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बुधवार, 9 जून 2010

ये दर्द न होगा कम !

                        

  सदियों से बेटियों को हाशिये में रखने वालों के लिए - वे देखे कि एक बेटी की कमी कितनी दर्द देने वाली होती है. खोजते तो हम बेटी को बहू में भी हैं लेकिन क्या बहू बेटी बन पाती है? या सास माँ सी हो तो उसे वो अहसास दिला पाती है जो उसे अपनी बेटी से मिलता. 
                            मैं अपने एक मित्र परिवार में मिलने के लिए गयी थी. हम तब से मित्र है जब मेरी  शादी हुई थी. पतिदेव की मित्रता ने हमें भी मित्र बना दिया और फिर कुछ शौक और स्वभाव समान रहा तो कुछ ज्यादा ही निकट आ गए.  वो मंजू उसके आज दो बेटे और दोनों डॉक्टर हैं, बहुएं भी डॉक्टर हैं. आज से ३५  वर्ष पूर्व एक मध्यमवर्गीय परिवार के संघर्ष कि गाथा एक जैसी ही थी. उसने भी अपनी सीमित आमदनी में सब कुछ किया. बच्चों की पढ़ाई , सास ससुर की देखभाल और अंत में अपनी माँ की १२ साल तक बीमारी में अपने पास रखा कर सेवा. 
                          बहुत दिन बाद में उससे मिली थी. अब पतिदेव भी उसके रिटायर हो चुके हैं , दोनों बेटे बाहर नौकरी कर रहे हैं और छोटी बहू भी. सिर्फ बड़ी बहू यहाँ पर है. उसकी बच्ची के साथ समय काट लेती है. सारे सुख हैं लेकिन मानसिक शांति नहीं. वह भी बहुत संवेदन शील है. लिखने का शौक है पर लिख नहीं पाई कभी . इस मुलाकात पर तो जैसे बस भरी बैठी थी कि विस्फोट हो गया. पतिदेव उनके अंतर्मुखी प्रवृत्ति के हैं सो उनसे भी कुछ बाँट नहीं पाती. 
                   मुझसे बोली - रेखा मैंने सोचा था कि मेरी बेटी नहीं है तो बहू आ जाएगी तो मेरी बेटी के तरह से मेरे साथ व्यवहार करेगी मुझे एक साथी मिल जाएगा. इनसे तो कुछ कभी बाँट ही नहीं पायी, सारी जिन्दगी अपने गुबारों को अपने मन में ही लिए रही. सबसे बांटने कि अपनी आदत नहीं है. उससे सब कुछ बाँटूँगी. पर मेरा ये सपना चूर चूर हो गया.  जब मैं कभी उससे अपने जीवन के संघर्ष की बात करती हूँ तो कहती है कि आप तो अपने मुँह मियां मिट्ठू बनती हो. ऐसा कहीं होता भी है. 
                
                 सबसे बड़ा कष्ट तो तब होता है जब कि बेटे के आने पर बहुत परवाह करने का नाटक करने लगती है.  जब से एंजियोप्लास्टी हुई है मुझसे बर्दास्त नहीं होता. बहुत गुस्सा आता है ऐसी बातों पर. मैं क्या करूँ? मैं कल भी अकेली थी और आज भी अकेली हूँ. 


                      मैंने उसके दर्द को समझा उसके भरे गले से बयान किये गए दर्द को मैंने महसूस किया. कितनी अनमोल चीज होती है बेटी भी. दर्द तो बाँट लेती है. मंजू ये भूल गयी थी कि बहू बेटी तो किसी और की है. उसकी कैसे हो सकती है?  लेकिन ऐसा होना नहीं चाहिए.  क्या बहू सिर्फ और सिर्फ अपनापन भी नहीं दे सकती है. अरे डॉक्टर को तो दया और सहानुभूति का पाठ पढ़ाया जाता है. बाहर न सही घर में तो इसको अपना ही सकते हैं. 
            मैंने मंजू को सलाह दी कि तुम कंप्यूटर लो और बाकी चीजें मैं तुमको सिखाती हूँ. अपना ब्लॉग बना और उसको बना अपना साथी, ये अकेलापन और घुटन सब ख़त्म हो जायेगी. तुम्हारा अपना एक संसार होगा जिसमें इतने सारे लोग होंगे कि कभी लगेगा ही नहीं कि तुम अकेली हो.  वह इसके लिए राजी हो गयी और हो सकता  है कि एक और ब्लॉगर हमारे सामने हो.

