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शनिवार, 10 अप्रैल 2010

शायद हम अब कभी न मिलें!

            परसों ही टीवी पर छत्तीसगढ़ में हुए शहीदों पर आ रहे समाचार देख रही थी. एक शहीद ने उस समय अपने घर फ़ोन किया था और कहा कि हमें नक्सलियों ने चारों तरफ से घेर लिया है , चारों तरफ से गोलियां चल रही हैं. फिर फ़ोन कट गया और फिर जब उसकी पत्नी ने मिलाया तो अंत समय मिला उसने कहा - 'मेरे सीने में दो गोलियां लगी हैं, अब शायद मैं नहीं बचूंगा , मेरे बच्चों का ख्याल रखना. '
                      उस समय उसके इन शब्दों के बारे में सुनकर आँखों से आंसूं गिरने लगे.  क्योंकि ऐसी ही एक अतीत के घटना में मैं चली गयी थी और उस समय लगा कि किसी ने सच ही कहा है.
                    'कौन रोता है किसी और की खातिर ए दोस्त सबको अपनी ही बात पर रोना आया.' 
 ये घटना १९९२-९३  की है, जब मुंबई में भयानक धमाके हुए थे.पूरी मुंबई दहल उठी थी. उस समय मैं आई आई टी में नौकरी के साथ साथ विश्वविद्यालय से कंप्यूटर साइंस में डिप्लोमा भी ले रही थी. पहली बार ही ये कोर्स वहाँ शुरू हुआ था और वहाँ पढ़ाने वाले मेरे ही विभाग के लोग थे.  सबको मालूम था कि ये जो यहाँ पढ़ाया जा रहा है, उससे मैं अच्छी तरह से वाकिफ हूँ, लेकिन ये सब मैंने यही पर सीखा था.
           उस समय मेरे सेमेस्टर एक्जाम चल रहे थे. मेरे पति अपनी कंपनी की तरफ से मुंबई ट्रेनिंग के लिए गए हुए थे. उसी समय वहाँ पर एकदम से ये स्थिति पैदा हो गयी. वहाँ से न तो कोई फ़ोन ही आसकता था और न तब मोबाइल ही आया था. बस टीवी पर समाचार देख सकती थी और ईश्वर से उनकी सलामत की कामना कर रही थी . मेरी दोनों बेटियां छोटी थी. मेरे सिर पर हाथ रखनेवाले मेरे ससुर का निधन भी हाल ही में हो गया था. 
                  एक दिन मेरे पति ने सोचा की यहाँ से बच कर जाना तो बहुत ही मुश्किल लग रहा है , एक इनलैंड लैटर उनके पास था तो उन्होंने सोचा कि यहाँ से पता नहीं मेरी लाश भी वहाँ पहुँच पाएगी या नहीं, इस लिए मेरे लिए एक पत्र लिखा. जो इस प्रकार था.


 प्रिय रेखा,


               मैं यहाँ बम्बई में एक होटल में हूँ, यहाँ से बाहर नहीं जा सकते हैं, चारों तरफ धुंआ ही धुंआ दिखाई दे रहा है. अगर कंपनी के लिए बाहर जाता हूँ तो सिर झुका कर सड़क पर चलना होता है. वहाँ भी लगता है की कहीं से कोई गोली आकर न लग जाए.
                मैं नहीं जानता की यहाँ से वापस कानपुर पहुँच पाऊंगा या नहीं , फिर भी पता नहीं कोई खबर मिले या न मिले इसलिए ये पत्र लिखा रहा हूँ. कि अगर कुछ अनहोनी हो जाए तो तुम बच्चों को बहुत प्यार के साथ पालना....
अगर बच कर आ गया तो मिलूंगा. ये पत्र एक लैटर बॉक्स में डाल देता हूँ. 
सबको यथायोग्य कहना.
--आदित्य


