हम लड़कों और लडाकियों के भेद को ख़त्म करने के लिए सतत प्रयास कर रहे है लेकिन आज भी और आज की पीढी में ऐसे लोग हैं जिन्हें सिर्फ और सिर्फ लडके चाहिए। इसके पीछे उनकी क्या मानसिकता है ? इसको इस घटना से समझा जा सकता है।
बात अभी कल की ही है मेरे एक रिश्तेदार मेरे घर आई और कुछ समय बाद उन्होंने बात शुरू की कि 'आपके तो सम्बन्ध कई संस्थाओं से है , आप तो जानती हैं की मेरी शादी के इतने दिन बाद भी एक बच्चा भी मुझे नहीं मिल पाया। (वैसे उनको कई बच्चे हुए लेकिन कुछ कारणों से वे पूर्ण नहीं हो सके थे ). मैं अब एक बच्चा गोद लेने के बारे में सोचने लगी हूँ। वैसे तो मैं अभी भी एक डॉक्टर से इलाज करवा रही हूँ , मेरी उम्र भी अब बढती जा रही है तो मैं दो साल तक इन्तजार कर सकती हूँ।
मैं बताती चलूँ कि उनकी उम्र पैंतीस के आस पास होने वाली है।
'फिर मुझसे क्या चाहती हो?'
'यही कि आप किसी संस्था में बच्चा गोद मिल जाए तो मैं ले लूं , लेकिन मुझे लड़का ही चाहिए। '
'लड़का ही क्यों?'
'देखिये आप जानती हैं कि मैं पैसे से बहुत अधिक सम्पन्न तो हूँ नहीं इनके पास प्राइवेट नौकरी है। मुझे आगे के खर्च के बारे में सोचना तो पड़ेगा ही। '
'क्या ये जरूरी है कि लड़का ही मिल जाए। '
'मैं लिए दो साल तक इन्तजार कर सकती हूँ।'
मुझे उनकी से बहुत अधिक गुस्सा आया - ' अच्छा अगर तुम्हारा अपना बच्चा बेटी हो जाए तो क्या उसको तुम भी औरों की तरह से बाहर फ़ेंक दोगी? तुम्हारे पास तो लड़की का खर्च उठाने के लिए पैसे की कमी है.'
'नहीं अपना जब होता है तो सभी पाल लेते हैं लेकिन अगर बाहर से लेना है तो फिर लड़की क्यों ली जाय?'
'अगर तुम्हें गोद लेने में भी अपनी पसंद का बच्चा चाहिए तो ये कोई आर्डर नहीं है कि जो आप चाहे वह आर्डर कर दिया जाय और तैयार करके दे दिया जाय.'
'आप समझिये मेरे ससुराल वाले भी चाहते हें कि लड़का ही लिया जाय, वैसे मेरी ननद की एक सहेली है किसी हॉस्पिटल में काम करती है उसने कहा है कि आपको लड़का भी मिल सकता है लेकिन इन्तजार करना पड़ेगा और बच्चा अपरिपक्व मिलेगा क्योंकि वह बच्चा ऐसे लोगों का होगा तो ६-७ महीने पर गर्भपात करवाने आते हें तो फिर उस बच्चे को नर्सरी में रखना पड़ेगा और दो महीने तक उसका खर्च तुम्हें उठना पड़ेगा . '
'फिर वही विकल्प तुम्हारे लिए सबसे अच्छा होगा. अगर तुम किसी बच्चे के लिए मन में ममता नहीं रख सकती हो तो फिर कहीं से भी ले लो उसके साथ न्याय करना मुश्किल है और अगर कहीं ऐसा हुआ कि गोद लेने के बाद तुम्हारा अपना बच्चा भी हो गया तब उस बच्चे के प्रति तुम्हारा क्या व्यवहार होगा? इसके बारे में कहा नहीं जा सकता है. '
'नहीं ऐसा नहीं होगा? '
'क्यों? अगर तुम्हारे बेटा हो गया तो फिर दो बच्चों का खर्च कैसे उठा पाओगी? '
'इसी लिए तो दो साल और ट्राई करना चाहती हूँ उसके बाद ही गोद लूंगी. '
'नहीं मैं इस दिशा में कोई सहायता नहीं कर पाऊँगी ?'
