अभी मैं इस वाकये को बयान करने के लिए मानसिक रूप से तैयार भी नहीं हूँ, लेकिन अपने को रोक भी नहीं पा रही हूँ।इस दर्द से मैं भी आहत हूँ क्योंकि कोई बहुत अपना जब गुजरता है इस दर्दनाक हादसे तो आत्मा तक काँप जाती है।
वह एक बहुत भला इंसान जिसने अपने जीवन में किसी का दिल दुखाना तो दूर तेज आवाज में बोलना भी नहीं सीखा है।पांच साल पहले अचानक पता चला कि उसके जांघ में कैंसर हो चुका है। उसको हम टाटा मेमोरिअल कैसर हॉस्पिटल मेंले कर गए और डॉक्टर ने उसका ऑपरेशन करके उसे घर भेज दिया। उसको पहले हर ३ महीने में चेक अप के लिएबुलाते रहे कि कहीं उसकी सेकेंडरी न फैल रही हो। फिर ६ महीने में और फिर साल में एक बार। डॉक्टर उसको हर तरीकेसे निरोग बताते रहे। सारी जानकारी जिस तरीके या जिस टेस्टिंग से वह लेते रहे हों। वह भी अपनी पत्नी और बच्ची केसाथ खुश था कि इस रोग से मुक्त हो चुका है।
पांच साल बीतने के बाद भी वह चेक अप के लिए बराबर जाता रहा। कुछ दिनों से उसको कुछ तकलीफ महसूस होने लगीथी। पिछले अप्रैल में वह वहाँ गया तो डॉक्टर ने चेक करके बता दिया कि अब आप को कोई खतरा नहीं है और आप अबचेक कराने न आये तो कोई बात नहीं तो उसने बताया कि उसको पिछले हिस्से में दर्द होने लगा है। तो डॉक्टर ने कहा किआप अपनी तसल्ली के लिए एम आर आई करवा लीजिये और हम उसको देख लेते हैं। उसने एम आर आई करवाई औरजब डॉक्टर ने देखा तो उसका कैंसर बोन मेरो में बहुत ज्यादा फैल चुका था। टाटा मेमोरिअल जैसे संस्थान के डॉक्टर सेइस तरह की लापरवाही की आशा नहीं की जा सकती थी। वह तो पत्नी और बच्ची के साथ गया था। और जब लौटा तो पूरीतरह से निराश होकर। उसे ऑपरेशन की तिथि १ महीने बाद दी गयी थी।
१३ जून को जब ऑपरेशन किया तो उसको सभालने में खुद डॉक्टर ही हार गए और फिर उन्होंने घर वालों से उसके पूरेपैर को ही काट देने के विकल्प पर विचार करने को कहा कि अगर जिन्दगी चाहिए तो ये ही करना पड़ेगा। हमारे सामनेकोई दूसरा चारा नहीं था। आखिर कल डॉक्टर ने वही काम कर दिया। अभी उसको होश में नहीं ला रहे हैं क्योंकि इसट्रौमा को सहन वह कर पायेगा या नहीं इस बात से हम भी वाकिफ नहीं है। लेकिन इस बात के लिए पूरी तरह से तैयार हैंकि उसको कैसे मानसिक रूप से इसको स्वीकार करने के लिए समझा पायेंगे। उसके बाद के विकल्प भी हमने सब सोचलिए क्योंकि जिन्दगी से बड़ा कुछ भी नहीं होता। उसकी जिन्दगी उसकी पत्नी और ११ साल की बच्ची के लिए सबसे महत्वपूर्ण है।
इसके लिए हम किसको दोष दें उन डॉक्टर को जो पांच साल तक उसको बुलाते रहे और ठीक होने की रिपोर्ट देते रहे फिरउस बेचारे कि किस्मत को जिसकी जिन्दगी में ये दिन भी लिखा था। ये पीड़ित और कोई नहीं मेरी छोटी बहन का पतिहै। उसके इस हादसे को सहन करने के लिए खुद को और उसके लिए साहस जुटा रहे हैं क्योंकि बड़ी होने के नाते सिर्फवही नहीं इससे जुड़े सभी परिवार के सदस्यों को भी संभालना होगा। और मैं ऐसी दुखिया कि सबके सामने रो भी नहींसकती हूँ। अकेले में रोकर दर्द आप सबसे बाँट रही हूँ।
गुरुवार, 16 जून 2011
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12 टिप्पणियां:
ओह्…………समझ सकती हूँ आप पर और आपकी बहन पर क्या बीत रही होगी…………जब पढकर ही रौंगटे खडे हो गये तो आपने तो वो सब देखा है और भोगा है…………ये तो नही पता दोषी कौन मगर सिर्फ़ इतना ही कहूँगी इस दुख की घडी मे आप हौसला बनाये रखना और सबका सहारा बनना इस वक्त आपकी बहन को सबसे ज्यादा आपकी जरूरत है…………हम भी आपके दुख मे बेहद दुखी हैं ईश्वर से यही दुआ करती हूं वो सबको सहन करने की शक्ति दे और आपके बहनोई को जल्द से जल्द ठीक कर दे।
हे भगवन ...ये भगवान भी कभी कभी बहुत नाइंसाफी करता है.डॉ का तो कहिये ही क्या अब यह पेशा भी भरोसे के लायक कहाँ बचा है.
