जिस धरती और जिस देश में हमने जन्म लिया है, वह हमें क्यों इतना प्यारा होता है? हम कहीं भी रहें उसकी बुराई न सुन सकते हैं और कर सकते हैं. आखिर करें भी क्यों ? जिस मिट्टी और धरती पर हम पैदा हुए और हमने उसको अपने तन पर लपेट कर जीवन जिया है, उससे अलग कब हो सकते हैं. वक्त हमें कहीं भी पहुंचा दे लेकिन उससे मोह कभी ख़त्म नहीं होता. ये घटना सबक है उन लोगों के लिए जो कहते हैं कि इंडिया में रखा ही क्या है? जो यहाँ है वो कहीं भी नहीं मिलेगा, यहाँ की हवा और मिट्टी में जो प्यार है जो सात समुन्दर पर जाकर भी बरक़रार रहता है.
आज सुबह मेरे पास न्यूयार्क से एक फ़ोन आया - 'रेखा तुम मुझे अपने ब्लॉग मत भेजा करो , जिनमें की देश की राजनैतिक गतिविधियाँ , भ्रष्टाचार और ख़राब हालात के बारे में लिखा गया हों. भैया इसके लिए मना करते हैं क्योंकि सभी बच्चे तुम्हारे ब्लॉग पढ़ते हैं और इससे उनके मन में एक निगेटिव इमेज बन जाएगी और बच्चे फिर इससे सम्बंधित सवाल करने लगते हैं. '
ये फ़ोन मेरे चचेरे ननदोई का था , जो कि उम्र में मुझसे बहुत बड़े हैं , उनका सबसे छोटा बेटा हमारा हमउम्र है. वह मुझसे बहुत लगाव रखते हैं और मेरे लिखने को शुरू से ही पसंद करते थे. जब मैंने ब्लॉग बनाये तो उन्होंने कहा कि मैं उनकी लिंक दे दूं जिससे कि उनको मेरे ब्लॉग की सारी गतिविधियों से जानकारी मिलती रहे.
मेरे नन्द और ननदोई दोनों ही यही पर नौकरी करते थे. उनका बड़ा बेटा बहुत पहले एम टेक करने के बाद अमेरिका चला गया था और बाद में यही शादी की और परिवार सहित चला गया. जब जक इन लोगों की नौकरी रही छोटा बेटा यही था और retirement के बाद सभी लोग वही चले गए और बस गए. जीजाजी बड़े बेटे के साथ रहते हैं. उनके बच्चे कभी कभी घूमने के लिए ही यहाँ आते हैं. मेरे ब्लॉग उनके घर में सभी लोग पढ़ते हैं. बच्चे अब छोटे तो नहीं हैं लेकिन उनके पोते पोतियाँ जो वही पले और बढे हैं, यहाँ के सारे माहौल से परिचित नहीं है लेकिन ब्लॉग में जो तस्वीर उनको मिल जाती है तो वे सवाल करने लगते हैं कि 'आप तो ऐसा कहते हैं, और इससे ऐसा पता चलता है. ' बहुत सारे सवाल जिनका जबाव उन लोगों के पास होता भी है और नहीं भी होता है. बच्चों के दिमाग में देश के प्रति ख़राब छवि न बने इस लिए वे चाहते हैं कि देश की निगेटिव इमेज वाले ब्लॉग न भेजू.
बहुत साधारण सी बात है लेकिन अगर इसको गहराई से सोचा जाय तो अपनी माटी की कमियों को वे अपने बच्चों(पोते पोतिओं ) के सामने भी उजागर नहीं करना चाहते हैं. वे अस्सी साल के हैं फिर भी समय और साथ मिलने पर अपनों से मिलने और अपनी माटी से मिलने चले आते हैं.
शनिवार, 21 अगस्त 2010
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19 टिप्पणियां:
आपके इस संस्मरण ने मन मोह लिया.... बहुत अच्छा लिखा है यह संस्मरण रुपी पोस्ट...
आपका संस्मरण अपने देश अपनी माटी के प्रति हमारी जिम्मेदारी की याद दिलाता है "सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा" , बधाई
बहुत पसन्द आया
हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
देश भक्ति का संदेश देती हुई!
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बहुत बढ़िया रही यह पोस्ट!
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बेहतरीन संस्मरण
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अपनी मिटटी के प्रति कर्त्तव्य-बोध का एहसास कराती बेहद सुन्दर पोस्ट
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आभार
शुभ कामनाएं
rekha ji ! mer khyal se to yahi vajh hai ki sab saadhan hote hue bhi ham aaz bhi pichhde hue kahaye jate hain .
kyonki ham na to waqt ke saath badalna chahte hain na kapni kamjoriyon ko dekhna cahte hain .ham az bhi fools peradise men hi jeena chahte hain .
jab tak ham apni kamjoriyon ko,buraiyon ko samjhenge nahi use sudharenge kaise?
यह सब पढ़ द्रवित हो गया मन....पर सच्ची बात छुपाई नहीं जानी चाहिए, क्या पता....उनमे से किसी को ....अपने देश की माटी खींच लाये कि चलो वहाँ जरूरत है...पर यह ख्याली पुलाव जैसा ही लगता है..
सार्थक आलेख
मार्मिक संस्मरण
"वे अस्सी साल के हैं फिर भी समय और साथ मिलने पर अपनों से मिलने और अपनी माटी से मिलने चले आते हैं"
अपनी मिटटी के प्रति कर्त्तव्य-बोध का एहसास कराती बेहद सुन्दर पोस्ट
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सच्चाई से आँख मोड़ लेने की बजाये उसे स्वीकारने और सुधारने की ज्यादा जरुरत है.
