बहुत दिनों से व्यस्त थी, पहले एक बेटी (जेठ जी की बेटी) की शादी ११ फरवरी को सम्पन्न हुई और फिर सम्पन्न हुए मेरी बेटी प्रज्ञा की सहेली और मेरी मानस पुत्री कल्पना की। पहली शादी में पूरा परिवार साथ था और काफी लोगों ने शिरकत की भी लेकिन दूसरी बेटी की शादी में तो जन्मदात्री माँ के बिना दूसरे स्वभाव से बागी पिता और उनसे रुष्ट रिश्तेदार और घर वालों के सहयोग और असहयोग ने कुछ जिम्मेदारियों को बढ़ा दिया था लेकिन मैं तो उस माँ से वचनबद्ध थी जिसे मैंने उसके अंतिम समय वचन दिया था।
कल उसकी विदाई के बाद जब घर आई तो फिर तुरंत ही प्रज्ञा की विदाई करनी थी और रात में सोनू की। सब करके जब रात में सोने चली तो नींद नहीं आई क्योंकि कल्पना का रिसेप्शन था और उसमें हमारे लिए कोई जगह नहीं थी। मुझे बुरा नहीं लगा लेकिन फिर सोचा कि अगर ये अगर खून के रिश्ते होते तो जरूर निमंत्रण मिलता। असहयोगी पिता और गैर जिम्मेदार भाई और भाभी की जगह थी और वे गये और उससे भी बड़ी बात कि वे मेरा दिया हुआ उपहार ही लेकर उसके घर पहुचे । मेरे पति बोले कि 'अब भूल जाओ कल्पना को, तुम्हारा काम पूरा हुआ।'
मैं इसे सोचती रही लेकिन कैसे भूल जाऊं? वो बच्ची जिसे मैंने पिछले दस साल से अपना अंश मना है , वह दिल्ली से कानपुर आई तो उनके पिता को ये चिंता नहीं होती कि वो स्टेशन से घर कैसे आएगी? अगर रात या सुबह की ट्रेन से जाना है तो कैसे जायेगी? ये चिंता हम करते थे और उसको घर हम लाते थे हाँ इतना जरूर कि घर आने के पहले से उसके पिता के फ़ोन आने शुरू हो जाते कि उसको घर पहुंचा दो या फिर घर कब आ रहीहै?
इसे मैंने उसी तरह से पूरा किया जैसे अपनी बेटी के लिए करते थे क्योंकि दोनों साथ ही आती और जाती थीं लेकिन जब वह अकेले भी आई तब भी ये काम हम करते रहे क्योंकि वो मेरी बेटी हें।
सगाई हुई और फिर शादी भी हो गयी लेकिन हम अपना परिचय उसके भावी परिवार को क्या दें? क्योंकि उनकी नजर में मित्रता सिर्फ मित्रता होती है उसके परिवार से इतनी प्रगाढ़ता उनके समझ नहीं आती। ऐसा नहीं है कि वो परिवार पढ़ा लिखा न हो लेकिन वो ठाकुर परिवार से हें और उनकी सोच खून से अधिक कुछ सोच ही नहीं सकते हें। पिछले एक हफ्ते से सारे दिन और रात उसके सारे काम पूरे करवाने में बीत गए कैसे घर में व्यवस्था होगी और कैसे उसकी रस्मों के लिए तैयारी करनी होगी? सब कुछ कर लिया और विवाह के सम्पन्न होते ही सब कुछ जैसे सपना सा हो चुका है।
मैं उसके सामने नहीं रोई लेकिन अब सोचती हूँ कि ये आंसूं क्यों बह रहे हें? शायद एक अंश के छूट जाने का दर्द है लेकिन इंसान इन रिश्तों के लिए सार्थक क्यों नहीं सोच सकता है? क्या इस रिश्ते में भी किसी को कोई स्वार्थ दिख सकता है। नहीं जानती लेकिन ये जरूर लग रहा है कि अब तक तो ये ही सोचा था कि खून के रिश्ते कभी कभी रिश्तों को झुठला देते हें लेकिन ये आत्मा और स्नेह के रिश्ते तो सबसे गहरे होते हें। इनके लिए कोई कैसे ऐसा सोच सकता है?
