2 जनवरी 2011 का सर्द दिन जब अम्मा हमें छोड़ कर चली थी . अम्मा सिर्फ हमारी अम्मा नहीं थी बल्कि आस पास हमलोगों के मिलने वाले सभी लोग उनके "भैया" थे ( अपने बेटों को यही कहा करती थी ) . सबके लिए अपार स्नेह उनके दिल में था . अधिकतर लोग यहाँ पर डिफेन्स की फैक्ट्री में काम करने वाले सुबह जल्दी जाना शाम को आना . हाँ इतवार को वे जाकर जरूर मिलने जाती . आज भैया घर पर होंगे।
कितना शौक था उनको बनाने और खिलाने का, 80 साल की उम्र में भी जब कि वे अपने एक्सीडेंट के कारण जमीन में तो बैठ ही नहीं सकती थी . अपने बिस्तर के सामने एक मेज रखवा ली थी , किसी पर निर्भरता नहीं चाहिए थी . चाहे उन्हें मेवे का हलुवा बनाना हो या फिर अचार . उन्हें मिक्सी की पीसी न चटनी पसंद थी न ही कोई और चीज . सारे मेवे खुद भिगो कर सिल बट्टे पर पीसती , गैस उसी मेज पर रखनी होती अपने हाथ से खूब भून भून कर मेवे तैयार करके हलुवा तैयार करती और वह ख़राब होने वाला नहीं होता था . अपने पास डिब्बे में भर कर रखती और सुबह जेठ जी के फैक्ट्री निकलने से पहले कटोरी मंगवाती उसमें हलुवा निकल कर देती - 'ये बड़े भैया को दे देना, चाय के साथ खा लेंगे " और जब पतिदेव के नाश्ते का समय होता तो दूसरी कटोरी लेती और इनके लिए देती - 'ये छोटे भैया के लिए ." ऐसा नहीं कि वे हम लोगों के नहीं देती लेकिन मानी हुई बात है कि अपने बेटों को सुबह शाम चाय के साथ जरूर देती .
'इतनी मेहनत करते हैं ,तुम लोगों से तो कुछ होगा नहीं मैं बना देती हूँ तो खिला लो। फिर मेरे बाद कौन खिलायेगा ? " शायद वह सच ही कहती थीं क्योंकि अब न तो उनके बेटे शुगर के कारण इतना मीठा नहीं खा सकते और न ही अब हममें में इतनी दम है कि उनकी तरह से घंटों भिगो कर और पीस कर छुहारा, बादाम , काजू , किशमिश , गोंद और मूंगफली को घंटों बैठ कर भूने फिर उसको चाशनी में पकाएं . सिर्फ अपने बेटों को ही नहीं बल्कि घर में जो आ गया उसको भी वह हलुवा जरूर खा कर जाता और आज जब वह नहीं है तब भी सभी लोग जब भी आते हैं माताजी की याद जरूर करते हैं और उनके प्रेम और खिलाने पिलाने के शौक को भी जरूर याद करते हैं।
अम्मा नहीं है लेकिन उनकी बातें और उनकी अहमियत हम सबके लिए उतनी है आज सुबह इतनी व्यस्तता के बाद भी प्रियंका का फ़ोन आता है --" मम्मी आज दादी की पुण्यतिथि है आप कुछ करेंगी न ? जाकर मंदिर में गरीबो को समोसे बाँट आना क्योंकि दादी को समोसे बहुत पसंद थे और वे खुद भी कोई भी आता था तो यही मांगने के लिए पैसे देती थीं। "
अम्मा का प्यार और दूसरों की सेवा का भाव हमारी सबसे बड़ी अमानत है और हो सका तो हम इसको कायम रखेंगे यही उनका हमारे लिए सबसे बड़ा आशीर्वाद होगा। हमारा आज के दिन उनको शत शत नमन !
7 टिप्पणियां:
अम्मा की यादें ही संबल हैं अब ... जीने की प्रेरणा हैं ... ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे ...
मां तो आखिर मां ही हैं .......
श्रद्धा पूर्वक नमन
अनमोल यादें ही सहारा बन जातीं है....
सादर नमन...
अनु
माँ का मन -सदा नमन !
बड़े बुजुर्गों की ऐसी ही बातें जीवन भर की धरोहर बन कर मन मस्तिष्क में संचित हो जाती हैं ! आपका इस तरह प्यार और सम्मान के साथ उन्हें याद करना मन को छू गया ! ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति दे !
माँ को मेरा नमन और श्रधांजली.
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