ये घटना पिछली नवरात्रि की है। उस दिन मुझे अपने पतिदेव के साथ कहीं जाना पड़ा और उनको कुछ और काम आ पड़ा उन्होंने मुझे अपने एक मित्र के यहाँ रुक जाने को कहा। मुझे 3-4 घंटे इन्तजार करना था। उन मित्र की पत्नी गृहणी हैं और पति डॉक्टर . घर में उनके पति , पत्नी और उनकी सास जी हैं जो कमर से नीचे के हिस्से में पक्षाघात का शिकार हैं।
हमारी बातचीत के दौरान उनकी की आवाज - " मीना पानी दे जा गिलास नीचे गिर गया है।"
"मीना नहीं है ,वह अब शाम को आएगी. "
फिर वह मेरी ओर मुखातिब होकर - ' देखिए ठीक से गिलास उठाती नहीं हैं , गिलास गिरा दिया होगा . मैं तो नौ दिन का व्रत रखती हूँ , अगर उनके पास जाऊं तो फिर से नहाना पड़ेगा और बार बार नहाने से मेरे जोइंटस में दर्द बढ़ जाता है।"
वह मुझे बता रहीं थी . और मैं खुद भी व्रत थी। मुझे यह बात अच्छी तरह से समझ आ चुकी थी कि वे व्रत का बहाना करके उनके पास नहीं जाना चाहती थीं और वास्तव में वह जाना भी नहीं चाहती थी। मुझसे रहा नहीं गया और मैं पूछ ही बैठी " फिर आप ऐसे में क्या करती हैं ?"
"इसी लिए तो मीना को रखा है वह सुबह आती है , आकर उनके सारे काम नहलाना धुलाना , खाना खिलाना सब काम करके चली जाती है और शाम को फिर आती है। "
"अगर वह न आये तो?"
"तो फिर मीना वाले सारे काम ये करते हैं। मुझे तो व्रत के सफाई और पाक का ध्यान रखना पड़ता है . व्रत में छूत होकर रहने का पाप कौन मोल ले . मैं तो बड़े ही नियम धर्म से व्रत रखती हूँ।"
" अच्छा " कह कर चुप रह जाने के अलावा कोई चारा भी तो नहीं था।
उनकी सास बार बार आवाज दिए जा रही थीं क्योंकि उनको उम्र और बीमारी के कारण सुनाई भी कम देता था। मुझसे रहा नहीं गया और खुद जा कर उनके गिलास में पानी उनको ले जा कर दे दिया . हम ऐसे छूत और पाक में विश्वास नहीं करते हैं। अगर हम किसी प्यासे को पानी नहीं पिला सकते तो कोई धर्म या पंथ नहीं है जो ऐसे पाक और छूत को अहमियत दे।
" अरे अरे आप वहां क्यों चली गयीं आप ने तो अभी चाय भी पी नहीं थी।"
"मैं व्रत में चाय नहीं पीती ." कह कर मैंने टाल दिया .
लेकिन ये सोचने के लिए मजबूर जरूर हुई कि हम किसको धोखा देते हें अपने आपको या फिर अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिए बहाने खोज लेते हें . पाप और पुण्य तो हमारे बनाये हुए चोचले हें. किसी भी व्रत और पूजा से बढ़कर किसी इंसान के प्रति दया और ममता का भाव है और वह भी तब जब कि वह मजबूर हो और हमारे ऊपर आश्रित हो .
9 टिप्पणियां:
ऐसे ढकोसले करने वाले हमारे समाज में बहुत हैं....
ईश्वर इनकी कौन सी मुराद पूरी करेंगे ईश्वर ही जाने.....
सादर
अनु
पूजा के नाम पर ऐसे नौटंकी वालों के पास भगवान् नहीं फटकते छूत की डर से
व्रत का अर्थ लोगों ने जाना कहाँ है और ये जो करते हैं वो सिर्फ़ ढकोसला है वास्तविक व्रत का अर्थ तो यही है कि हम ऐसा कार्य करें जिससे हम हमारी आत्मा संतुष्ट हो
किसी भी व्रत और पूजा से बढ़कर किसी इंसान के प्रति दया और ममता का भाव है और वह भी तब जब कि वह मजबूर हो और हमारे ऊपर आश्रित हो .
सार्थक प्रस्तुति ....
बहुत अच्छा संस्मरण।
वैसे भी व्रत तो लेने के होना चाहिए न कि रखने के लिए। माँ-बाप की सेवा करना तो सबसे बड़ा व्रत है।
मेरे अपने अनुभव में मैंने देखा है जो लोग ज्यादा धर्म कर्म ,पूजा व्रत करते हैं. उनमें उतनी ही कम इंसानियत होती है.
इंसानियत से बड़ा और कोई धर्म नहीं होता मगर ऐसे लोगों को जो यह इंसानियत नहीं जानते,समझते उनके लिए किया उनके द्वारा किया गया पूजा पाठ सब व्यर्थ है।
ज्यादा आश्चर्य इस बात से है कि एक डाक्टर के घर में भी यह हाल है।
राजेश जी,
डॉक्टर इस धरती के भगवान होते हें लेकिन उनके रूप में हैवान भी तो हम देखते हें. सिर्फ डॉक्टर बन जाने से वह अपनी पत्नी की सोच नहीं बदल सकते हें. रोज के तनाव से अच्छा है कि उसका विकल्प खोज कर शांति रखी जाय.
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