अब मेरे इस रिश्ते का भविष्य कल ही पता चलेगा , जब वो इसके लिए सबको तैयार करेगी कि ये रिश्ता कितना अहम् है? नहीं भी स्वीकारा तो भी वो मेरी बेटी तो रहेगी ही। लेकिन ये खालीपण और उदासी कब मेरा साथ छोड़ेगी ये नहीं जानती। इतना कष्ट जो मैंने प्रज्ञा के विवाह के बाद भी नहीं सहा। आज से ७ महीने पहले लिखा "ख़ुशी मिली इतनी ...." और आज ये लिख रही हूँ। सब कुछ बांटती रही तो ये भी बाँट लिया। मन हल्का हो गया ।
सोमवार, 20 फ़रवरी 2012
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8 टिप्पणियां:
रेखा जी ! जैसे कुछ टूट सा गया मन में.कभी कभी हम मानवीय रिश्ते समझ ही नहीं पाते.या यह कहें कि उनका एहसास नहीं कर पाते.फिर यह भी तो जरुरी नहीं कि जिस रिश्ते को जितना अहम समझ कर हम निभा रहे हैं, दूसरा भी उतना ही अहम समझ रहा हो.कभी कभी हमारी अपनी भावनाएं हमसे उन्हें होने का सबूत मांगती सी लगती हैं.
दुखी मत होइए.अगर उस लड़की ने आपकी अहमियत को समझा है तो जरुर अपने परिवार वालों को भी समझा लेगी.वर्ना समझियेगा आपने अपना फ़र्ज़ अदा किया बस...
माँ का रिश्ता तो ऐसा ही है निस्वार्थ और दर्द भरा। पर पंछियों से प्रेरणा लें तो दर्द खत्म हो जाता है। वो उड़ उड़ कर मुँह में दाना भर भर कर लाती हैं खाती नहीं बच्चों के मुंह में डालती रहती हैं। माँ कितनी भी थक रही हो फ़िर भी अथक फ़ेरे लेती रहती है किसी डाल पर बैठ सुस्ताती नहीं। और जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तो फ़ुर्र से उनका उड़ जाना देखती रहती है, वो फ़िर लौट कर नहीं आते। यही जीवन है।
आप को ये खबर मिलती रहे कि बिटिया ससुराल में सुख से है यही बहुत है।
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
महाशिवरात्रि की शुभकामनाएँ!
आपका निस्वार्थ रिश्ता देखियेगा एक दिन रंग लायेगा और तब सब समझ जायेंगे इस रिश्ते की अहमियत ………थोडा सा वक्त दीजिये और अपना मन भारी मत कीजिये ऐसा होता है बेटियों को विदा करने के बाद लेकिन बेटियाँ भी नही भूलती हैं ये भी याद रखिये देखियेगा वो लोग खुद आपको आपका मान ,स्नेह सब लौटायेंगे…………और हम सब तो हैं आपके साथ अपने मन की कह दिया करिये इसी तरह्………वो सुखी रहे खुशहाल रहे यही कामना करती हूँ।
यह रिश्ता सब रिश्तों से ऊंचा है।
आपने इस रिश्ते की गरिमा को निभाया ... उम्मीद न लगाये ...... तो मन दुखी नहीं होगा ॥
कई रिश्ते खून के रिश्तों से बढ़कर होते हैं..उन्हें बस अहसासा जा सकता है.
rishte ko maine kabhi bhi kisi chah se nahin nibhaya lekin kshanik dukh to lagata hai . vo nibhayegi ye to mujhe pata hai lekin vaise hi mere paas aa payegi ye usake ghar valon par nibhar karta hai aur main bhi chahoongi ki ab vah usaka bhavishya hai aur parivar hai. usaki sahmati se aage chalana chahie. usake sukh kee kamana men bahut kuchh chaha hai aur ishvar se yahi prarthana hai ki vo hamesha sukhi rahe tabhi main usake prati apane pharj se urin ho paaungi.
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