पिछले चौदह वर्षों से जिस माँ का बेटा अपनी बचपन की एक नादानी के कारण जेल की सलाखों के पीछे जीवन गुजार रहा हो, उसके लिए ये राम के वनवास जैसा पहाड़ सा कालखंड कितना कष्ट देता होगा . इस बात का अहसास उस माँ के अतिरिक्त कोई भी नहीं लगा सकता है. उसने अपने बेटे के जेल से बाहर आने के दिन को सौ सौ साल के बराबर लम्बा मान कर काटे और जब वह दो दिन बाद जेल से बाहर आने वाला था घर में तैयारी चल रही थीं. वह बेटा जो सिर्फ १८ वर्ष २ दिन का था तब जेल चला गया था और अब ३२ साल का होकर बाहर आ रहा है. इतने वर्षों में कोई ख़ुशी नहीं मनाई गयी - कोई शादी ब्याह नहीं , कोई त्यौहार नहीं , दिवाली तो पर्व है सो दीपक जला लिए लेकिन होली खेलना ही भूल चुके थे.
**चित्र गूगल के साभार
घटना के बाद पिता की अकूत संपत्ति भी ख़त्म होने लगी थी. बहुत पैसा कमाया था - आयकर अधिकारी जो थे, किन्तु वो ऐसे जाएगा ऐसा नहीं सोचा था. मुकदमेबाजी में सब कुछ ख़त्म होने लगा और इस घटना के बाद तो उनकी प्रतिष्ठा भी गिरने लगी थी. मोहल्ले में कटाक्ष और व्यंग्य सुने नहीं जाते थे . संयुक्त परिवार के चारों भाइयों ने पैतृक मकान बेच कर अलग अलग दिशाओं में रुख कर लिए और मकान के ख़त्म होने के साथ ही शायद दिल भी दूर हो गए. जिन्दा सभी थे क्योंकि जीवन और मृत्यु अपने हाथ में नहीं होती और वह इस आशा में जी रहे थे कि रवि लौटेगा तो यह घर फिर से खुशियों से भर जाएगा.
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चौदह साल पहले सब भाई एक साथ एक ही घर में अपने माता पिता और बच्चों के साथ रह रहे थे. बड़ा सा पैतृक मकान और सभी भाइयों के बच्चे ऐसा सोच ही नहीं पाते थे कि हमारे पिता अलग अलग हैं. सबमें गहरा प्यार था. सभी बच्चे लगभग हमउम्र थे, साथ खेलना और साथ स्कूल जाना, खाना पीना वे अलग होते ही कब थे. सब एक कमरे में सोते और धमाचौकड़ी मचाया करते. अगर कोई छोटा लड़ता तो बड़े भाई रवि के पास पहुँच जाते और वह सबका निपटारा करता था.
रवि १८ साल और २ दिन का हुआ था. अभी परसों ही उसका जन्मदिन धूमधाम से मनाया गया था. उस दिन वह अपने कॉलेज से आया था. उसका बी एस सी में एडमीशन हुआ था. घर के बाहर पड़ोसी के बच्चे और उसके छोटे भाई खेल रहे थे. खेलते खेलते बच्चों में लड़ाई हो गयी और वे गुत्थमगुत्था होने लगे और देखते ही देखते रवि के चचेरे भाई के सीने पर पड़ोसी का बेटा चढ़ गया और उसका गला दबाने लगा. उसे लगा कि ये तो मर जाएगा. उसने उसको तितर बितर करने के लिए एक ईंट का बड़ा सा टुकड़ा ऊपर से नीचे फेंका और ये क्या वह टुकड़ा तो सीने पर बैठे हुए बच्चे के सिर पर ही लगा और सिर से खून का फव्वारा बह निकला. सारे बच्चे भाग गए. उस बच्चे को लेकर अस्पताल भागे किन्तु उसने बीच में ही दम तोड़ दिया और बच्चों के खेल में हत्या का इल्जाम रवि के सिर पर आ गया.
पड़ोसी भी बड़ा व्यापारी था उसने रवि और उसके एक सगे और एक चचेरे भाई को नामजद किया. सभी बच्चे जेल में पहुँच गए.
उस बच्चे की अंत्येष्टि में सभी लोग गए क्योंकि यहाँ कोई दुश्मनी नहीं थी. मृत बालक के पिता ने उसी जगह सबके सामने कसम खाई कि "जैसे मैं अपने बच्चे को खोकर रो रहा हूँ, एक दिन वैसे ही तुमको भी रुलाऊंगा."
ये बात सब लोगों ने एक पिता के ह्रदय पर लगे आघात का असर समझ कर भुला दी. फिर मुकदमे बाजी शुरू हो गयी. कोई भी पैसे से कमजोर न था . इनके तीन बच्चों में दो नाबालिग थे सो उनको छोड़ दिया गया किन्तु रवि बालिग ही नहीं उसको अपराधी भी मना जा रहा था , उसकी जमानत नहीं होने दी उनलोगों ने. पड़ोसी के प्रभाव से भयभीत होकर और बच्चों के जीवन को देखते हुए ही उस घर को बेचने का निर्णय लिया गया. रवि को आजीवन कारावास कि सजा सुना दी गयी.