'क्यों?'
'क्योंकि आज भी हमारे समाज में पैदा होने के बाद लड़कियाँ ही फ़ेंक दी जाती है, कभी भी सड़क पर पड़े हुए लड़के नहीं मिलते हें. फिर नवजात शिशु लड़का तो मिलने का सवाल ही पैदा नहीं होता है. '
'आप ऐसे क्यों कह रही हें? लड़के भी मिल सकते हें.'
'देखिये फिर आप कहीं और जाकर बात कीजिये, मेरे समझ मैं ऐसी कोई संस्था नहीं है जहाँ पर सिर्फ लड़के ही मिल सकते हों. गोद लेने के लिए भी पसंद और नापसंद नहीं होनी चाहिए . जिनके घर में बच्चे नहीं होते वे कुत्ते और बिल्ली के बच्चे पाल पर वही स्नेह देते हें जो हम अपने बच्चों को देते हें. फिर बेटी भी संतान ही होती है और बेटा भी. सबको एक तरह से पालना होता है और एक जैसे पढाना लिखाना होता है. पहले अपनी सोच को बदल लो फिर किसी भी बच्चे को गोद लोगी तो ज्यादा अच्छा होगा. '
'मैं तो सोच रही थी कि आप हमारी बात को समझ कर कोई सलाह देंगी.'
'मेरी यही सलाह है कि पहले अपनी सोच बदल लो और फिर किसी बच्चे को गोद लेने के बारे में सोचना. '
'देखिये मेरे दोनों जेठ के लड़के हें और मेरी दोनों ननदों के भी लड़के हें , इसलिए मैं लड़का ही चाहती हूँ.'
'एक बार और सोच लो, सूने घर में किलकारियां लड़की और लड़के दोनों से गूंजने लगती हैं , अपनी सोच को बदल सको तो अच्छा है. '
'फिर मैं कहीं और बात करके देखती हूँ.'
'शौक से.'
मुझे उस औरत के विचारों और सोच पर तरह आ रहा था कि बच्चा न हो कोई खिलौना हो कि अपने मन से जो चाहा ले लिया. ऐसे लोगों ने ही हमारे समाज में इतनी बड़ी लकीर खींच रखी है लेकिन आज की पीढ़ी से मुझे ये उम्मीद नहीं थी.
बात अभी कल की ही है मेरे एक रिश्तेदार मेरे घर आई और कुछ समय बाद उन्होंने बात शुरू की कि 'आपके तो सम्बन्ध कई संस्थाओं से है , आप तो जानती हैं की मेरी शादी के इतने दिन बाद भी एक बच्चा भी मुझे नहीं मिल पाया। (वैसे उनको कई बच्चे हुए लेकिन कुछ कारणों से वे पूर्ण नहीं हो सके थे ). मैं अब एक बच्चा गोद लेने के बारे में सोचने लगी हूँ। वैसे तो मैं अभी भी एक डॉक्टर से इलाज करवा रही हूँ , मेरी उम्र भी अब बढती जा रही है तो मैं दो साल तक इन्तजार कर सकती हूँ।
मैं बताती चलूँ कि उनकी उम्र पैंतीस के आस पास होने वाली है।
'फिर मुझसे क्या चाहती हो?'
'यही कि आप किसी संस्था में बच्चा गोद मिल जाए तो मैं ले लूं , लेकिन मुझे लड़का ही चाहिए। '
'लड़का ही क्यों?'
'देखिये आप जानती हैं कि मैं पैसे से बहुत अधिक सम्पन्न तो हूँ नहीं इनके पास प्राइवेट नौकरी है। मुझे आगे के खर्च के बारे में सोचना तो पड़ेगा ही। '
'क्या ये जरूरी है कि लड़का ही मिल जाए। '
'मैं लिए दो साल तक इन्तजार कर सकती हूँ।'
मुझे उनकी से बहुत अधिक गुस्सा आया - ' अच्छा अगर तुम्हारा अपना बच्चा बेटी हो जाए तो क्या उसको तुम भी औरों की तरह से बाहर फ़ेंक दोगी? तुम्हारे पास तो लड़की का खर्च उठाने के लिए पैसे की कमी है.'