ये पत्र मुझे मिल चुका था क्योंकि मैं अपने पत्र आई आई टी  के पते पर ही  मंगवाती थी. उस पत्र को पाकर मेरी जो हालत थी मैं नहीं बयां कर सकती. मैं पेपर लेकर बैठी थी और चुपचाप न पेन खोला न कॉपी.    मेरे शिक्षक आर्य जी,  जो आई आई टी में हमारे अच्छे मिलने वालों में थे , मुझे देख कर बोले - अरे कुछ कर क्यों नहीं रही हो?    मेरी पास वाली लड़की से बोले - आद्या आज इनको क्या हुआ है? 
         वह पत्र मेरे हाथ में दबा हुआ था, मैंने चुपचाप उनको पकड़ा दिया और फूट फूट कर रोने लगी. जब उन्होंने पत्र पढ़ा तो फिर समझने लगे -'अरे ये क्या? अब तो वहाँ सब कुछ ठीक होने लग है. ये पहले लिखा होगा आ ही रहे होंगे. परेशान मत हो. '
        इस बात को मैं अपने घर में जाकर किसी को नहीं बता सकती थी. किसी तरह से पेपर दिया और वापस घर आ गयी. मुझे सब कुछ अंधकारमय लग रहा था. वैसे भी मेरे पति टूरिंग जॉब में थे तो अकेले सब करने की आदत तो थी लेकिन इस तरह से कुछ सामने आ सकता है ऐसा नहीं सोचा था. 
                   उसी रात ११ बजे गेट खटका , मेरा उठाने का मन नहीं था. मैं लेटी रही , किसी ने दरवाजा खोला और जब इनकी आवाज सुनी तो मैं एकदम से उठाकर भागी . फिर इन को पकड़ कर जो मैं रोई थी, शायद जीवन में कभी नहीं रोई. 
"इन्होने धीरे से पूछा की चिट्ठी मिल गयी क्या?" 
घर वाले भी नहीं समझ पाए कि मैं क्यों रोई? 
ईश्वर  को लाख लाख धन्यवाद कि उसने मुझे उस विषम स्थिति से जल्दी ही उबार लिया.


पर उस शहीद की आत्मा को ईश्वर शांति प्रदान करे और परिवार वालों को साहस दे की वे उसके सपनों को पूरा कर सकें.

10 टिप्‍पणियां:

rashmi ravija ने कहा…

ओह इतनी मार्मिक घटना...उन पलों में आप पर क्या बीती होगी..सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है...और आप उन जवानों के घरवालों के दुःख दर्द बिलकुल करीब से अनुभव कर सकती हैं...
मुंबई में ऐसी घटनाएं इतनी आम हो गयी हैं...फिर भी उन्हें महसूस करना आम नहीं हुआ है...हर बार उतनी ही तकलीफ होती है...और हाथ जुड़े होते हैं प्रार्थना में कभी पडोसी के लिए कभी सहेली के पति के लिए..
एक सहेली के पति ताज में थे जब ताज के अंदर गोलीबारी चल रही थी...आज भी रूह काँप जाती है उसके हालत का अनुमान कर...सुबह ५ बजे उसने टी.वी. पर ही अपने पति को ताज से सुरक्षित निकलते देखा...पर सब ऐसे भाग्यशाली नहीं रहें होंगे...

Unknown ने कहा…

aah kitna marmik...dil dehla dene wale pal...wahi samajh sakta hai jis par guzri ho....ishwar kare bhavishya me bas sukh shanti hi rahe...

http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

संगीता पुरी ने कहा…

अपनो के बारे में कुछ अनहोनी की कल्‍पना से भी सांस थम सी जाती है .. दो चार दिनों में सामान्‍य होने पर ये बातें याद भी नहीं रहती .. आपपर ईश्‍वर की कृपा रही .. पर जिनके साथ बुरा हो चुका .. उनका आज क्‍या हाल होगा .. शहीदों को नमन और श्रद्धांजलि !!

Udan Tashtari ने कहा…

जिस पर गुजरती है, वो ही समझता है इस दर्द को...बहुत मार्मिक वृतांत सुनाया. आपकी हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है.

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

बहुत मार्मिक घटना. शहीदों के सगे-सम्बन्धियों का दर्द उस एक पल में आपने महसूस कर लिया होगा. और निश्चित रूप से अब ऐसी कोई घटना आपको ज़्यादा झिंझोड़ती होगी.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

main us sannatewali manahsthiti tak pahunch gai......waakai, dil dahal gaya.......ishwar sabkuch sakushal rakhe

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

आज इसे पढ कर हम कैसा भी महसूस करें पर उन समय आप पर क्या बीत रही होगी उसकी तो कल्पना भी नहीं की जा सकती।

ज्योति सिंह ने कहा…

aese haadse padhkar rom rom sihar jaata hai ,jiske kareeb se gujara ho uski kya sthiti hoti hogi bayan karna mushkil hai ,aap zindagi ki is sachchai ko itne kareeb se mahsoos ki waakai himmat ki baat hai ,is baat ka andaaja lagaya ja sakta hai ,aese jambaaz sipahiyo ko hajaro salaam jo hamari hifajat ke liye khatro ke beech rahte hai .

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

itni marmik ghatna ka itna jeewant chitran.......!! aap to kagaj pe khud utar jaati hai........!! upar wala sab dekh raha hai, aur sab apne anuroop karwa raha hai........ab kya kahen!! jo hota hai, achchha nahi hai ......lekin yahi jindagi hai!!

Dr Shashank Sharma ने कहा…

jeewan es tarah ki na jan kitni duvidhaon se bhara hai...hum sab ek aise samaj me rah rahe hai jiska bhavishya kya hoga hume nhi pata..aasha kijiye ki kabhi ek subah aesi aaye ki har koi khud ko surakshit mahsoos kare...