हम जीवन में बेटों को दोष देते हैं कि वह पत्नी और बच्चों पर अधिक ध्यान देते हैं। ऐसा है भी कहीं बेटे अपने माता पिता के प्रति गैर जिम्मेदार भी होते हैं लेकिन वहां पर माता पिता उनकी आलोचना करने में संकोच भी करते हैं लेकिन जब बेटा पूरा पूरा ध्यान भी दे रहा हो और उन पर कटाक्ष भी किया जाय तो हमारी मानसिकता का दोष है। ऐसे ही कल हमारे सामने और साथ ही वाकया आ गया तो लगा की हम अगर संतुष्ट नहीं हैं तो दोष खोज ही लेते हैं।
मेरी पड़ोसन मुझसे उम्र में काफी बड़ी हैं , उनके एक बेटा , बहू और किशोर हो रहे पोता और पोती भी हैं. बेटा अपना काम कर रहा है और उसका जीवन भाग दौड़ भरा होने पर भी माता पिता को अपनी पत्नी और बच्चों से अधिक परवाह करता है। मैं खुद इस बात की साक्षी हूँ। कल मैं वहीँ बैठी थी तो बेटी ने ऑनलाइन आर्डर करके कुछ सामान अपने पापा के लिए भेजी थी। मैं उसको रिसीव करने के लिए आई। जब वापस गयी तो उन्हें बताया कि सोनू ने पापा के लिए स्पोर्ट शूज़ भेजे हैं। सुनते ही वह तुरंत बोली - 'ये लड़की हैं न इसलिए अगर इसकी जगह बेटा होता तो सोचता की इतने पैसे अपनी पत्नी और बच्चों पर खर्च करेगा। माँ बाप पर इतने पैसे खर्च क्यों किये जाएँ ? '
उस समय उनके बेटा और बहू वहीँ बैठे थे। मैंने उनके इस कथन का दर्द उनके बच्चों के चेहरे पर साफ देखा। फिर मुझे लगा कि उन्हें कैसे इससे उबर जाय ? मैंने उनकी माँ से कहा - देखिये सोनू खुद जॉब कर रही है और उसका हस्बैंड भी। अभी उनके ऊपर कोई जिम्मेदारी नहीं है। दोनों इस तरह का काम करने में कुछ सोचने की जरूरत नहीं समझते। अगर बेटा अकेला कमाने वाला हो और पूरे घर की जिम्मेदारी उठा रहा हो तो उसको पहले अपनी जिम्मेदारियों का क्रम तय करना होता है क्योंकि सब उसके लिए जरूरी होता है। अगर बेटी भी जिम्मेदारियों में फँसी होती है तो पहले उसे अपने परिवार को देखना होगा। फिर एक कमाने वाला हो तो सीमायें निश्चित होती हैं और दोनों के कमाने और फिर आमदनी के हिसाब से इंसान व्यय करता है।
फिर मुझे लगा की कुछ लोग कभी खुश नहीं होते चाहे उनके लिए कोई कोई जान ही न्योछावर क्यों न दे ? अगर इंसान को संतुष्ट होने का गुण हो और वह अपने से नीचे झुक कर देखे तो ज्ञात होता है कि और भी लोग हैं जो उनसे अधिक दुखी है तो सदैव अपने में संतुष्टि प्राप्त करेगा.
मेरी पड़ोसन मुझसे उम्र में काफी बड़ी हैं , उनके एक बेटा , बहू और किशोर हो रहे पोता और पोती भी हैं. बेटा अपना काम कर रहा है और उसका जीवन भाग दौड़ भरा होने पर भी माता पिता को अपनी पत्नी और बच्चों से अधिक परवाह करता है। मैं खुद इस बात की साक्षी हूँ। कल मैं वहीँ बैठी थी तो बेटी ने ऑनलाइन आर्डर करके कुछ सामान अपने पापा के लिए भेजी थी। मैं उसको रिसीव करने के लिए आई। जब वापस गयी तो उन्हें बताया कि सोनू ने पापा के लिए स्पोर्ट शूज़ भेजे हैं। सुनते ही वह तुरंत बोली - 'ये लड़की हैं न इसलिए अगर इसकी जगह बेटा होता तो सोचता की इतने पैसे अपनी पत्नी और बच्चों पर खर्च करेगा। माँ बाप पर इतने पैसे खर्च क्यों किये जाएँ ? '
उस समय उनके बेटा और बहू वहीँ बैठे थे। मैंने उनके इस कथन का दर्द उनके बच्चों के चेहरे पर साफ देखा। फिर मुझे लगा कि उन्हें कैसे इससे उबर जाय ? मैंने उनकी माँ से कहा - देखिये सोनू खुद जॉब कर रही है और उसका हस्बैंड भी। अभी उनके ऊपर कोई जिम्मेदारी नहीं है। दोनों इस तरह का काम करने में कुछ सोचने की जरूरत नहीं समझते। अगर बेटा अकेला कमाने वाला हो और पूरे घर की जिम्मेदारी उठा रहा हो तो उसको पहले अपनी जिम्मेदारियों का क्रम तय करना होता है क्योंकि सब उसके लिए जरूरी होता है। अगर बेटी भी जिम्मेदारियों में फँसी होती है तो पहले उसे अपने परिवार को देखना होगा। फिर एक कमाने वाला हो तो सीमायें निश्चित होती हैं और दोनों के कमाने और फिर आमदनी के हिसाब से इंसान व्यय करता है।
फिर मुझे लगा की कुछ लोग कभी खुश नहीं होते चाहे उनके लिए कोई कोई जान ही न्योछावर क्यों न दे ? अगर इंसान को संतुष्ट होने का गुण हो और वह अपने से नीचे झुक कर देखे तो ज्ञात होता है कि और भी लोग हैं जो उनसे अधिक दुखी है तो सदैव अपने में संतुष्टि प्राप्त करेगा.
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