इस जीवन में कुछ रिश्ते ऐसे बन जाते हैं, जो न हम जन्म से लेकर आते हैं, न वे हम उम्र होते हैं और नहीं वे हमारे मित्र की श्रेणी में आते हैं. ऐसा ही एक रिश्ता इस आफिस में ही बना और वो आई थी यहाँ काम करने. उसके बारे में पहले से सुनती आ रही थी क्योंकि एक दुखद घटना उसके जीवन में घट चुकी थी. उस समय उसका पूरा परिवार अस्पताल में भर्ती था और सिर्फ माँ थी जो सबको देख रही थी. ऐसा अजीब समय था कि घर के ३ सदस्य कोमा की स्थिति में थे. घर और अस्पताल के बीच वह दौड़ती रहती थी. कभी पति, कभी बेटी और कभी बेटे के बैड पर जाती और फिर किसी एक के पास बैठ जाती थी.
फिर एक दिन वो भी उन्हीं में से एक बैड पर पड़ गयी और सब को उसी हालत में छोड़ कर खुद चली गयी, बड़ी बेटी कहीं बाहर पढ़ रही थी उसको बुलाया गया. मुखाग्नि देने के लिए न पति और न बेटा कोई भी मुहैय्या न था. फिर वह यूँ ही विदा कर दी गयी. हफ्तों तक किसी को नहीं मालूम कहाँ है? फिर बड़ी बेटी ने सब संभाला और कहा कि माँ घर में है. जब वे सब ठीक होकर घर आ गए तो पता चला कि वो सबकी सेवा करते करते सबके लिए जीवन मांग कर खुद चली गयी. सब बिखर गए , एकबारगी लगा कि अब क्या होगा? बहुत छोटी थी उस समय. माँ के बिना जीना सीख लिया था उसने भी. पर एकाएक माँ का जाना सबके लिए असह्य था.
पिता ने दोनों कि जिम्मेदारी संभाली.
अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद वह मेरे यहाँ तक पहुँची, पहले ट्रेनिंग के लिए और फिर नौकरी के लिए. बहुत से लोग आते हैं और आकर चले जाते हैं, वह आई और गयी भी पर इस बीच उसने मुझसे माँ का हक ले लिया. कुछ निर्णय और बातें ऐसी भी होती हैं , जिन्हें बेटी सिर्फ अपनी माँ से बांटती है. वो मुझसे बांटी. हर लड़की की तरह से उसके जीवन में भी शादी जैसे मुद्दे के लिए जद्दोजहद शुरू हुई. वह भी गुडिया के तरह से कई लोगों के सामने ले जाई गयी और फिर इससे वह परेशान होने लगी. बिना माँ के बेटी पिता को अपने निर्णय न बता सकती थी और जो उसके सगे थे वे बहुत दूर थे.
फिर उसे मिला एक दोस्त जो उसके लिए चेहरे कि हंसी लेकर आया. उसने समझा और समझाया भी. मैं साक्षी थी उसके हर पल की. मैंने भी दिल से चाहा कि जो इसने अपने जीवन में खोया है वह उसको मिल जाया. एक माँ मिलनी चाहिए, जो इसको बहुत बहुत प्यार दे. बहुत लम्बी हाँ और न के बीच तनाव के पल जीते हुए उसको वो भी मिला जिसके लिए वह तृषित थी.
फिर एक दिन उसने मुझसे कहा - आप मेरे लिए एक कविता लिखिए. ये कविता उसी के लिए लिखी गयी थी और आज जब अचानक डायरी में मिली तो सोचा कि इसको उसके नाम ही डाल दूं.
हर जीवन
गौर से देखो
एक कविता है.
तुम खुद एक कविता ओ
बस उसको पढ़ने वाला हो.
आज तुम्हारी खिलखिलाती हंसी में,
अतीत के ढरकते आंसू
सहम कर लौट जाते हैं.
