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शनिवार, 28 दिसंबर 2024

सीमान्त !

 

                                                     सीमान्त !

                    विनी की पोस्टिंग शहर से दूर एक नई टाउनशिप बनाने वाली जगह लगाई गई। वही निर्जन निर्माण स्थल पर सामने के मैदानों में समूहों से बने आवासीय घर, मजदूर रहते थे और जहाँ उनके बच्चे खेलते थे और यही इलाका ही तो वहाँ इंसानों के होने का अहसास कराता था।

               नवरात्रि आई तो रेवती को लगा कि वह क्या करेगी? नवरात्रि में कैसे कन्याओं को खिलाएगी। उन्होंने बगल में रहने वाली आशा को बोला - ''हम शाम को चल कर उन झोपड़ी वाली बच्चियों के लिए बोल कर आयेंगे।''
              "बावरी हुई हो ये लोग पता नहीं किस जाति के है? इनकी लड़कियों के लिए तो मैं न जाऊँगी।"
            रेवती चुपचाप चुप रह गई और उसने अपने काम वाली से कहा - "तुम जो लड़कियाँ हो, उन्हें नहलाकर धुले कपड़े कर तैयार रखने के लिए उनके घर वालों से कह देना।"
         सुबह वह गाड़ी से निकली और लड़कियों को इकट्ठा किया, दो लड़कियाँ दूर खड़ी लालसा में भरी नजरों से देख रही थीं।
      "तुम भी आओ अभी दो और चाहिए।" रेवती ने कहा तो वह पीछे हो गई।
       "मैम साहब वो मुसलमान हैं।" कामवाली ने बताया।
      "तो क्या हुआ? देवियों की कोई जाति नहीं होती।"
     वह सारी बच्चियों को ले आई और उन्हें भोजन करने के लिए  ले गई। जब उनकी पूजा करके उनको चुनरी ओढ़ाई तो सभी देवियाँ ही लग गयीं।
     रेवती खुश थी कि आज उसने इन शीटों के सामने जाति धर्म में अंतर को विसर्जित कर दिया।