अच्छा आलेख.
सुन्दर पोस्ट. अपनी मातृभूमि की सुगंध लिये.
आप की बात से सहमत हुं, मेरे बच्चे यहां जर्मन मै जन्मे, पले, बडे हुये.... लेकिन मैने उन्हे ही नही उन के जर्मन दोस्तो को भी भारत से बांध दिया, ओर बच्चे जब भी भारत आते है, खुशी खुशी से हर जगह घुमते है, बस बच्चो को आप समझा दो कि हम सिर्फ़ बुराईयो को ही ना देखे, अच्छाईयां भी बहुत है क्यो ना हम उन्हे देखे, फ़िर हमारी पहचान क्या है? इस लिये हम चाहे किसी भी देश की नागरिकता ले ले, लेकिन रहेगे भारतिया ही, भारत आने पर तो हमे लगता है कि हम अपनी मां की गोद मै आ गये हो, सडक पर चलता हर भारतिया मुझे अपना भाई, अपना बुजुर्ग लगता है, धन्यवाद इस पोस्ट के लिये, टिपण्णी के संग मै एक संदेश भी उन भारतियो को देना चाहुंगा कि आप सब सिर्फ़ पेसो के पीछे ना भागे, अपने अपने बच्चो का भी ध्यान रखे, उन्हे भारतिया खाना दे, अपनी भाषा मै बोले, अपने देश की अच्छी अच्छी बाते बताये, क्योकि कल यही बच्चे भारत का भविष्य है, कल हमे यहां से जाना पडा तो हमारी मां ही हमे अपनी बांहो मै समभाले गी चाहे वो आज गरीब है, लाचार है.... हे तो हमारी मां
अच्छी, विचारोत्तेजक प्रस्तुति।
*** राष्ट्र की एकता को यदि बनाकर रखा जा सकता है तो उसका माध्यम हिन्दी ही हो सकती है।
उन सब लोगों ने जिनका कहना है कि हमें सच्चाई से मुँह नहीं मोड़ना चाहिए एकदम सच है. लेकिन हमारी राजनैतिक गतिविधियाँ, संसद में सांसदों कि गतिविधियाँ, उनके घोटाले और रिश्वतखोरी, अनैतिक आचरण की चर्चाओं से वे बचाना चाहते हैं अपनी नयी पीढ़ी को. यहाँ की सच्चाई से बच्चे यहाँ आते हैं वाकिफ हैं लेकिन वो बुराइयाँ जो हमने खुद लाद रखी हैं सिर्फ एक छवि को ख़राब करने वाली है. भारतीय नेताओं और उच्च पद वालों की करतूतें हमें क्या सन्देश देती हैं? हम इसके आदी हैं और इससे बच नहीं सकते . हम गरीब है ये गलत नहीं है लेकिन इस गरीबी को वे बढ़ाने वाले हैं जो खुद अमीर और अमीर बनने की हवश के शिकार हैं. ब्लॉग से तो अक्सर यहाँ होने वाले कारनामों की खबर लग जाती है. यही कारण है कि वे नहीं चाहते कि अपनी छवि देश कि छवि बच्चो कि नजर में गलत बने.
अपनी माटी की कीमत देश छोड़ने के बाद ही पता लगती है। यह सच है कि जो लोग विदेश में बसे हैं वे चाहते हैं कि देश में रह रहे भारतीय ऐसा भारत बना दें जिससे हम गौरव से कह सके कि हम भारतीय हैं। अभी तो वे कहते हैं कि देश भ्रष्ट है इसीलिए तो हम छोड़ आए हैं। जबकि सत्य यह है कि इस देश के संसाधनों से शिक्षा प्राप्त करने के बाद किसी देश में बसना सबसे बड़ा भ्रष्टाचार है। इसलिए भारत की कमियों को इंगित करना एक बात है लेकिन सुधार के कदमों की सराहना ना करना अन्य बात है। आलोचना हो लेकिन कटु आलोचना या बिना सोचे समझे बुराई करना किसी भी देश की छवि बिगाड़ने का काम है। कमियां हर देश में होती हैं लेकिन जैसा हमारे यहाँ देश को बदनाम किया जाता है वैसा कहीं और नहीं होता। मैं राज भाटिया जी से सहमत हूँ।
सही कहा आपने कि अपनी माटी की कीमत देश छोड़ने के बाद ही पता लगती है।
सच है ...अपना देश अपना ही है ...अच्छी पोस्ट
सच अपना तो बस अपना ही होता है बहुत मार्मिक पोस्ट है टिप्पणी में की गई चर्चा भी अच्छी लगी
मैम, मेरा तो मानना है कि हम सामने वाले में गलती ढूँढें उससे पहले शुरुआत अपने से ही करना चाहिए। और इस मान से मैं अपने देश को सकारात्मक होकर देखता हूँ। यदि वाकई इतना भ्रष्टाचार और अराजकता होती तो क्यों नहीं यह देश फिर से गुलाम बन गया। हकीकत यह है कि आज भी हर क्षेत्र में इवन राजनेताओं की संख्या भी ईमानदारों की ज्यादा है। इसीलिए देश प्रगति भी कर रहा है। हालाँकि जो लिप्त हैं अनैतिक कार्यों में इनकी संख्या और कम होनी चाहिए।
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