23 टिप्‍पणियां:

shikha varshney ने कहा…

सही सल्लाह दी रेखा जी ! यहाँ ब्लोग्स पर माँ ,बहन ,बेटी जो चाहो मिलेगा :)

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत बढ़िया किया...एक बार खुद को अभिव्यक्त करना शुरू करेंगी तो मन हल्का हो जायेगा...

Narendra Vyas ने कहा…

सच में ये वृत्तांत पढ़ कर बहुत भावुक हो गया मैं. आदरणीय रेखा जी ने बहुत अच्छी प्रस्तुति दी है और एक सच्ची दोस्त होने का फ़र्ज़ भी अदा किया है. सच कहा आपने कि बेटी तो बेटी ही होती है,,क्योंकि वो ख़ुद एक औरत होती है इसलिए एक औरत ही औरत का दर्द जान सकती है..साथ ही जिस पर बीतती वही उस दर्द की गहराई को जान सकता है, और ये भी उतना हे सच है कि दर्द बांटने से कम होता है और ख़ुशी बांटने से बढ़ती है. हम आपकी दोस्त का तहेदिल से स्वागत करते हैं..और निवेदन करते हैं कि वो अपने अहसासों को भावना का आवरण पहनाकर शब्दों को माध्यम बना कर एक नई दुनिया में क़दम रखें..हो सकता है हमे उनका एक नया रूप देखने को मिले जिसे सब आदर, सम्मान और स्नेह दें. इन्ही शुभकामनाओं के साथ...साधुवाद !!

Anita kumar ने कहा…

आप की दोस्त का इस दुनिया में स्वागत है। सच है बेटी बेटी होती है और बहू बहू।लेकिन इस दुनिया ने सदा सास को ही विलेन बनाया है

रश्मि प्रभा... ने कहा…

kitna sahi kiya aapne... kuch to hoga dard kam

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

शिखा सही कहा तुमने, ये प्यारे से रिश्ते जिन्हें हम घर में खोजते हैं और कभी मिलते हैं कभी नहीं. सब कुछ है यहाँ और सब कितने अपने होते हैं.

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

अनीता ये तो है की सास को विलेन बनाया है लेकिन इस समय का जो दौर है उसमें प्रतिमान बदलते नजर आ रहे हैं. आत्मनिर्भरता के साथ शालीनता का सामंजस्य जो एक पीढ़ी पीछे लोगों में थी वह कहींखोती जा रही है.

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

रश्मि जी , कोशिश तो यही रहती है की किसी के लिए कुछ अच्छा कर सकूं.

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

नरेन्द्र जी, औरत तो बहू भी होती है लेकिन फिर पाता नहीं कैसे रिश्ता बेटी के आड़े कैसे आ जाता है? इसको समझ कर भी नहीं समझ पाते हैं.

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

संगीता, अभिव्यक्ति तो सबसे सशक्त माध्यम है, यही मेरी सोच है - बड़े से बड़े झंझावत को झेल सकते हैं और वह भी सामान्य मनोदशा बनाये रख कर. उसको झेलने के लिए कलम जो है.

Shekhar Kumawat ने कहा…

hame besabri ke sath intjar he us blogger ka

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

सही सलाह.

माधव( Madhav) ने कहा…

well advice

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

आपकी मित्र से कहिए कि शीघ्र ही ब्‍लाग बनाए हम सब उनको इतना प्रेम देंगे कि उन्‍हें कभी किसी बात की कमी खलेगी ही नहीं।

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

धन्यवाद अजित जी,

मैं प्रतिबद्ध हूँ और जल्दी ही उनको सामने लाऊँगी, वे भी हम में शामिल हो कर अपना जीवन हंसी और खुसी से भर सकें.

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

badi pyari salah aapne di!! .....khud b khud sab mil jayenge.......yahan!!

ek yatharthwadi rachna!

ashish ने कहा…

मै भी आपकी सुझाव पर गौर कर रहा हूँ. वैसे शिखा जी ने कहा है ब्लॉग जगत में माँ , बहन , बेटी सब मिलती है. माँ और बहन का संबोधन तो मैंने देखा है लेकिन बेटी का संबोधन मुझे कही नजर नहीं आया. हा हा .

