मेरे पड़ोस में रहने वाले एक ब्राह्मन परिवार का बेटा आयुध निर्माणी में कार्य करता है और एक दिन पता चला कि काम करते वक्त उसके हाथ की एक अंगुली मंशीन में आ जाने के कारण कट गयी। घर खबर आई तो हडकंप मच गया क्योंकि खबर आई थी 'मनीष ' का हाथ मशीन में आ गया और उसका हाथ काट गया। पड़ोसी होने के नाते और उनसे अपने आत्मिक सम्बन्ध होने के नाते हम लोग भी अस्पताल पहुंचे। हम सब लोग काफी दुखी थे। जब अस्पताल पहुंचे तो जो बात सुनी उसे सुनकर हंसी नहीं आई बल्कि तरस आया अपनी इस सोच पर कि सिर्फ जन्म के कारण प्रतिभा और मेधा कैसे कमतर आंकी जाती है और उसका सम्मान करने वाला कोई भी नहीं है।
उस लड़के की शादी अभी हाल में ही हुई थी। हम सब दुखी थे और वह हम लोगों के सामने हंसते हुए बोला - 'अच्छा हुआ अब मैं विकलांग के कोटे में आ जाऊँगा शादी मेरी हो ही चुकी है तो इस कटी उंगली से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है लेकिन अब मुझे प्रमोशन मिलने में आसानी होगी नहीं तो सारी जिन्दगी मशीन पर ही काम करते करते बीत जाती और मैं वहीं के वहीं रह जाता।'
उसके इन शब्दों में जो सरकारी नीतियों के प्रति आक्रोश झलक रहा था वह शर्मिंदा करने वाला है। यहाँ प्रोन्नति पाने के लिए वह विकलांग होने के बाद भी कितना खुश हुआ? आख़िर क्यों? ये सोच क्यों बदल गयी उसकी क्योंकि वह देख रहा है कि आरक्षण के चलते सिर्फ और सिर्फ चंद सर्टिफिकेट ही आधार बन चुके हें चाहे उस पद के लिए प्रोन्नत किया जाने वाला व्यक्ति काबिल हो या नहीं। आज की युवा पीढ़ी में जो कुंठा बसती जा रही है और वे तनाव में रहने लगे हें इसके पीछे कुछ ऐसे ही कारण है। युवा पीढ़ी जो आज अपराध की ओर अग्रसर हो रही है उसके पीछे भी हमारी सरकारी नीतियां ही हें। इसको बदलने या फिर सुधारने के बारे में कोई भी नहीं सोचता है। ऐसा नहीं है कि हमारे राजनेता इस बात को जानते और समझते नहीं है लेकिन वे अपनी सरकार को चलते रहने के लिए और वोट बैंक अपने कब्जे में करने के लिए ऐसा कर रहे हें और सारे तंत्र को आरक्षण की जंजीरों में बाँध कर जन जन के मन में एक घृणा का भाव भर दिया है। जिसे देखा जा सकता है उस बच्चे के शब्दों में .................
शुक्रवार, 9 दिसंबर 2011
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10 टिप्पणियां:
क्या कहें रेखा जी ! बेहद दुर्भाग्य पूर्ण हैं परिस्थितियाँ.
dukhad hai, per hai aur badhta ja raha hai
रेखा जी यह आरक्षण हमारे समाज पर एक बहुत बडी लानत हे, जिसे अभी दुर नही किया गया तो इस के परिणाम आगे जा कर बहुत खतरनाक होंगे, क्योकि इस के कारण लायक बच्चे रह जाते हे, ओर नालयक बच्चे आगे बढ जाते हे, जिन मे ड्रा०, इंजिंयर ओर भी कई महतव पुर्ण स्थानो पर लोग पहुच जाते हे, जो उस जगह के काबिल नही होते, जरा सोंचे एक आप्रेशन करने वाला ड्रा० अगर आप को पता चले की वो आराक्षण से बना हे तो क्या आप उस से अपना आप्रेशन करवायेगी, आरक्षण की जगह देश मे पढाई मुफ़त हो ओर जरुरी हो सब के लिये, किताबे मुफ़त हो, तभी काबलियत आगे आयेगी ओर इन नेताओ की चाल नही चल पायेगी
राज जी,
ये बात हम और आप ही तो कह रहे हें ऐसा नहीं है कि जो इसके परिपोषक हें वे इस बात से वाकिफ नहीं है लेकिन वे रोज नया आरक्षण लेकर खड़े होते हें. अब तो नौबत यह आ चुकी है कि भष्टाचार के पीछे यही आरक्षण है क्योंकि नाकाबिल लोग जब ऊँचे पदों पर बैठ जाते हें तो फिर उसको भुनाना शुरू कर देते हें. वे उस पद की गरिमा और दायित्व तक नहीं समझते हें.
कुछ अपवाद हो सकते होंगे परन्तु यह निर्वाद सत्य नहीं है. यदि यह प्रोमोसन का तरीका मान लिया जाय तो फिर इस तरह कितने लोग प्रोमोसन लेने को तैयार हैं.
कई बार कई बाते दिल बहलाने के लिए भी हो सकती हैं. हो सकता है कि अगर उसका हाँथ भी कट जाता तो भी वो यही कहता क्योंकि उसको इस सच्चाई को स्वीकार करने के अलावा कोई रास्ता नहीं है. अब इसे हँसते हुए स्वीकार करे या जिंदगी भर इसी गम में गुजार दे.
वैसे भी हमारा इन्डस्ट्री कोम्पेंसेसन एक्ट दुर्घटना होने पर समुचित मुआवजा देने में सर्वथा असमर्थ है.
दुखद घटना मगर आज का सच यही है आपकी लिखी बातों से सहमत हूँ।
बिल्कुल सही कहा आपने वोट बैंक के लिये कुछ भी कर सकते हैं सिर्फ़ अपना फ़ायदा देखना जनता का क्या है सब झेल लेगी।
इस लेख के माध्यम से कम से कम लोगो की सोच का तो पता चला ...और उन सरकारी नीतियों का जिन से ये जानता झूझ रही हैं ........
नीतियाँ सच्चे मन से भी बनाई जायें तो भी मौके का फायदा लेने वाले लोग रास्ता निकाल लेते हैं..विचार करिये कि अगर ऐसी नीति न होती और उसका सच में हाथ कट गया होता तो नौकरी से हाथ धोने के सिवाय क्या रास्ता होता?
हर बात में अच्छाई बुराई दोनों पैकेज डील होती है..क्या किया जाये.
लापरवाही ही जानलेवा साबित होती है।
डॉ. लोग सारा दोषारोपण तीमारदारों पर ही करते हैं। यह स्थिति बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है।
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