जयश्री गांगुली ! (खो गए जो समय के साथ। )
जयश्री गांगुली यही नाम था उसका, बहुत बड़े घर की बहू और संपन्न घर की सात भाइयों की सबसे छोटी इकलौती बहन। जिसने जीवन में अभाव कभी देखे ही नहीं थे। हाथों हाथ रहने वाली प्यारी सी लड़की थी। बोलने में बहुत मधुर और रवींद्र संगीत में पारंगत होने के साथ साथ बहुत अच्छी चित्रकार थी।
उसका पति एक सैन्य अधिकारी का पुत्र था और बड़ा लाड़ला बेटा, एक कंपनी में मैनेजर था। जयश्री के पिता ने अच्छा घर और वर देख कर शादी कर दी। उनका घर एकदम किसी रईस के घर की तरह था। एक बंगलेनुमा घर में रहते थे। उस समय उनके घर में शानदार रेशमी परदे झूला करते थे। जब वह सब सुख सुविधाएँ, जो मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए जुटाना संभव नहीं था, उनके घर में उपलब्ध थीं। घर जतिन की माँ के अनुरूप ही चलता था क्योंकि एक सैन्य अधिकारी का जीवन जिस अनुशासन में बँधा होता है, वह भी उसी अनुशासन की आदी थीं।
जयश्री एक अनुशासित और अपनी सासुमाँ की आज्ञा पालन करने वाली बहू थी। जितना सुख उसने अपने पिता के घर में उठाया था, उससे ज्यादा ही सुख उसको यहाँ पर भी था। जितना कहूँ , उसके लिए कम ही रहेगा।
जयश्री के दो बेटे थे - बड़ा सुदीप और छोटा प्रदीप। दोनों बच्चे एक प्रतिष्ठित कान्वेंट स्कूल में पढ़ रहे थे। उसकी जिंदगी ने एक ऐसी करवट ली कि सब कुछ सारे गुण कहाँ खो गए नहीं मालूम। पति की महत्वाकांक्षाओं ने कंपनी में गबन कर दिया और एक लम्बे समय तक करते रहने के बाद वह पुलिस को तो नहीं सौंपा गया लेकिन उसको निकल कर बाहर कर दिया गया। जयश्री एकदम काँप गयी क्योंकि घर तो सासुमाँ ही चला रही थीं और जतिन की कमाई सिर्फ उसकी शान शौकत के लिए ही होता था।
कंपनी से निकल कर जतिन एकदम बेकार होकर अपनी पुरानी आदतों और साथियों को छोड़ नहीं पाया और फिर पैसे के कमाने की लत ने उसको गलत कामों में फंसा दिया। ये जयश्री की गलती थी कि वह पति के आचरण को अब तक समझ नहीं पायीं थी। एक दिन पुलिस की रेड पड़ी और जतिन को नकली नोटों के साथ पकड़ा गया था और घर की तलाशी लेने पर काफी करेंसी बरामद की गयी। पुलिस ने भी बेइज्जत करने का कोई भी कसर नहीं छोड़ी, जतिन को हथकड़ी डाल कर सड़क पर दूर खड़ी जीप तक पैदल चलाते हुए ले गयी। माँ इस सदमे को सह नहीं पाई, उनको हार्ट अटैक पड़ा और वह चल बसी। बचे जयश्री और उसके नाबालिग बेटे - उन्होंने जतिन के छोटे भाई नितिन को सूचना दी और नितिन तुरंत आया। पुलिस सिर्फ माँ की अंतिम क्रिया के लिए जतिन को अपनी कस्टडी में लायी और वापस ले गए। जतिन भाई को देख कर रो पड़ा और बच्चों को गले लगाकर खूब रोया लेकिन अब कुछ कर नहीं सकता था।
नितिन ने माँ के सारे अकाउंट खोलने के लिए कानूनी कार्यवाही करके जयश्री के लिए कुछ समय के लिए आर्थिक सुरक्षा की व्यवस्था कर दी। जयश्री अकेले ही सब लड़ाई लड़ने लगी, लेकिन कुछ महीनों के बाद मकान मालिक ने भी मकान खाली करने के लिए नोटिस दे दिया। बाकी किराया होने के कारण उसने सामान भी कब्जे में ले लिया। जयश्री अपने जरूरी सामान लेकर अपने पिता के घर चली गयी। वह घर जो उसके लिए हमेशा खुला रहता था, पिता के न रहने पर उसके घर पहुँचने पर किसी ने कोई स्वागत नहीं किया। लेकिन रहने के लिए उसको पिता का कमरा दे दिया गया। पापा के पास कमरा ही था कोई किचन वगैरह तो नहीं था और सारे भाइयों का अपना अलग अलग पोर्शन था। कुछ ही महीने गुजरे थे कि भाभियों ने कहा कि अब अगर दूसरा घर ले लें तो अधिक अच्छा रहेगा। बच्चे बड़े हो गए हैं तो पापाजी का कमरा भी उनको देना पडेगा।
जयश्री ने वहाँ से बहुत दूर कहीं एक मकान खोजा, जो सबसे ऊपर की मंजिल पर बना हुआ एक कमरा और उसके आगे एक बरामदा था बस उसके आगे खुली लम्बी सी छत। इत्तेफाक से उसके उस घर के पास से गुज़रते हुए जयश्री ने देख लिया और जिद करके अपने घर ले गयी। जब उसके कमरे में घुसी तो जैसे किसी ने आसमान से जमीन पर लाकर पटक दिया था - एक लकड़ी का तख़्त उस पर एक दरी और चादर पड़ी थी। एक लोहे का बक्सा जिस पर कुछ जरूरी सामान रखे थे और सामने स्टूल पर एक टेबल फैन। एक स्टूल पर स्टोव रखा था। उसके उस रईसी ठाठ बाट की साक्षी थी, उसे हालत को देख कर सदमे में आ गयी।
किसी तरह से घर चलाना था, कभी शौकिया पढ़ाया था, उसको अनुभव था और उसी अनुभव के सहारे नौकरी कर ली। आखिर कितना कर लेती वह , बच्चों की पढाई छूट गयी दोनों ही नाबालिग थे लेकिन संवेदनशील थे, बड़े ने एक फैक्ट्री में नौकरी कर ली, वहाँ घंटों पर भुगतान होता था और छोटे को कान्वेंट से निकाल कर हिंदी माध्यम में पढ़ना शुरू कर दिया लेकिन मन उसका भी परेशांन रहता था। रात में सब चुपचाप खाना खाते और सो जाते सुबह से वही रूटीन शुरू हो जाता।
एक दिन जतिन जमानत पर छूट कर आया और रातोंरात वह चला गया, घर में बताया या नहीं लेकिन चला गया। कुछ दिन बाद सब चले गए। कहाँ? किसी को पता नहीं चला। उसे प्यारी सी महिला, जो केयरिंग थी, कुशल गृहणी थी, एक अच्छी माँ और पत्नी थी लेकिन आज दसियों वर्ष हो गए और उसका किसी को भी कुछ भी पता नहीं है। गुम हो गया एक नाम और इंसान।
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