आ अब लौट चलें !
समाज में रोज ही मनुष्य की मानसिक विकृतियों के समाचारों से क्या अख़बार , क्या सोशल मीडिया भरा पड़ा रहता है। कोई भी दिन ऐसा नहीं जाता जब कि सुर्ख़ियों में ऐसी कोई भी एक घटना न हो। हमने अख़बार पढ़ा या फिर सोशल मीडिया पर स्क्रॉल किया और आगे बढ़ गए, लेकिन क्या सब ऐसा कर पाते हैं। हत्याएँ, आत्महत्याएँ, दुष्कर्म, लूटपाट आदि क्या हैं ? ये आज के सबसे बड़े सामाजिक मुद्दे हैं, लेकिन इतने पर भी हम शायद ये नहीं सोच पा रहे हैं कि इन पर अंकुश कैसे लगाया जा सकता है ? आधुनिक जीवन शैली और जीवन में स्वच्छंदता चाहने वाली पीढ़ी इसके दुष्परिणामों के विषय में सोच ही नहीं पाती है, न ही सोचना चाहते हैं। उनकी सोच अब वहाँ तक जाना ही भूल गयी।
आज की सोच !
आज की नई पीढ़ी एकल परिवार की पक्षधर है क्योंकि यहाँ उनको कोई भी टोकने रोकने वाला नहीं चाहिए। अपनी नौकरी के बाद उनका मन आएगा तो घर में रहकर आराम करेगी या फिर बाहर जाकर क्लब, पार्टी या फिर घूम-फिर कर तरोताजा होकर डिनर लेकर घर आकर सो जाना पसद करते हैं। जब तक वे अकेले रहते हैं तब तक तो सब ठीक चलता रहता है, लेकिन परिवार में नए मेहमान के आने के साथ ही उनकी जीवनचर्या बदल जाती है। बच्चे के साथ पहले की तरह से चलना संभव नहीं है। तब शुरू होता है गृह कलह। जिस स्वच्छंद जीवन के वह लोग आदी होते हैं, वह बिलकुल भी संभव नहीं हो पाता है। यही तो यह स्थिति है, जिससे निबटने के लिए समझदारी से काम लेना होता है और फिर अपने पुराने परिवेश में कुछ अनुशासित रहने की सोचने की जरूरत है।
जीवन में या तो इंसान अकेले ही रहने का निर्णय ले, लिव-इन या फिर सिर्फ दो ही रहने के बारे में सोचने लगे हैं। ये न तो सामाजिक दृष्टि से समाधान है और न ही पारिवारिक दृष्टि से। हम सृष्टि के नियमों को तोड़ तो सकते हैं लेकिन फिर एक रोज जब अकेले बिल्कुल अकेले खड़े होते हैं तो आशा भरी नज़रों से उनको देखते हैं जो कहीं से भी हमारे कुछ लगते हैं। नहीं तो अकेले घर में पड़े पड़े दम तोड़ देते हैं। यहीं कहीं तो कई कई दिनों तक पता ही नहीं चलता है कि इस घर में रहने वाला नहीं रहा है।
परिवार की सुरक्षा !
रोज नयी-नयी खबरें- जो बाल यौनशोषण, वर्चुअल ऑटिस्म, उत्श्रृंखलता या फिर छोटी उम्र में जरा सी अनबन या डाँटने पर आत्महत्या की घटनाओं से लेकर चर्चा का विषय बनती हैं। यह वहीं ज्यादा होता है, जहाँ दोनों ही कामकाजी होते हैं और बच्चे या तो मेड के सहारे या पड़ोसियों के घर में छोड़ दिए जाते हैं। हर कदम पर लोग अच्छे ही नहीं होते हैं और फिर कई जगह पर ऐसे ऐसे अपराध सामने आते हैं कि लोगों का विश्वास रिश्तों से उठ जाता है फिर क्या ? इसका विकल्प हमको ही खोजना पड़ेगा।
अभी देर नहीं हुई है जब जागो तभी सवेरा - उच्च शिक्षा, कामकाजी होना कोई अपराध नहीं है, लेकिन उसको भी सकारात्मक रूप से देखा जाय। जब तक आप सक्षम हैं, आपको किसी की जरूरत नहीं है लेकिन परिवार वह वृक्ष है जो आपको धूप आने पर छाया देने से इंकार कभी नहीं करेगा। आप अपने रिश्तों को मधुर बनाये रखें।
ससम्मान रखिए!
आपके माता-पिता भी आपका साथ चाहते हैं और साथ ही बच्चों का भी। उन्हें आप ससम्मान अपने साथ रखिए। आपके बच्चों को सुरक्षा कवच मिल जाएगा। आपको एक बेफिक्री कि हमारा घर और बच्चे सुरक्षित हैं। रहा सवाल बड़ों की रोक टोक का तो वे कोई किराये पर लाए हुए इंसान नहीं हैं बल्कि आपके अपने हैं, अगर उनका सुझाव या बात उचित है तो स्वीकार कर लीजिए और अगर नहीं है तो उनको समझाइये कि ऐसा संभव नहीं है। उनके पास आपसे ज्यादा अनुभव है सो उसका लाभ लीजिए।
वापस लौटना उचित है !
अपनी संस्कृति से मिले संस्कार और पारिवारिक ढाँचे में ढलना कोई बुरी बात नहीं है। वक्त किसी ने नहीं देखा है , जब जब मुसीबत आती है तो सिर्फ माता-पिता ऐसे होते हैं जो आपके साथ खड़े होते हैं, भले ही उनके पास सीमित साधन हों। हमें वापस लौटने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए। अपने परिवार और बच्चों के लिए एक सुखद भविष्य बनाने में यदि वापस लौटना उचित है तो वापस आ जाइये। ऐशो-आराम की जिंदगी जो आप जी रहे हैं, उसमें कोई खलल नहीं पड़ेगी बल्कि बच्चों को संस्कार जैसी चीजें मिलेंगी। वे मोबाइल या टीवी के गुलाम नहीं होंगे।
एक साथ जरूरी है !
अपना समझिये तभी उनको घर लाइए। अगर एक नौकरानी या नौकर का विकल्प समझ कर ला रहे हैं तो रहने दीजिए। वापस लौटने का अर्थ है कि आप अपनी जड़ों से फिर से जुड़िए और उनसे वह ग्रहण कीजिए जिसकी आज जरूरत है। रुपये पैसे धन दौलत वक्त पर बहुत कुछ तो होते हैं, लेकिन सब कुछ नहीं होते हैं। समय पर सब कुछ सिर्फ कुछ अपने रिश्ते होते हैं जो कंधे पर हाथ धरे होते हैं।
रेखा श्रीवास्तव
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