'आनर किलिंग ' के प्रति समाज जागरुक हो उठा है और इसके खिलाफ आवाजें उठने लगीं हैं - समाज के हर तबके और कोने से. पर क्या ऐसा करने वाले डर गए हैं नहीं और विकल्प खोज लिए. खरीद लिया उसने पैरोकारों को और सब शांत. बिना मौत कि खबर और पोस्टमार्टम के वो जमीदोश कर दी गयी और उसके साथ ही एक वह शख्सियत ख़त्म हो गयी जिससे कभी किसी को शिकायत नहीं हुई.
वह एक संस्थान में HR थी और उससे करीब करीब रोज का मिलना जुलना था. परसों ही शाम को उससे मुलाकात हुई - अपने चैंबर में बैठी थी कि मैं पहुँच गयी , वह फ़ोन पर बात कर रही थी और उसने यह कह कर कि "कल शाम को मिलते हैं." फ़ोन रख दिया. मुझे पता था कि वह किसी से प्रेम करती है और शादी करना चाहती है. अन्य जाति का होना आज सामान्य सी बात है. वह लड़की बेहद प्यारी थी - हंसमुख, मिलनसार और संवेदनशील.
कल जब संस्थान जाना हुआ तो पता लगा कि उसने फाँसी लगा ली. संस्थान में सन्नाटा पसरा था. हर चेहरा ग़मगीन और शोक सभा के बाद सब अपने अपने काम में लग गए क्योंकि उसे बंद नहीं किया जा सकता है.
मैं सोच रही थी कि निश्चित रूप से यह घटना कल के पेपर में देखने को मिलेगी कि ऐसा क्यों किया? वह उस दिन मिली थी तो कोई तनाव नहीं था, अच्छी तरह से बात कर रही थी और दूसरे दिन शाम मिलने की बात कह कर फ़ोन रखा था. दूसरे दिन अखबार में कोई कहीं खबर नहीं थी. मामला पुलिस तक गया ही नहीं था या फिर पुलिस बिक गयी. ऐसा तो संभव ही नहीं कि इतने बड़े हादसे की खबर घर वाले छिपा जाएँ लेकिन क्या उसके आसपास कोई ऐसा नहीं होगा कि ये खबर पुलिस तक पहुँच जाती. संस्थान में भी सभी स्तब्ध थे कि ये किस्सा आत्महत्या का नहीं हो सकता क्योंकि वह निराशावादी नहीं थी. सबसे लड़ने का हौसला रखने वाली लड़की थी.
'आनर किलिंग ' का ये विकल्प जो सामने आया वह पहले भी होता रहा है लेकिन इसके प्रति जागरूकता के बाद खरीदार और बिकाऊ लोगों के आगे मानवता, जागरूकता और रिश्ते सब शर्मसार हैं. उन्होंने सोचा कि इज्जत बच गयी. मामला मीडिया में पहुंचकर निरुपमा जैसा बन जाता किन्तु अपराधी तो वे हैं ही और इसके लिए जीवन भर इस अपराध बोध से ग्रस्त रहेंगे. हम अपनी सोच कब बदल पायेंगे और कब उस लड़की जैसे लोगों को अपना जीवन जीने देंगे.
बुधवार, 28 जुलाई 2010
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10 टिप्पणियां:
बेहद दुखद ..बेहद चिंताजनक ..
didi! aapne badi sahi baat kahi.......bhartiya parivesh me sach me ye honour killing ek bahut bada mudda ban gaya hai........aur pata nahi kab ham iss se bahar nikal payenge........
bahut khed janak baat hai!!
bahut sahi .... behad taklifdeh
behad chintajank sthiti hai magar abhi tak hal kahin nazar nahi aata.
बहुत मार्मिक...न जाने कब लोगों की सोच बदलेगी
बहुत दुखद.
ek badi samsya bankar ubhar rahi hai yah...
bahad sharmnaak aur takhlifdeh
bबहुत दुखद घटना है। ये तो सदियों से होता आया है मगर कभी अवाज नही उठी---- शायद अब समय आ गया है कि लोग जागरुक हो रहे हैं और एक दिन शायद ये बन्द भी हो जाये। शुभकामनायें
बहुत ही दुखदायी है , यानि कि चुपके चुपके सब चल रहा है...पता भी नहीं चलता और हंसती मुस्कुराती कलियाँ...मसल दी जाति हैं...कब रुकेगा ये सब..हर घर एक यातनागृह है
बेहद दुखद और शर्मनाक ...
लेकिन घरवाले ऐसा करेंगे ...ये मानना मेरे लिए थोडा मुश्किल है ...
किसी विशेष समुदाय के कुछ लोगों द्वारा किया जाना फिर भी संभव लगता है ...
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