आप संभालिए अपने आप को आपकी बहन और भांजी को आपके सपोर्ट की बहुत जरुरत है.
ओह . क्या कहा जाय समझ में नहीं आ रहा . इतने बड़े संस्थान में अगर ऐसी चूक होती रही तो . भगवान ही मालिक है इस देश का . उपरवाला शक्ति दे पुरे परिवार को इस दुःख को सहने की.
MAM KHUDA KE FESLE KE KHILAF HUM KYA KAR SAKTE HAIN? LEKIN KHUDA KO ITNA KRUR BHI NAHI HONA CHAHIYE. MAM IS WAKT KUCH LOGO KO APKI JARURT HAI, HOSLA BANAYE RAKHIYE. . . . .
JAI HIND JAI BHARAT
ओह!! भगवान भी कब न क्या लीला दिखा दे...
आप लोगों को हिम्मत से काम लेना होगा..यही उन्हें भी ऐसे वक्त में हिम्मत देगा.
क्या कहा जाये!! वक्त फिर जीना सिखा देता है..
अजकल अस्पतालों मे जो हो रहा है वो बहुत ही दर्दनाक और चिन्ता जानक है मुझ साल पहले दाक्तरों मे अपोलो मे बताया था कि किदनी मे ट्यूमर है जब कि बाद मे पी जी आइ ने सभी त्4एस्ट ठीक कहे किस पर भरोसा करें बडे प्राइवेट अस्पतालों मे इलाज के नाम पर लूट और फिजूल के तेस्ट हैं जिनकी तरफ बाद मे डाक्टर ध्यान नही करते। मेरी सी टी स्कैन हो रही थी डाक्टर उसे देखने की बजाये गपें लगा रहे थे वो भी जूनियर। मगर हम तकदीर का लिखा मान कर ही सन्तोश कर लेते हैं क्या करें। बहुत दुखद प्रसंग है।
ओह ..इस वक्त गहन परीक्षा है आपकी .. आपको स्वयं को संभालना होगा ..तभी बहन और उनके परिवार को संभाल पाएंगी ...
डाक्टरों से ऐसी लापरवाही की उम्मीद नहीं की जा सकती !
ऐसी लापरवाही के लिए डाक्टरों की ज़वाबदेही तय की जानी चाहिए !
दुखी करने वाली घटना !
बहुत दुखद......
दीदी,प्रणाम. ये तो सचमुच रोंगटे खड़ा कर देने वाला वाक्य है.पैसे का लालच और कर्तव्यहीनता का इससे बड़ा उदहारण क्या हो सकता है?अत्यंत दुखद एवं मार्मिक घटना है.भगवान न करे किसी को भी ऐसी परिस्थिति में डाले.आप पर जो बीत रही होगी उसे मैं समझ सकता हूँ और दिल से महसूस कर सकता हूँ.
ओह!बहुत दुखद, समझ सकती हूँ कि परिवार पर क्या बीत रही होगी। बहुत देर से पोस्ट पढ़ी है, अब कैसी तबियत है उनकी? भगवान करे वो ये सदमा बरदाश्त कर पायें।
टाटा मेमोरियल में भी अब बहुत ज्यादा भीड़ होने की वजह से डाक्टर्स ओवर स्ट्रेस्ड हैं लेकिन फ़िर भी ऐसी लापरवाही को जस्टीफ़ाई नहीं किया जा सकता
हम समझ सकते हैं आपका दर्द भगवान् किसी को ना दे दुखद। ।।
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