'नहीं अपना जब होता है तो सभी पाल लेते हैं लेकिन अगर बाहर से लेना है तो फिर लड़की क्यों ली जाय?'
'अगर तुम्हें गोद लेने में भी अपनी पसंद का बच्चा चाहिए तो ये कोई आर्डर नहीं है कि जो आप चाहे वह आर्डर कर दिया जाय और तैयार करके दे दिया जाय.'
'आप समझिये मेरे ससुराल वाले भी चाहते हें कि लड़का ही लिया जाय, वैसे मेरी ननद की एक सहेली है किसी हॉस्पिटल में काम करती है उसने कहा है कि आपको लड़का भी मिल सकता है लेकिन इन्तजार करना पड़ेगा और बच्चा अपरिपक्व मिलेगा क्योंकि वह बच्चा ऐसे लोगों का होगा तो ६-७ महीने पर गर्भपात करवाने आते हें तो फिर उस बच्चे को नर्सरी में रखना पड़ेगा और दो महीने तक उसका खर्च तुम्हें उठना पड़ेगा . '
'फिर वही विकल्प तुम्हारे लिए सबसे अच्छा होगा. अगर तुम किसी बच्चे के लिए मन में ममता नहीं रख सकती हो तो फिर कहीं से भी ले लो उसके साथ न्याय करना मुश्किल है और अगर कहीं ऐसा हुआ कि गोद लेने के बाद तुम्हारा अपना बच्चा भी हो गया तब उस बच्चे के प्रति तुम्हारा क्या व्यवहार होगा? इसके बारे में कहा नहीं जा सकता है. '
'नहीं ऐसा नहीं होगा? '
'क्यों? अगर तुम्हारे बेटा हो गया तो फिर दो बच्चों का खर्च कैसे उठा पाओगी? '
'इसी लिए तो दो साल और ट्राई करना चाहती हूँ उसके बाद ही गोद लूंगी. '
'नहीं मैं इस दिशा में कोई सहायता नहीं कर पाऊँगी ?'
'क्यों?'
'क्योंकि आज भी हमारे समाज में पैदा होने के बाद लड़कियाँ ही फ़ेंक दी जाती है, कभी भी सड़क पर पड़े हुए लड़के नहीं मिलते हें. फिर नवजात शिशु लड़का तो मिलने का सवाल ही पैदा नहीं होता है. '
'आप ऐसे क्यों कह रही हें? लड़के भी मिल सकते हें.'
'देखिये फिर आप कहीं और जाकर बात कीजिये, मेरे समझ मैं ऐसी कोई संस्था नहीं है जहाँ पर सिर्फ लड़के ही मिल सकते हों. गोद लेने के लिए भी पसंद और नापसंद नहीं होनी चाहिए . जिनके घर में बच्चे नहीं होते वे कुत्ते और बिल्ली के बच्चे पाल पर वही स्नेह देते हें जो हम अपने बच्चों को देते हें. फिर बेटी भी संतान ही होती है और बेटा भी. सबको एक तरह से पालना होता है और एक जैसे पढाना लिखाना होता है. पहले अपनी सोच को बदल लो फिर किसी भी बच्चे को गोद लोगी तो ज्यादा अच्छा होगा. '
'मैं तो सोच रही थी कि आप हमारी बात को समझ कर कोई सलाह देंगी.'
'मेरी यही सलाह है कि पहले अपनी सोच बदल लो और फिर किसी बच्चे को गोद लेने के बारे में सोचना. '
'देखिये मेरे दोनों जेठ के लड़के हें और मेरी दोनों ननदों के भी लड़के हें , इसलिए मैं लड़का ही चाहती हूँ.'
