वह स्टाफ रूम में पानी के गिलास लेकर जा रही थी और उसके आँचल से टप टप करके दूध टपकने लगा. उसका कलेजा धक् से हो गया. क्या छोटा भूखा है? बड़के ने उसको दूध नहीं दिया होगा? भूल गया होगा? अरे अभी है ही कितने साल का? कुल ४ साल ही का तो है. फिर आँचल लपेट कर वह स्टाफ रूम में घुस ही गयी और टेबल पर गिलास रख कर वापस आ गयी.
अभी कुल ४ महीने का ही तो छोटा है, उसको अभी माँ का ही दूध चाहिए लेकिन किस्मत की मार ने उसके दूध को भी उससे छीन लिया. कैलाश इसी स्कूल में चपरासी था और एक दिन साईकिल से जाते समय उसको एक ट्रक ने कुचल दिया. वह उस समय १५ दिन के छोटे को गोद में लिए थी. उसका तो घर ही बिखर गया. घर में अब बचा कौन ? बूढी अंधी सास और दो छोटे बच्चे. स्कूल वालों ने कहा कि अभी तुम्हें उसी जगह नौकरी मिल जाएगी तो तुम्हारे बच्चे पल जायेंगे नहीं तो दर दर भटकोगी और ये दुनियाँ वाले तुम्हें जीने नहीं देंगे. तभी उसने छोटे के २ महीने के होते ही नौकरी पर आना शुरू कर दिया था.
सुबह खाना बना कर रख देती और खुद रोटियां बाँध लाती. बड़ा दादी को खाने को दे देता और छोटे को दूध बोतल में भर कर पिला देता था. बस इसी तरह से जिन्दगी चलने लगी थी. महीने में इतना मिल जाता कि बच्चों का पेट भर लेती. स्कूल जरूर दूर था पैदल चल कर आती तो एक घंटा लग जाता था लेकिन दो रोटी का सहारा तो था .
उसका मन आज स्कूल में नहीं लग रहा था. पता नहीं क्यों छोटा भूखा रो रहा है? छुट्टी की घंटी बजाते ही , वह प्रिंसिपल से बोली की 'बहनजी , हमारी तबियत ठीक नहीं है, हम आज अभी घर चले जाएँ.' उसके व्यवहार और उसकी व्यथा से सब परिचित थे कि वह नन्हा सा बच्चा घर छोड़ कर आती है इस लिए कोई कुछ न कहता और उसको घर आने की अनुमति मिल गयी.
घर में कदम रखते ही बड़ा बोला - 'अम्मा आज छोटे ने दूध नहीं पिया और अम्मा खूब रोया , मैंने तो झूले में लिटा कर जोर जोर से झुलाया तो रोते रोते सो गया. छोटे के गालों पर बहे आंसू अब सूख चुके थे. वह दूध के पास गयी तो दूध का बर्तन तो उतना ही भरा था जितना वह छोड़ गयी थी फिर बड़े ने क्या पिलाया? उसने छाछ का बर्तन खोला तो उसमें कम था. आज बड़े ने अनजाने में दूध की जगह बोतल में छाछ भर कर उसको पिला रहा था तभी तो उसने पिया नहीं और भूखे छोटे की भूख उसके आँचल में ढूध के साथ बहने लगी थी. उसने छोटे को उठा कर अपना ढूध पिलाना शुरू तो बड़ा भी आकर वहीं खड़ा हो गया. 'अम्मा मैंने इसको दूध पिलाया था इसने पिया नहीं - अम्मा क्यों नहीं पिया इसने? ' उसने बड़े को भी खींच कर अपने गले से लगा लिया और उसकी आँखों से आंसूं बहने लगे. माँ को रोता देख कर बड़ा बोला - 'सच्ची अम्मा मैंने इसको दूध पिलाया था. तुम क्यों रो रही हो? मैं बोतल लाता हूँ.'
'नहीं मेरे लाल , मैं जानती हूँ कि तूने इसे दूध पिलाया था और इसने नहीं पिया.' पर वह इस लिए नहीं रो रही थी . वह तो अपनी किस्मत पर रो रही थी . इतना छोटा बच्चा छाछ और दूध का अंतर क्या जाने?
रविवार, 24 अक्तूबर 2010
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21 टिप्पणियां:
्बहुत समवेंदना शील कहानी, मजबुरी एक मां की,धन्यवाद इस कहानी के लिये
मार्मिक कहानी। आँखें नम हो गयी। उस माँ की तो मजबूरी थी मगर आजकल नौकरी करती औरतों के बच्चों का भी यही हाल है। कई बार मुझे लगता है कि हम औरतें अपनी आज़ादी, अपने करियर , का मोल बच्चों के जीवन से खेल कर चुका रहे हैं।धन्यवाद।
ओह!! एक सिहरन दौड़ गयी, शरीर में....ज़िन्दगी कैसे कैसे इम्तहान लेती है.
मार्मिक वर्णन। लघुकथा अपना प्रभाव छोड़ती है और हमें ठहर कर सोचने पर विवश करती है।
सच ज़िन्दगी कैसे कैसे इम्तहान लेती है
पीडा लेखिका की कलम से बहती हुई सहज ही पाठक की भावनाओ को उद्देलित कर जाती है।
द्रवित कर देता छाछ का चित्रांकन!!
मर्मस्पर्शी कथा.
बेहद मार्मिक चित्रण्…………आँखे भर आयीं………………।मजबूरी कैसे विवश कर देती है और उसमे भी एक माँ का ह्रदय अपने बच्चे को चाहे वो दूर ही क्यों न हो उसकी व्यथा को जान ही लेता है।
आर्थिक दृष्टि से कमजोर और कम पढ़ी लिखी औरतों से जुड़ा है. वे आज भी इसका शिकार हैं. वैसे ये घटना एकदम सच है. किसी के अनुभव कभी मिल जाते हैं तो वे लिख जाते हैं. फिर भी नौकरी ने बच्चों को ममता और सानिंध्य से वंचित तो कर ही दिया है.
ओह कितना मार्मिक !
ओह! मार्मिक कहानी...क्या कहें मजबूरी का.
मार्मिक कहानी , ह्रदय द्रवित हो गया , क्या कहा जाए . निःशब्द हूँ मै .
is dard ko aankhon me bhar liya maine ......
उफ्फ्फ!!!! मुझे मेरे पुराने दिन याद आ गए. सच बेहद मार्मिक पर सच्ची बात
उफ़ मार्मिक कहानी.वक्त और हालात क्या कुछ नहीं दिखाते.
अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी
आँचल में है दूध और आँखों में पानी.
.
मूल कविता के उद्धरण के कारण मुझे अबला लिखना पड़ा है, अन्यथा कैलाश की विधवा को अबला नहीं कहा जा सकता.
हाँ बिहारी भाई, वो अबला तो बिल्कुल नहीं लेकिन ऐसा मार्मिक कष्ट उसके कलेजे को छलनी कर देता है.
बहुत ही मार्मिक.
छोटी सी कहानी पर अंत में वाकई ही चकित कर गयी .
बहुत बढ़िया !
bahut hi savendan sheel kahani
http://blondmedia.blogspot.com/2010/11/blog-post.html
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