कभी कभी हम खुद एक ऐसे असमंजस में फँस जाते हैं कि पूछे गए सवालों का उत्तर हमारे पास नहीं होता है और होता भी है तो हम सामने वाले संतुष्ट नहीं कर पाते हैं. तब न समझा पाने की जो छटपटाहट होती है और उस मनःस्थिति से गुजरते हुए जो बैचेनी और तनाव होता है , वह झकझोर कर रख देता है
मैंने अपने जीवन में पता नहीं कितने लोगों को काउंसिलिंग करके तनाव और बिखरने वाली स्थिति से बचाया है और दरकते हुए परिवार को भी टूटने से बचाया लेकिन एक ऐसा मसला फँस गया और मैं खुद नहीं समझ पा रही हूँ कि उस बच्चे को मैं संतुष्ट कर पायी या नहीं।
मेरी ममेरी जिठानी का पोता रजत कल मेरे पास आया . मेरी जिठानी का निधन हो चुका है .इसलिए उस परिवार में बड़े के नाते और अन्तरंग होने के नाते मुझसे सलाह लेते हैं। मेरी जिठानी मुझसे बहुत बड़ी थी लेकिन छोटी बहन की तरह वह भी हर काम में हम दोनों को ही बराबर साथ लेकर ही चली या निर्णय लिया तो राय जरूर ली .
उनके बड़े बेटे की मृत्यु एक दुर्घटना में शादी के दो साल बाद ही हो गयी थी। रजत उस 6 माह का था। उस घटना के बाद वह पूरी तरह से टूट चुकी थी और उससे अधिक तो वह बहू जिसने पति खोया था। फिर निर्णय लिया गया कि बहू की शादी देवर के साथ कर दी जाय . एक साल के बाद शादी करवा दी गयी। बच्चा बहुत छोटा था और वह चाचा का दुलारा तो भाई के समय भी था अतः सोचा गया कि रजत का जब भी स्कूल में नाम लिखाया जाएगा तो पिता की जगह पर चाचा का ही नाम लिखाया जाय ताकि भविष्य में उसके मन में ये विचार न आये कि मेरे पिता कोई और थे। शादी के बाद एक बेटी और हुई। पिता की ओर से कभी भी कोई ऐसा व्यवहार नहीं हुआ कि कोई इस बारे में सोचे।
अब जब वह इंटर में पढ़ रहा है तब वह इस सवाल को लेकर मेरे पास आया। वह मुझे दादू ही कहता है जो अपनी दादी को कहता था।
--'दादू मुझे आपसे कुछ पूछना है?'
--'हाँ बताओ क्या बात है?'
--'दादू क्या पापा मेरे पापा नहीं है? मेरे पापा कोई और थे?'
--'ये बात तुमसे किसने कही ?'
--'ये बात मुझे कल ही दया आंटी ने बताई है कि तुम्हारे पापा तो संजय थे . ये तो तुम्हारे चाचा थे जिनसे दादू ने मम्मी की शादी उनके न रहने पर करवाई '
दया उनके घर में बहुत वर्षों से किरायेदार थीं और अब दूसरी जगह रहने लगी . ये बात सभी लोगों से कही गयी थी की इसा बच्चे को कभी ये बात न जाये लेकिन मानव मन कब क्या कर बैठे ? इस बात की आशंका तो थी कि ऐसा कभी न कभी हो सकता है। मैं भी मानसिक पर इस स्थिति को झेलने के लिए तैयार थी।लेकिन ये जरूरी तो नहीं है कि मैं सामने वाले को इस विषय मे सामने वाले को संतुष्ट कर ही सकूं।
--और दया आंटी ने क्या बतलाया?'