'एक बार और सोच लो, सूने घर में किलकारियां लड़की और लड़के दोनों से गूंजने लगती हैं , अपनी सोच को बदल सको तो अच्छा है. '
'फिर मैं कहीं और बात करके देखती हूँ.'
'शौक से.'
मुझे उस औरत के विचारों और सोच पर तरह आ रहा था कि बच्चा न हो कोई खिलौना हो कि अपने मन से जो चाहा ले लिया. ऐसे लोगों ने ही हमारे समाज में इतनी बड़ी लकीर खींच रखी है लेकिन आज की पीढ़ी से मुझे ये उम्मीद नहीं थी.
8 टिप्पणियां:
आज भी पीढियों की सोच इस कदर हावी है कि शिक्षित होते हुये भी लोग अशिक्षित ही हैं। आपने सही जवाब दिया।
बेहद शर्मनाक और संकीर्ण मानसिकता का उदहारण हैं ऐसे लोग, यह लड़के और लड़की का भेद हमारे समाज से न कभी मिटा है न मिटेगा। चाहे लोग कितने भी पढे लिखे क्यूँ न हो जाये, मगर लड़के से ही वंश चलता है जैसी सोच उन्हें लड़की होने से संतुष्ट नहीं कर पाती। इसलिए कोई खुलकर कहे न कहे मगर लड़के की चाहत सभी के दिलों में रहती है और शायद कुछ हद तक पारिवारिक दबाव भी जिसके चलते लोग लड़का चाहने लगते है,यहाँ तक कि जिन लोगों को पहली संतान लड़की हो और वह उसका बहुत ही अच्छे से पालन पोषण क्यूँ न कर रहे हों, मगर उनकी दूसरी संतान लड़का ही हो यह इच्छा उनकी सदैव रहा करती है।
यूं देखा जाये तो आज कल केवल एक ही संतान चाहते हैं लोग लेकिन ऐसे बहुत कम परिवार मिलेंगे जहां प्रथम संतान लड़की हो और उन्होने आगे और संतान न होने या करने का फैसला लिया हो। जबकि जिन परिवारों में प्रथम संतान लड़का होता है उन्हें दुबारा संतान हो या ना हो कोई खास फर्क नहीं पड़ता।
अरे ऐसे संवेदनहीन इंसानों को बच्चा चाहिए ही क्यों ..आपका गुस्सा जायज़ है.
इस मानसिकता का कोई इलाज़ नहीं है, बेटा होने की सूचना देने बेटी होने की सूचना देने और लेने में बड़ा फर्क है ... खुद को कंसोल करते सब- सब भगवान् का ही दिया है...क्या फर्क ! मेरी बेटी ही बेटा निकलेगी - सोच अपनी अपनी बदलनी है,समाज की नहीं
मन दुखता है ऐसी बातें सुनकर.....
जाने कब मानसिक रूप से शिक्षित होंगे लोग....
सादर
अनु
कई बार लगता है कि समाज की सोच में परिवर्तन हुआ है , मगर अनगिनत बार यही होता है कि हम घूम फिर कर वहीं पहुँच जाते हैं .
अभी कुछ दिनों पहले ही जयपुर में बैग में डालकर एक नवजात कन्या छोड़ी गयी, एक्स्ट्रा डायपर और अन्य समान के साथ ...पता नहीं किसकी क्या मजबूरी रही होगी ...बच्चे तो मेरे पीछे पड़ गये कि उस कन्या को अपने घर ले आओ ...ईश्वर उसे स्वस्थ रखे !
शिक्षित सोच भी उतनी ही प्रदूषित है जितनी अशिक्षित. इसके परिणाम याँ दुष्परिणाम तो सामने आने वाले ही जब लड़कों के लिये लड़की मिलना भी दूभर हो जायेगा.
बेटियों की चाहना कब होगी ? जबकि बेटियाँ न हों तो सृष्टि ही खत्म हो जाए ।
इससे अच्छी तो शायद पहली पीढ़ी ही थी ... हमारे घर में ही मेरे एक चाचाजी और एक मामा जी के जब संतान नहीं हुई तो उन दोनों ने ही बेटियों को गोद लिया था ...
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