ईश्वर न करे
कभी सपने में भी
वे भयावह दिन आयें.
जब खुशियाँ सपनों में आतीं
और नींद टूटने के साथ
सपने में ही बिखर जाती थीं.
उन भयावह दिनों को झेलकर
आज कीमत खुशियों की जानी है.
उन्हें समेट लो
भर लो अपने आँचल में
खुश और बहुत खुश रहो
फूल खिले रहें
तेरी जीवन बगिया में
और महकता रहे जीवन
खूबसूरत उपवन कि तरह.
खूबसूरत उपवन की महक
बस मुझ तक आती रहे
औ' याद तुम्हारी
दिलाती रहे.
मंगलवार, 27 अप्रैल 2010
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13 टिप्पणियां:
Yahi to jindagi ki katu sachchai hai, kab kiske saath kya ghat jata hai, ya ghat sakta hai, koi nahi janta.........:(...!!
Kavita ke dwara aapne apni anubhuti ko bahut khubsurat dhang se ukera hai......god bless!!
देश और सामाजिक स्थिति का सजीव चित्रण करता हुआ एक विचारणीय कविता के शानदार प्रस्तुती के लिए धन्यवाद / ऐसे ही विचारों के सार्थक प्रयोग ब्लॉग के जरिये करने से ही ब्लॉग को सशक्त सामानांतर मिडिया के रूप में स्थापित करने में सहायता मिलेगा /
gadh or padh ka ek bejod namoona .haqiqat ko is khoobsurati se shabd diye aapne ki tariif kiye bina raha na gaya ..
अनकहा
संवेदना अब कहां बची इंसानो में,
किसी के दर्द से उफ भी नही होता बेजुबानो में,
ये आप हैं जो याद कर लेती हैं इंसानियत को,
वरना इतनी फुरसत कंहा आज के दिवानों में.
मार्मिक घटना.
तेरी जीवन बगिया में
और महकता रहे जीवन
खूबसूरत उपवन कि तरह.
खूबसूरत उपवन की महक
बस मुझ तक आती रहे
औ' याद तुम्हारी
दिलाती रहे
इस आशीष ने उसे कितना सम्बल प्रदान किया होगा.
हाँ वंदना वो आज भी मेरी बेटी सा प्यार करती है, उससे पाया बेटा भी उतना है अच्छा है.
हर जीवन
गौर से देखो
एक कविता है.
वाकई जीवन और कविता एक दूसरे के अन्योन्याश्रित ही तो हैं
kya kahun ?
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benaam rishton kee padtaal karti
behad sundar post.
aabhaar
shubh kamnayen
main to nihshabd hun, tareef ke shabd kam ho rahe.....
क्या कहें..क्या क्या खेल दिखाता है उपर वाला..बस, जीने का कोई सहारा हो!!
तुम खुद एक कविता ओ
बस उसको पढ़ने वाला हो.
बहुत भावपूर्ण!
ओह ..इतनी सुन्दर पोस्ट और मैं इतनी देर से पहुंची पढने :(
सच कहूँ पढ़ते पढ़ते रोंगटे खड़े हो गए...ऐसा समय भी आता है, कभी कभी...माँ ने अपना जीवन न्योछावर कर दिया...पिता ने संभाला तो पर माँ का सहज स्नेह कहाँ से दे पाता...और इसी लिए ईश्वर ने आपको चुना....रोम रोम से दुआ है उस लड़की के लिए..
कविता तो बेमिसाल है ही
कभी-कभी कुछ सरल से शब्द ज्यादा सच्चाई से जीवन को....और उसकी गहराई को व्यक्त कर जाते हैं.....ऐसी ही लगी यह कविता आपकी मुझे....लिखती रहे.....आभार
बहुत ही उम्दा लेखन है आपका। कविता दिल से लिखी है और पढ़ते ही दिल में उतरती भी है। बहुत खूब।
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