क्या आर्थिक दृष्टि से कमजोर कहे जाने वाले लोग (ये दृष्टिकोण है तथाकथित पैसे वाले होने का दंभ रखने वालों का ) लोगों को एक सुखद और सुंदर भविष्य का सपना देखने का भी हक़ नहीं है और अगर वे बेहतर जीवन की ओर कदम बढ़ाते हैं तो लोगों को लगता है कि 'फंसा लिया होगा'!
पिछले हफ्ते मेरी एक परिचित अपनी बेटी कि शादी का कार्ड लेकर आयीं , शादी उन्होंने काफी महंगे होटल से करने का संकेत दिया था. अन्दर जब कार्ड में पढ़ा तो पता चला कि वे लड़की की शादी अंतरजातीय कर रही थीं. लड़की उनकी एक बैंक में नौकरी कर रही थी. पहले तो लोगों ने कार्ड देख कर ही कहा - ' इनकी तो औकात नहीं कि इस होटल से शादी करें. जरूर लड़के वालों ने पूरा खर्चा उठाया होगा. अच्छे घर का लड़का फंसा लिया होगा. '
अभी तक न लड़का सामने था और न ही उसका घर, लेकिन लोगों के व्यंग्य चलने लगे थे. ऐसा नहीं ये सिर्फ लड़की के लिए ही व्यंग्य चलता है , इसके विपरीत भी होता है अगर लड़की पैसे वाले परिवार की या फिर अच्छी नौकरी वाली हुई तब भी लोग ऐसे ही बोलते हैं. खुद मैंने कई बार सुना है. इस बार तो सुन कर लगा कि क्या दो लोगों का आपसी सामंजस्य की धुरी पैसा ही होता है. अगर आज लड़के और लड़की अपनी रूचि या फिर अपने जॉब के अनुरुप लड़के देख रहे हैं तो बुरा क्या है? जीवन उनको बिताना होता है और ये तो अभिभावकों कि समझदारी होती है कि वे बच्चों कि पसंद पर अपनी स्वीकृति कि मुहर लगा देते हैं. ऐसा नहीं पहले भी ऐसा ही होता था हाँ बहुत अधिक न था किन्तु गुण और रूप के कद्रदान लड़की या लड़के के घरवालों के पैसे को नहीं बल्कि उस व्यक्तित्व को महत्व देते थे. वही आज भी है. घर वाले चाहे इस बात को न सोचें लेकिन ये तथाकथित शुभचिंतक जरूर ऐसे संबंधों को शोध विषय बना देते हैं. मैंने तो इस विषय में भी लड़के के घर वालों कि विनम्रता देखी कि वे कह रहे थे कि हम नहीं आप अधिक बड़ी हैं क्योंकि आप हमें अपनी बेटी दे रहे हैं. लेने वाला कभी बड़ा हो ही नहीं सकता है.
तब लगा कि बेकार में लोगों के पेट में दर्द होने लगता है कि अगर शादी अंतरजातीय है तो जरूर किसी ने किसी को फंसाया ही होगा.
मंगलवार, 21 दिसंबर 2010
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23 टिप्पणियां:
AGAR ye fasne fasane ka khel jayda priya ho jaye aur samaj isko manane lage to kya baat hai...wo din dur nahi jab jati vyavastha nahi rahegi...:)
बहुत सुन्दर पोस्ट!
इसकी चर्चा कल बुधवार के चर्चा मंच पर की गई है!
आपका कहना सही है ... पर मेरा मानना है ऐसी बातों को ज़्यादा तूल नही देना चाहिए ...