--'यही कि तुम इस बारे में दादू से जाकर पूछ सकते हो। मैंने मम्मी से कुछ भी नहीं पूछा है , आपसे पूछ रहा हूँ। '
--'हाँ ये सच है कि तुम्हारे पिता संजय ही थे लेकिन तुम्हारे बचपन के और मम्मी की मानसिक स्थिति को हम इतनी जल्दी बदल नहीं सकते थे कि वह चाचा से शादी कल तैयार हो जाएँ और जब तैयार हो गयीं तो ये निर्णय तुम्हारे और मम्मी के हित के लिए लिया गया . बार बार उस नाम और तस्वीरों को देख कर जो सवाल तुम उस उम्र में पूछते और मम्मी या दादू उनके उत्तर तुमको देती तो शायद वह अपने अतीत से बाहर नहीं आ पाती . इसलिए ऐसा सोचा गया था। '
--'फिर पापा का नाम किसी ने घर में क्यों नहीं लिया? '
--सिर्फ इसलिए की उस नाम पर तुम और तुम्हारी बहन बड़े होने पर जो सवाल करते उनके जवाब नहीं होता और जवाब तो फिर भी दे देते तुम्हें उनसे संतुष्ट करना और भी कठिन था।'
--'दादू ये तो ठीक नहीं हुआ न, फिर उनका नाम तो कहीं भी नहीं बचा?'
--'हाँ ये सच है लेकिन जब वो इंसान ही नहीं रहता है तो फिर नाम कौन और कितने दिन लेता? उस नाम को बार बार याद करने के बाद भी हम उसको पा नहीं सकते और फिर जो जीवित हैं उनके लिए जीना और भी मुश्किल हो जाता. तुम्हारी दादू का वह बेटा था और बड़ा बेटा उन्होंने तुम्हारे और मम्मी के लिए अपने दिल पर पत्थर रख कर, उसके साथ ही उस नाम को खुले आम लेना बंद कर दिया।एक माँ के लिए अपने बेटे को भूलना असंभव होता है लेकिन उन्होंने ऐसा किया तुम्हारे और मम्मी के लिए। '
--'मैंने तो अपने पापा की कोई तस्वीर भी नहीं देखी है। वे कैसे थे? '
--'जिसको तुमने अपने होश संभालने के बाद से पिता के रूप में है वही तुम्हारे पापा हैं। फिर से संजय को वापस यादों और बातों में लाया गया तो सब कुछ उतना सहज नहीं रह जाएगा। मम्मी फिर से उलझ जायेगी। वह इस उम्र में बी पी की मरीज हो चुकी है क्योंकि उसने सिर्फ और सिर्फ दुःख ही देखे हैं। इसलिए उसके लिए तुम ये सवाल कभी उससे मत पूछना। '
--'नहीं दादू मैं आपसे प्रॉमिस करता हूँ कि मम्मी से कभी नहीं पूछूंगा '
मैं संतुष्ट कर पायी नहीं जानती लेकिन बहुत मुश्किल काम था कि हम लोगों ने कैसे संजय के नाम को न दुहराने की कसम के साथ ये निर्णय लिया था।
मैंने अपने जीवन में पता नहीं कितने लोगों को काउंसिलिंग करके तनाव और बिखरने वाली स्थिति से बचाया है और दरकते हुए परिवार को भी टूटने से बचाया लेकिन एक ऐसा मसला फँस गया और मैं खुद नहीं समझ पा रही हूँ कि उस बच्चे को मैं संतुष्ट कर पायी या नहीं।
मेरी ममेरी जिठानी का पोता रजत कल मेरे पास आया . मेरी जिठानी का निधन हो चुका है .इसलिए उस परिवार में बड़े के नाते और अन्तरंग होने के नाते मुझसे सलाह लेते हैं। मेरी जिठानी मुझसे बहुत बड़ी थी लेकिन छोटी बहन की तरह वह भी हर काम में हम दोनों को ही बराबर साथ लेकर ही चली या निर्णय लिया तो राय जरूर ली .
उनके बड़े बेटे की मृत्यु एक दुर्घटना में शादी के दो साल बाद ही हो गयी थी। रजत उस 6 माह का था। उस घटना के बाद वह पूरी तरह से टूट चुकी थी और उससे अधिक तो वह बहू जिसने पति खोया था। फिर निर्णय लिया गया कि बहू की शादी देवर के साथ कर दी जाय . एक साल के बाद शादी करवा दी गयी। बच्चा बहुत छोटा था और वह चाचा का दुलारा तो भाई के समय भी था अतः सोचा गया कि रजत का जब भी स्कूल में नाम लिखाया जाएगा तो पिता की जगह पर चाचा का ही नाम लिखाया जाय ताकि भविष्य में उसके मन में ये विचार न आये कि मेरे पिता कोई और थे। शादी के बाद एक बेटी और हुई। पिता की ओर से कभी भी कोई ऐसा व्यवहार नहीं हुआ कि कोई इस बारे में सोचे।
अब जब वह इंटर में पढ़ रहा है तब वह इस सवाल को लेकर मेरे पास आया। वह मुझे दादू ही कहता है जो अपनी दादी को कहता था।
--'दादू मुझे आपसे कुछ पूछना है?'