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

आशीष,
ये बताओ जब माँ का संबोधन मिला जाता है तो जो माँ कहेगा वो उससे क्या रिश्ता रखेगा? बेटा या बेटी? बेटी भी मिल जायेगी. ब्लॉग जगत की बात तो नहीं करती हूँ, लेकिन मेरे साथ काम करने वाले इंजीनियर कोई भी मुझेमैम नहीं कहता सब आंटी ही कहते हैं. और उनमें से ज्यादातर कानपुर से जाने के बाद भी मेरे संपर्क में हैं.

ज्योति सिंह ने कहा…

har dil ka dard ,har ghar ki kahani .aur vewazah saza......jariya ek bas prasthti me bhinnta .rekhao ke khel hai ye ,bante mitte hai .ek gazal jagjit ki gaayi hui yaad aa rahi hai pesh kar rahi hoon -------------

♫ न मोहब्बत न दोस्ती के लिए
वक़्त रुकता नही किसी के लिए ,
दिल को अपने सजा न दे यू ही
इस जमाने की बेरुखी के लिए ,
हर कोई प्यार ढूंढता है यहाँ ,
अपनी तनहा सी जिंदगी के लिए ,
कल जवानी का हश्र क्या होगा
सोच ले आज दो घडी के लिए ,
वक़्त के साथ - साथ चलता रहे
यही बेहतर है आदमी के लिए .

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

ज्योति जी,
बहुत सटीक बात कही है, पर जब अपने पर गुजराती है तो शायद हम सारी बातें भूल जाते हैं और भटकने लगते हैं इनके उत्तरों के लिए चारोंतरफ.

ज्योति सिंह ने कहा…

apne ko samjhana aasaan kahan ye to shat -pratishat satya hai par aashawadi hona jeene ke liye jaroori hai ,main to apne se dukhi insaan ka khyaal karti hoon to sochti hoon ki halke se jhatke pe nahi girana chahiye hum bahut behtar hai ,ishwar ka dhayawaad karti hoon .ek kahawat hai jab hamare joote purane ho jaate to hum nirash ho jaate hai lekin jinke paanv jute hi nahi pahan paate ya bina panv ke hote hai unka dard mahsoos karne me bhi taklif hoti hai .kuchh aese hi raste jindagi ko jeene me sahayak hote hai ,aapse vicharo ka aadan pradan achcha laga .

शोभना चौरे ने कहा…

आपका ये आलेख तो छूट ही गया था मुझसे |आपकी मित्र का दर्द मै शिद्दत से महसूस कर सकती हूँ पता नहीं आजकल बच्चो को इतना प्यार मिलने के बावजूद भी वो प्यार क्यों नहीं लौटा पा रहे है अपनी पीढ़ी के पास शनै :शनै :सब कुछ आया पर प्यार तो हमारी अपनी पूँजी थी जिसे जी भरकर लुटाया |
मेरी साँस शुरू से ही गाँव में रहती है सिंपल सी जब वो पहली बार मेरे पास आई थी और जब वापस जाने लगी तो मैंने उनकी तैयारी की उनकी सारी जरुरत की चीजे रख दी तो उनकी आँख में आंसू अगये कहने लगी जैसे मेरी माँ मेरी विदाई कर रही हो और शायद हम भी अपनी बहुओ से यही अपेक्षा करने लगते है |
आप ने उन्हें ब्लाग लेखन का काम सुझाकर बहुत ही नेक काम किया है इस तरह उनका ध्यान बाँट जावेगा और सकारात्मक सोच का उदय होगा |
धन्यवाद

Unknown ने कहा…

वाह आंटी! बहुत बढ़िया रास्ता सुझाया आपने उनको। मैं तो उपाय पढ़ते ही भाव विभोर हो गया और जो थोड़ी बहुत सहानुभूति उन मोहतरमा के साथ थी वह खुशी में बदल गई। कहते हैं न जिसका कोई नहीं होता उसका ईश्वर होता है। ब्लॉग पर इतने रिश्ते बनेंगे कि बहू को भी भूल जाएँगी। आपको साधुवाद।