कल एक लघु कथा पढ़ी अखबार में - पिता के घनिष्ठ मित्र की मृत्यु पर बेटा टीवी बंद नहीं कर रहा हैक्योंकि मैच आ रहा है। पिता ने सोचा की शायद कल ये होगा कि मेरी मृत्यु पर भी टीवी बंद नहीं होगा अगर ऐसेही कोई कार्यक्रम आता हुआ।
ये तो नई पीढ़ी को हम दोष दे रहे हैं लेकिन अगर हम ही या हम से भी कुछ साल पहले वाली पीढ़ी कुछऐसा ही करे तो क्या हम विश्वास करेंगे ? शायद नहीं क्यों हम समझते हैं कि हम और हमारी पीढ़ी अधिकसंवेदनशील और सामाजिक रही है , रही नहीं है आज भी है लेकिन इसके भी कुछ अपवाद जब देखने को मिलजाते हैं तो शर्म तो आ ही जाती है.
हमारे एक बहुत ही करीब के पारिवारिक सदस्य के साढू भाई बीमार थे और हम लोग उनके घर नहींपहुँच पा रहे थे। अभी जवान थे उनके साढू दो छोटे छोटे बच्चे हैं। हम दोनों लोग बैठे ही थे कि फ़ोन आया - उनकीमृत्यु हो गयी। उनकी पत्नी रोने लगी और पतिदेव एकदम से बेहाल नजर आने लगे कि दिल बैठा जा रहा है, मेरेपति ने कहा कि मैं अभी दवा लेकर देता हूँ आप ले लीजिये आराम आ जायेगा। वे जल्दी से गए और दवा लेकरआये उनको खिलाई। फिर वह सज्जन बोले कि मैं तो जा नहीं सकता हूँ, ऐसा करो कि रेखा को यही रहने दो औरतुम अपनी भाभी को अस्पताल छोड़ आओ। मेरे पति उनकी पत्नी को लेकर चले गए। मैं वही रही पत्नी के जाते हीवह उठे और किचेन में गए वहाँ से उन्होंने कुछ खाने को लिया और खाया। मेरी तो ये समझ नहीं आ रहा था कि येइंसान थोड़ी देर पहले लग रहा था कि साढू के सदमे से कहीं कुछ हो न जाए। खा पी कर बोले - थोड़ी चाय बना दो। मैंने चाय बना कर दी। चाय पीकर वह हमसे बोले - "टीवी तो देखा जा सकता है।"
मुझे लगा कि ये कुछ और कह रहे हैं और मुझे सुनाई कुछ और दे रहा है , लेकिन बोल तो वह वहीरहे थे। मैं क्या कहती? मैंने कह दिया - क्यों नहीं अगर आप देखना चाहें तो खोल लीजिये। वह वही पड़े दीवान परलेट गए और टीवी देखने लगे । अब मैं यह नहीं समझ पा रही थी कि ये जो थोड़ी देर पहले तबियत घबराने कानाटक कर रहे थे या फिर वाकई ऐसा कुछ था। या फिर अपनी पत्नी को दिखाने के लिए ऐसा कुछ कर रहे थे। जबपतिदेव वापस आये तो चलने के लिए कहा। बोले न हो तो तुम लोग आज यही रुक जाओ वह तो अब वापस क्याआ पाएंगी? मैं अकेला रात बिरात कोई समस्या हो गयी तो कोई देखने वाला नहीं।
मुझे इतना तेज गुस्सा आ रहा था की मैं बता नहीं सकती । मैंने अकेले में इनसे कहा कि घर चलतेहैं अगर कोई प्रॉब्लम होती भी है तो भाई साहब फ़ोन कर देंगे हम लोग आ जायेंगे। फिर सुबह तो हम लोग भीउनके घर जायेंगे ही तो यहाँ से कैसे जाना होगा?
घर आकर मैंने इनको सारी बात कही. तो इन्होने बताया कि हाँ वे ऐसे ही हैं . इनको अपने और सिर्फअपने आराम और सुख से मतलब है बाकी किसी से नहीं. फिर मुझे यही लगता रहा कि क्या इंसान इतनाबेमुरव्वत हो सकता है ।
मंगलवार, 12 अप्रैल 2011
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5 टिप्पणियां:
ऐसे उदाहरण एक ढूंढो हजार मिलते हैं रेखा जी ! और हर पीढ़ी में मिलते हैं.
क्या किया जा सकता है अफ़सोस के अलावा.
सच लिखा है कटु सत्य
सच ऐसे लोग केवल अपने लिए जीते हैं ...
सार्थक चर्चा के लिए हार्दिक आभार....
aisi ghatnayen aaj kal har tarf mil rahi jisse ye sabit jarur ho raha ki ab manvta asmvedanshil ho rahi ....
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