हम तो विधाता के हाथ की कठपुतली है लेकिन कभी इस धरती के भगवान कैसे अपनी जिम्मेदारियों के साथ खिलवाड़ करते हें कि एक घर बिखर जाता है - रह जाते हें रोते कलपते उसके घर वाले और परिजन।
ये कहानी आज से सात साल पहले शुरू हो चुकी थी जब टाटा मेमोरिअल के डॉक्टर के हाथों हमने अपने बहनोई शरद चन्द्र खरे को सौप दिया था। उन्होंने अपने देखरेख में रखा ७ सालों तक और फिर सात साल बाद उन्हें पूर्ण रूप से स्वस्थ घोषित कर दिया जब कि वह इंसान अपने शरीर में उनकी गहन निरीक्षण के बाद भी कैंसर पाले बैठा था। डॉक्टर उसको आगे देखने या चेक अप करने के लिए कतई तैयार नहीं थे कि डॉक्टर तुम हो या मैं हूँ? पता नहीं कौन भगवान था? फिर बहुत मिन्नतों के बाद जब एम आर आई करवाई गई तो कैंसर उनके बोन मैरो में पूरी तरह से फैल चुका था। ये सात साल तक हर महीने और फिर उनके अनुसार दी गयी तारीख पर चेक करवाने के बाद की लापरवाही थी।
फिर मिली १३ जून २०११ को उसके ऑपरेशन की तिथि। वहाँ बहुत काबिल डॉक्टर हें और ऑपरेशन में शरीर की मुख्य धमनी उनसे कट गयी। खून के बंद होने का नाम नहीं और घबरा कर उन्होंने ऑपरेशन बंद कर दिया कि हम दो दिन बाद ऑपरेशन करेंगे। मरीज जिन्दगी और मौत के बीच झूलता हुआ छोड़ दिया। हम घर वाले उनके इशारों पर ही तो चल सकते थे। दूसरे दिन जब देखा तो पूरे शरीर में फफोले पड़ने लगे थे। घबरा कर उन्होंने कहा कि हमें अभी इनके पैर को काटना पड़ेगा नहीं तो हम इन्हें बचा नहीं पायेंगे। हमें तो अपने मरीज की जान प्यारी थी और रोते हुए उन्हें वह भी करने की अनुमति दे दी। क्योंकि उसके जीवन के रहते हमारे पास और भी विकल्प थे। उन्होंने ने पैर काट दिया और उसके बाद २३ को कहा कि अपने मरीज को ले जाइए। जिस मरीज का आपने पैर काट दिया और उस हालात में घर वाले कहाँ लेकर जायेंगे? लेकिन उनकी दलील थी कि अदमित करने के समय २३ तक ही बैड देने की अनुमति दी गयी थी। उन मूर्खों को कौन समझाये कि आप सिर्फ ऑपरेशन करने जा रहे थे तब ये अनुमति थी , अब इतने बड़े ऑपरेशन के मरीज को क्या सड़क पर लितायेंगे। लेकिन नहीं उनका फरमान तो आपको उसी दिन हटाना है। उसी हालात में उनको एक होटल में ले गए। जहाँ से अस्पताल दूर था लेकिन मरता क्या न करता? किन हालातों को उनको अस्पताल से लेकर आये और उनको रखा गया ये मेरी बहन और साथ रहने वाले ही जानते थे। घाव भरने में समय लगता तो उन्होंने पहले ही घर ले जाने की अनुमति भी दे दी। जब कि बाहर के विशेषज्ञों के अनुसार इतने बड़े ऑपरेशन के बाद उनको कीमो
थेरेपी देनी चाहिए थी लेकिन ऐसा न कुछ खुद दिया और न ही ऐसा करवाने की सलाह दी।
उनके बाद भी दो बार चेक आप के लिए लेकर गए सब ठीक कह कर वापस कर दिया। पांच महीने बाद उनको नकली पैर लगवाने की बात हुई। उससे पहले अस्पताल में पूरा चेक उप किया कि कोई अन्दर से परेशानी अभी भी न हो और पूरी तरह से ठीक होने की बात कह कर पैर लगवाने की बात कही और वे वही पैर लगाने वाली संस्था में रहकर पैर लगवा कर उससे चलने का अभ्यास कर रहे थे लेकिन अचानक उन्हें सांस लेने की तकलीफ हुई उनके पास सिर्फ मेरी बहन ही थी। उनको टैक्सी में डाल कर टाटा मेमोरिअल ले जाने लगी तो रास्ते में ही उनकी सांस बंद हो गयी फिर भी वहाँ पहुंची डॉक्टर ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। उसने कहा कि सब कुछ ठीक था फिर अचानक क्या हुआ? डॉक्टर ने उत्तर दिया कि इन तीन हफ्तों में कैंसर उनके फेफड़ों तक पहुँच गया था। अगर कैंसर बाकी था तो तीन हफ्ते पहले किये गए चेक अप में क्या आपने आँखें बंद करके देखा था?
