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शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024

मौत से साक्षात्कार !

                                              मौत से साक्षात्कार !

 

                       अगर जन्म एक जीवन का आरंभ है तो मौत उसकी इति।  इस बात को हर इंसान जानता है और फिर  कब इंसान किस मनोदशा में कुछ लिखने लगता है, ऐसा ही मेरा साथ भी हुआ। आज एक पुरानी डायरी मिली और मैं भी क्षण विशेष में यदि कुछ लिख नहीं पाती हूँ तो विषय को कहीं लिख कर छोड़ देती हूँ और अगर समय निकल गया और वह पेज कहीं दब गया तो फिर वह चला जाता है ठन्डे बस्ते में। 

                       आज एक डायरी हाथ आ गयी और ये डायरियां जरूरी नहीं कि पूरी भर जाएँ तभी बदली जाय। कोई नयी डायरी हाथ में आ गयी तो फिर उसी में शुरू हो गये। पुरानी फिर दब ही जाती है। एक पेज में मिला कि मौत से साक्षात्कार और उसके बाद वह घटनाएं जिन्हें मैंने अपनी जिंदगी में सामना किया था। फिर सोचा कि पता नहीं फिर भूल जाऊं और ये हादसे फिर हमेशा के लिए गुम  हो जाएंगे। 


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                                उस रात श्रमशक्ति से मुझे बेटी के पास दिल्ली जाना था और हमेशा की तरह ये स्कूटर से मुझे स्टेशन छोड़ने जा रहे थे। हम घर से बिलकुल सही स्कूटर के साथ निकले। जीटी रोड पर पहुँचे ही थे कि बीच सड़क पर अचानक स्कूटर पंचर हो गया। स्कूटर लहराता हुए एकदम सड़क से नीचे उतर कर एक मंदिर के आगे रुक गया। स्कूटर जैसे ही सड़क से उतरा कि पीछे से एक ट्रक गुजरा और ये सब इतने कम समय के अंतराल में हुआ कि  शायद एक सेकण्ड का भी समय रुक गया होता तो हम दोनों में से कोई भी न होता।  सड़क के किनारे बनी दुकानों से लोग दौड़ पड़े और हम लोगों को देखा कि  कहीं चोट तो नहीं आयी और बोले कि ईश्वर ने आप दोनों को बाल बाल बचा लिया।  उन लोगों ने ही स्टेपनी लगा कर टायर बदल दिया। हम फिर स्टेशन कइ लिए रवाना हो गए।

                               हम इतना समाय लेकर चलते है कि चाहे स्टेशन पर इन्तजार भले करना पड़े लेकिन भाग कर ट्रेन न पकड़नी पड़े।  वहाँ से हम आगे चल दिए।  झकरकटी के पुल पर पहुँचे ही थे कि फिर स्कूटर का टायर पंचर हो गया और वह भी उस समय ट्रैफिक काम होने के कारण हम फिर बच गए।  आखिर मैंने सोच लिया कि अब मैं जा नहीं पाऊँगी लेकिन स्टेशन को बस स्टॉप पर खड़ा करके हम ऑटो से स्टेशन की ओर रवाना हुए। मैं तो दिल्ली  गयी लेकिन ये ऑटो से ही घर आये और सुबह जाकर स्कूटर बनवा कर घर ला पाए। 

                                ये हादसा आज भी अगर याद आ जाता है तो फिर सोचती हूँ कि मेरी बेटियों का क्या होता ? वे उसे समय पढ़ रहीं थी।  इसीलिए कहते हैं कि ऊपर वाला महान है। 

(क्रमश)

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