आज वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले की दसवीं वर्षी है। उस हादसे में खोये लोगों के परिजनों के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ कि उन्हें शक्ति दें। उनके लिए ये हादसा जिन्दगी के रूप को बदल कर रख दिया था।
वह दिन भी मुझे याद है, घर से ऑफिस निकलने से पहले इतने सारे काम होते थे कि nyooj देखने जैसी कोई बात नहीं हो सकती थी। जैसे ही ऑफिस पहुंची तो अमेरिका की इस दुखद घटना का समाचार मिला था। सर पकड़ कर बैठ गयी क्योंकि अभी अगस्त में ही मेरी साथ करने वाली सहेली अमेरिका अपने बेटे के पास छुट्टी लेकर गयी थी। ये तो नहीं सोच पाई कि वह कहां होगी ? ये घटना कहां हुई? bas ये कि वह sab log kaise हें ये khabar mil jaaye।
वह मेरे साथ शुरू से ही काम कर रही थी। उससमय अगर मेल भी करूँ तो किसे देखने की फुरसत होगी? दिमाग ने सोचना बंद कर दिया था। बॉस आये उनका भी यही सवाल पुष्प जी की कोई मेल या कॉल?
'नहीं' हर एक के मुँह से यही निकला , सारे दिन नेट पर न्यूज़ देखते रहे - कोई काम नहीं हुआ था। वहाँ से कॉल आ नहीं रही थी और न ही हम कर पा रहे थे। आखिर दिन में ३:३० पर पुष्प की मेल आई। 'हम sabhi log surakshit हें। ' हमारी पूरी लैब में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी थी। वह दिन आज भी याद है। phir ये sochane lage कि jin लोगों ने अपने लोगों को khoya हें unaki kya halat होगी
2 टिप्पणियां:
काश, ऐसा न हो फिर दोबारा.....
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क्यों डराती है पुलिस ?
घर जाने को सूर्पनखा जी, माँग रहा हूँ भिक्षा।
मै जाकिर अली से सहमत हूँ..काश ये फिर नहो दुबारा.....
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