**चित्र गूगल के साभार * * * * *
रवि जेल के जीवन में रम गया क्योंकि वह कोई अपराधी प्रवृत्ति का लड़का नहीं था, उसको जमानत मिल सकती थी लेकिन अपने पैसे और प्रभाव से दूसरे पक्ष ने उसको बाहर नहीं आने दिया. अपने भाग्य के लेख मान कर वह वही आगे पढ़ने की तैयारी करने लगा और उसने ग्रेजुएशन कर ली. एक सभ्य परिवार का लड़का अपने आचरण से जेल में बहुत पसंद किया जाता था. उसको जेल के अस्पताल में दवा बांटने का काम दे दिया गया. उसने अपने काम में ही रूचि लेनी शुरू कर दी. कभी जब भी माता पिता आते तो वह हमेशा यही कहता - 'पापा मैं बिल्कुल ठीक हूँ, आप चिंता न करें.'
'मम्मी आप अब रोया मत कीजिये, शायद यही मेरे भाग्य में लिखा था. आप खुश रहिये कि आपका बेटा यहाँ भी सबके लिए काम कर रहा है.'
उसकी पसंद का खाना बनता तो माँ से खाया न जाता और वह चुपचाप खिसका कर उठ जाती. उसके दिन तो बेटे के घर वापस आने के इन्तजार में कट रहे थे. दिन , महीने, और वर्ष अपनी गति से गुजरते जा रहे थे. न काल की गति रुकी और न ही जीवन चक्र. छोटे भाई बहन सब पढ़ लिख कर तैयार हो गए थे. सब इसी इन्तजार में थे कि रवि घर आएगा तो उसकी शादी कर देंगे. वह कोई अपराधी तो है नहीं और कई लोग तैयार भी थे. फिर कोई बिजनेस करवा देंगे.
उस दिन के आने के ठीक दो दिन पहले जेल से फ़ोन आया कि ' आप लोग जेल पहुँचिये , आपके बेटे कि तबियत ख़राब हो गयी है.'
वह सब बदहवास से जेल की तरफ भागे तो उन्हें वहा अपना बेटा नहीं मिला बल्कि उसका शव मिला. सारा परिवार स्तब्ध कि आख़िर हुआ क्या था? जेल अधिकारियों के पास इसका कोई भी जबाव नहीं था . शायद फूड प्वाजनिंग हो गयी थी या फिर कुछ और वे नहीं बता सके. आखिर दौलत के लम्बे हाथों के नीचे जेल प्रशासन दब गया और दुश्मनों ने जो शायद इसी दिन के इन्तजार में थे अपनी चाल चल ही दी. वे ठगे से रह गए. किससे क्या कहें? किसको गालियाँ दें? किसको कोसें? कौन अब उनके बेटे को वापस लगा सकता है?
ये सिर्फ फिल्मों में ही देखा जाता है , किन्तु ये एक उस जीवन कि हकीकत है - जो अपने जीवन में कुछ देख ही नहीं पाया और माँ बाप जीवन भर का सदमा लेकर टूटे हुए जीवन के दिन पूरे कर रहे हैं और अब तो कोई इन्तजार भी नहीं बचा है.
आख़िर वह दिन आया ही नहीं.......................
बुधवार, 20 अक्तूबर 2010
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13 टिप्पणियां:
marmik rachna
करूण, बहुत ही भावमय कर गई आपकी यह रचना ।
ओह! बदले की इम्तिहाँ हो गयी ये तो………………काफ़ी कुछ सोचने को मजबूर करती है।
ओह दुखद,करुण मार्मिक :(
Jail ke andar aur jail ke baahar... dono jagah aadmi kisi aur jail me bhi hota hai...
बाप रे बाप इतना कुछ. शायद वो ये नहीं जानते थे की किसी को माफ़ करने में जो बड़प्पन है वो सजा देने में नहीं.किसी को माफ़ करना मुश्किल तो होता है पर इतनी बड़ी सजा एक अनजाने में की गयी गलती की जानबूझकर तय की गयी ये सजा उफ्फ्फ !!!!!!
ओह! कौन विश्वास करेगा कि यह हकीकत है....
अगर ये हरकत विरोधी पक्ष की थी तो क्या इस से उनका बेटा वापस आ गया??...कितने क्रूर होते है कुछ लोग. बहुत ही दर्दनाक घटना
ओह बहुत दर्दनाक !! लेकिन क्या कोई नही सुनाने वाला, इन्हे कोई नही इंसफ़ दिलाने वाला....
दर्दनाक कहानी है, पढ़कर मन द्रवित हो गया।
स्तब्ध करती रचना!!
मार्मिक...बस, रुके रह गये...
राज जी ,
कहीं कोई सुनने वाला नहीं है, ये भेडचाल है और इसका न्याय कहते हैं की ईश्वर करता है तो अब ऐसा नहीं होता मेरा तोविश्वास ख़त्म होने लगा है.
रचना जी,
ये तो सुना था की प्रतिशोध इंसान को अंधा कर देता है लेकिन १४ साल तक वह अंधापन बरक़रार रहे ऐसा देख भी लिया. फिर वो घटना सिर्फ भवितव्यता ही थी
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