते पड़ते उसमें चढ़ गए. उसमें खड़े लोगों ने पूछा कि कहाँ जाना है? हमने बता दिया कि इस कोच में हमारा रिजर्वेशन है और हमें नागपुर जाना है.
"ये तो जबलपुर जा रही है." उनमें से एक ने बताया. हमें तो काटो खून नहीं.
"लेकिन ये गोंडवाना एक्सप्रेस है न."
"जी, लेकिन ये आगे दो भागों में बाँट जायेगी और आगे वाला नागपुर जाएगा और ये जबलपुर. "
अब समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें? ट्रेन पूरी गति पर थी. और उन लोगों ने ये भी बताया कि ये ट्रेन ठीक समय से चल दी थी लेकिन पता नहीं क्यों २ मिनट के बाद रुक गयी नहीं तो आप को मिल ही नहीं सकती थी.
अब ट्रेन आगे बीना में ही रुकेगी तब ही कुछ हो सकता है, अब ये डर कि हमारे न पहुँचने पर TT हमारी सीट किसी और को न दे दे. खैर AC का टिकेट लेकर हम दरवाजे के पास दो घंटे खड़े रहे. बीना में हम १२ बोगी पार करके अपनी कोच में पहुंचे तो TT महाशय हमारे ही इन्तजार में खड़े थे क्योंकि वे तो रोज ही हम जैसे गलती करने वालों से दो चार होते होंगे.
"आपको कहाँ जहाँ है? " उन्होंने हमें देखते ही सवाल दगा.
"हमें नागपुर जाना है और हमारा इसी में रिजर्वेशन है." हमने बताया.
"आप दो स्टेशन तक नहीं आये तो हमने वो सीट RAC वालों को दे दी. अब ये तो नियम है तो हम कुछ नहीं कर सकते हैं.
"ठीक है, फिर हमें क्या करना होगा? हम नीचे उतर जाएँ." मैं पहले से ही मानसिक रूप से इस बात के लिए तैयार थी कि ये स्थिति जरूर आएगी क्योंकि TT महोदय हमारी सीट किसी और के बेच चुके होंगे.
"ठीक है, आप हमारे टिकेट पर लिख दीजिये कि हमारी सीट नियमानुसार दूसरे को दे दी गयीं हैं और हमारी टिकेट अब अवैध है." मैंने उनसे कहा.
"जी, ये तो मैं लिख कर नहीं दे सकता हूँ."
"फिर हम क्या करें? नीचे उतर जाएँ या फिर इतने पैसे खर्च करने के बाद जमीन पर बैठ कर जाएँ." मामला बिगड़ता देख कर उन्होंने इसी में भलाई समझी कि हमें कुछ व्यवस्था करके बैठा दिया जाय. फिर उन्होंने हमें दूसरी सीट पर जाने की व्यवस्था की और हम रात १२:३० पर किसी भी सीट पर जाकर लेट सकें.
रेलवे कि ये सौगात जीवन में पहली और आखिरी सौगात बन गयी. लेकिन एक प्रश्न जरूर छोड़ गयी कि अगर रेलवे की गलती से लिंक ट्रेन देरी से आती है या उसके ३-४ घंटे देरी से आने पर अगर किसी कि ट्रेन छूट जाती है तो रेलवे को इसके लिए कोई विकल्प सोचना होगा. फिर ऐसे यात्रियों का टिकट दूसरी ट्रेन में वैध मान कर उनको यात्रा करने की अनुमति प्रदान की जानी चाहिए. उस समय जब कि यात्री कि कोई भी गलती न हो.
बुधवार, 29 दिसंबर 2010
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7 टिप्पणियां:
रेखा जी बेशक क़ानूनी तौर पर कोई विकल्प न हो पर इंसानी तौर पर ऐसी समस्याओं का विकल्प जरुर होता है.परन्तु हमारे यहाँ तो जब तक परेशां न करे तब कोई सरकारी मुलाजिम कहलाने का अधिकारी नहीं होता न .
चलिए एक सबक ही सही , बाकी भारतीय रेल से हमारे तो आये दिन सबका पड़ता रहता है , ना जाने कितनी अच्छी बुरी यादे जुडी है यात्रा से . मुझे तो अच्छा लगा की जिस काम से गयी थी वो संपन्न हुआ .
अरे यह केसा कानून, अगर रेलवे की गलती से ( आप की पहली रेल लेट आई) तो आप को पुरे पेसे वापिस मिलने चाहिये,क्योकि आप की सीट खाली तो नही ना, उसे तो बेच दिया गया हे, यह सरा सर गलत बात हे, हमारी फ़लाईट लेट हो तो हमे कोई फ़िक्र नही यहां अगर हमारी गलती से भी ट्रेन निकल जाये तो उसी टिकट से हम दुसरी ट्रेन मै जगहा पा सकते हे, या टिकट के पुरे पेसे वापिस. बहुत बुरा लगा अपने देश का यह किस्सा, धन्यवाद
अभी ऐसा कुछ प्रावधान है कि यदि एक ट्रेन लेट हो जाने से दूसरी ट्रेन छुट जाए तो आपको पूरे पैसे मिल जाते हैं ..पर उसकी प्रक्रिया जटिल है ....
ट्रेन से जुड़े हमारे तो कई कड़वे अनुभव है क्या करे भारतीय रेल से कोई भी उम्मीद करना बेकार है |
नववर्ष स्वजनों सहित मंगलमय हो आपको । सादर - आशुतोष मिश्र
नये वर्ष की असीम-अनन्त शुभकामनाएं.
पोस्ट पढने आती हूं, दुबारा.
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