अब सिर्फ सवाल और जवाब ही राह गए हें। उन जैसे जीवट वाला आदमी जिन्दगी हार गया और हम सब को मलाल है कि डॉक्टर ने लापर्वाली न की होती तो हम इस गम में आज डूबे न होते।
गुरुवार, 15 दिसंबर 2011
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
13 टिप्पणियां:
कुछ कहने को शब्द नहीं ... पता नहीं डॉ इतनी तल्लखी क्यूँ दिखाते हैं . घर के लोगों को तो परेशानी लगती ही है , उसमें अपनी जानकारी से परे उनके मन को भी समझना होता है .
लेकिन इस डॉ पर केस करना चाहिए
ओह ..दुखद .. लापरवाही की हद है ..जाने वाले की आत्मा को ईश्वर शांति दे और आप और आपकी बहन के परिवार को शक्ति ...
जाने वाले को वापस नहीं लाया जा सकता पर गल्ती करने वाले को तो सज़ा मिलनी ही चाहिए ..
इस हास्पिटल और डाक्टर दोनो पर केस करना चाहिये ………अभी तो उनके पैर के बारे मे पढा था और इतनी जल्दी ये सब क्या हो गया? आपके दुख मे सम्मिलित हूँ और कुछ कर भी नही सकती ………ईश्वर आपको इस दुख को सहने और इस लडाई को लडने की हिम्मत दे ताकि आगे कोई और इन डाक्टरों की लापरवाही का शिकार ना हो……………आप अपने आप को संभालिये और अपनी बहन का भी ध्यान रखिये …………दिल बहुत भारी हो गया ये खबर सुनकर ।
अफ्सोसजनक है। जब सेवा व्यापार बन जाती है तब यही होता है।
बहुत ही दुखद घटना डॉ पेशे की शर्मनाक तस्वीर दिखती है आपकी पोस्ट, कौन कहता है डॉ भगवान का दूसरा रूप है। रश्मि जी कि सलाह सही है इस डॉ पर तो केस करना ही चाहिए माना जाने वाले लौट के नहीं आते, मगर हम ऐसे प्रयासों से दूसरों को तो बचा सकते हैं। शायद यही हमारी उस बेगुन्हा इंसान के प्रति सच्ची श्र्द्धांजली हो, जिसको डॉ कि लापरवाही ने हम से छीन लिया।
क्या कहें! अति दुखद....इस दुख की घड़ी में हम आपके साथ हैं.
ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे...
क्या कहूं दीदी? ऐसी ही लापरवाही की शिकार मेरी बहन भी हो चुकी है. :(
मन उदास हो गया, बहुत.
पढ़ कर सकते में हूँ, अभी कुछ दिन पहले ही तो आप ने उनके पैर के बारे में बताया था, हैरान हूँ कि उस गलती के बावजूद भी डाक्टरों का रवैया नहीं बदला। भगवान आप सब को इस दु:ख की घड़ी में इसे सहने की शक्ति प्रदान करे।
मुझे भी लगता है कि आप को हॉस्पिटल और डॉक्टर पर केस कर देना चाहिए नहीं तो उनका रवैया ऐसा ही बना रहेगा और पता नहीं और कितने परिवार परेशानी में पड़ते रहेगें।
एक समय था जब टाटा मेमोरियल का नाम बड़ी ईज्जत से लिया जाता था। बहुत ही शर्मनाक बात है कि अब वो इतना नीचे गिर चुका है।
dukhad...or shramnaak...aaj ke waqt mei bhi itani laaparwahii...afsos hai
अमानवीय व्यवहार की भर्त्सना ही की जा सकती है. इस तरह के केस अब जब तब परेशां करते है. संवेदनाये मरती जा रही हैं.
bahut dukhadpurna hai.in paristhitiyon main doctor hi bhagwan hota hai us par wishwas na karen to kahaan jaayen.....
sorry to hear about this news rekha
i hope god gives your sister courage to move on
very sorry
एक टिप्पणी भेजें