आज से बत्तीस साल पहले ऐसे ही कटाक्ष हमें भी सुनने पड़े थे जब हमने अंतरजातीय विवाह किया था। वैसे अंतरजातीय था कि नहीं पता नहीं क्युं कि न मुझे अपनी जात पता थी न मेरे होने वाले पति को। हाँ अलग अलग प्रांतों से जरूर हैं।
आपके इस संस्मरण से एक वाकया याद आ गया शेयर कर लूं।
हम लोग जिस परिवेश में पले-बढे उसमें कोई अच्छा लड़का बिना दहेज के मिलना असंभव सी बात थी। पर हम दोनों भाई बहन नें पिताजी को कहा कि न इस घर में दहेज लिया जाना चाहिए न दिया जाना। चाहे हम कुंवारे ही क्यों न रहे। बहन मेरी बड़ी थी। तो उसकी शादी की बात पहले चलनी शुरु हुई। जो दहेज की बात करता हम लोग कह देते कि आपके यहां रिश्ता नहीं करना है।
एक लड़की का पिता इस तरह से रिश्ता ठुकराने लगे तो लाजमी है कि यह बात समाज में फैलनी थी और फैलने भी लगी। एक दिन एक सज्जन आए जिन्हें हम जानते तक नहीं थे, पर वो हमारे सिद्धांत से प्रभावित थे और अपने लड़के का रिश्ता बोले कि आपके यहां ही करेंगे।
तो बाद में हमें मालूम हुआ कि उनका लड़का उसी मेडिकल कॉलेज में इंटर्नशिप कर रहा है जिसमें मेरी बहन तृतीय वर्ष की छात्र थी।
शादी की बात पक्की हुई और कार्ड वगैरह बंटे और लोगों को यह मालूम हुआ कि ये शादी बिना दहेज के फाइनल हुई है तो लोग कहने लगे कि एक ही कॉलेज में पढते थे ... फंसा ली होगी।
हमलोग भी अर्थिक रूप से कमज़ोर ही थे, पिता मेरे रेलवे में एक मामूली लिपिक थे। रेखाजी आपका वाकया २०१० का है, हमारा १९७० के दशक का। चार दशक के बाद भी समाज नहीं बदला है। सोच वही ... लोग कहते हैं हम आधुनिक हो गए हैं, तरक्क़ी कर ली है।
लीक से हटकर चलते ही लोग दस तरह की बातें करने लगते हैं। इस जमाने की यही रीत है।
कुछ तो लोग कहेंगे की तर्ज पर लोगों की बाते चलती रही थी , चल रही है और चलती रहेगी क्यू की ये लोगों (भीड़ की मानसिकता ) की बात है .
यह हमारी मान्सिकता हे जिसे हम बदल नही सकते, यानि किसी को खुश नही देख सकते,धन्यवाद
कुछ तो लोग कहेंगे ..लोगों का काम है कहना...
अनीता ,
तुम सबसे अच्छी हो, जिसे अपनी जात का पता न हो सिर्फ इंसान हो और इंसान को ही चुने. इससे बड़ी बात और क्या होगी?
मनोज जी,
आपकी बात बिल्कुल सही है, ४० साल पहले ऐसी बातें कम ही हुआ करती थी और अगर हो भी गयीं तो मालूम है लोग क्या कहते थे - जरूर कुछ खोट होगी तभी तो ऐसे शादी कर रहे हैं. ये खोट उस ज़माने में घर , खानदान और लड़के में किसी में भी हो सकती थी. ऐसे संकल्प वाले परिवार को मेरा नमन .
राज जी,
आपके बात सोलह आने सच कहावत है न कि 'काजी जी कहे दूबरे , पड़ोसी के अंदेशे में.' हमें दूसरे कि ख़ुशी नहीं देखी जाती है , अगर कोई अपने भाग्य से खुश है तो क्यों है? उसके लिए कहीं न कहीं से विषय खोज कर आलोचना करने लगते है लोग. ऐसी मानसिकता हमारे समाज के लिए आम है.
राज जी,
आपके बात सोलह आने सच कहावत है न कि 'काजी जी कहे दूबरे , पड़ोसी के अंदेशे में.' हमें दूसरे कि ख़ुशी नहीं देखी जाती है , अगर कोई अपने भाग्य से खुश है तो क्यों है? उसके लिए कहीं न कहीं से विषय खोज कर आलोचना करने लगते है लोग. ऐसी मानसिकता हमारे समाज के लिए आम है.
सबको है बेहतर जीवन जीने का हक , अपनी समझ के साथ जीने का हक । बेवकूफ़ हैं जो दूसरों की तकदीर से जलते हैं - छींटाकसी करते हैं । अच्छी पोस्ट , शुभकामनाएं । "खबरों की दुनियाँ"
यह फंसाने वाली बात लोग जलन में करते हैं ...
वैसे तो शादी ही फंसने का नाम है ..:)
और खोट वाली बात भी खूब कही ...सच किसी तरह चैन नहीं है लोगों को ...
बात तो सही है ....नहीं चाहते हुए और खुले विचार रखते हुए भी न जाने हम कैसे ऐसा सोचने लगते हैं ..!
इसी बात का तो रोना है कि आज भी सोच नही बदली चाहे कितने ही आधुनिक कहलाते हों।
निंदक निअरे राखिये आँगन कुटी छबाय.
ये बात सिर्फ शादी तक ही सीमित नहीं है अगर कोई व्यक्ति उन्नति पर चलना चाहता है तो लोग ऐसी बाते ही करते है
यह हमारी मानसिकता हे जिसे हम बदल नही सकते
अच्छी पोस्ट , शुभकामनाएं
बिना जाने पहचाने ,बिना सोचे समझे हम त्वरित प्रतिक्रिया दे ही देते है |
मानसिकता बदलनी चाहिए |
बहुत सुन्दर पोस्ट!
बहुत सही कहा आपने ...बेहतरीन प्रस्तुति ।
एक नजर यहां भी ...
http://urvija.parikalpnaa.com/2010/12/blog-post_29.html
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