--'हाँ बताओ क्या बात है?'
--'दादू क्या पापा मेरे पापा नहीं है? मेरे पापा कोई और थे?'
--'ये बात तुमसे किसने कही ?'
--'ये बात मुझे कल ही दया आंटी ने बताई है कि तुम्हारे पापा तो संजय थे . ये तो तुम्हारे चाचा थे जिनसे दादू ने मम्मी की शादी उनके न रहने पर करवाई '
दया उनके घर में बहुत वर्षों से किरायेदार थीं और अब दूसरी जगह रहने लगी . ये बात सभी लोगों से कही गयी थी की इसा बच्चे को कभी ये बात न जाये लेकिन मानव मन कब क्या कर बैठे ? इस बात की आशंका तो थी कि ऐसा कभी न कभी हो सकता है। मैं भी मानसिक पर इस स्थिति को झेलने के लिए तैयार थी।लेकिन ये जरूरी तो नहीं है कि मैं सामने वाले को इस विषय मे सामने वाले को संतुष्ट कर ही सकूं।
--और दया आंटी ने क्या बतलाया?'
--'यही कि तुम इस बारे में दादू से जाकर पूछ सकते हो। मैंने मम्मी से कुछ भी नहीं पूछा है , आपसे पूछ रहा हूँ। '
--'हाँ ये सच है कि तुम्हारे पिता संजय ही थे लेकिन तुम्हारे बचपन के और मम्मी की मानसिक स्थिति को हम इतनी जल्दी बदल नहीं सकते थे कि वह चाचा से शादी कल तैयार हो जाएँ और जब तैयार हो गयीं तो ये निर्णय तुम्हारे और मम्मी के हित के लिए लिया गया . बार बार उस नाम और तस्वीरों को देख कर जो सवाल तुम उस उम्र में पूछते और मम्मी या दादू उनके उत्तर तुमको देती तो शायद वह अपने अतीत से बाहर नहीं आ पाती . इसलिए ऐसा सोचा गया था। '
--'फिर पापा का नाम किसी ने घर में क्यों नहीं लिया? '
--सिर्फ इसलिए की उस नाम पर तुम और तुम्हारी बहन बड़े होने पर जो सवाल करते उनके जवाब नहीं होता और जवाब तो फिर भी दे देते तुम्हें उनसे संतुष्ट करना और भी कठिन था।'
--'दादू ये तो ठीक नहीं हुआ न, फिर उनका नाम तो कहीं भी नहीं बचा?'
--'हाँ ये सच है लेकिन जब वो इंसान ही नहीं रहता है तो फिर नाम कौन और कितने दिन लेता? उस नाम को बार बार याद करने के बाद भी हम उसको पा नहीं सकते और फिर जो जीवित हैं उनके लिए जीना और भी मुश्किल हो जाता. तुम्हारी दादू का वह बेटा था और बड़ा बेटा उन्होंने तुम्हारे और मम्मी के लिए अपने दिल पर पत्थर रख कर, उसके साथ ही उस नाम को खुले आम लेना बंद कर दिया।एक माँ के लिए अपने बेटे को भूलना असंभव होता है लेकिन उन्होंने ऐसा किया तुम्हारे और मम्मी के लिए। '
--'मैंने तो अपने पापा की कोई तस्वीर भी नहीं देखी है। वे कैसे थे? '
--'जिसको तुमने अपने होश संभालने के बाद से पिता के रूप में है वही तुम्हारे पापा हैं। फिर से संजय को वापस यादों और बातों में लाया गया तो सब कुछ उतना सहज नहीं रह जाएगा। मम्मी फिर से उलझ जायेगी। वह इस उम्र में बी पी की मरीज हो चुकी है क्योंकि उसने सिर्फ और सिर्फ दुःख ही देखे हैं। इसलिए उसके लिए तुम ये सवाल कभी उससे मत पूछना। '
--'नहीं दादू मैं आपसे प्रॉमिस करता हूँ कि मम्मी से कभी नहीं पूछूंगा '
मैं संतुष्ट कर पायी नहीं जानती लेकिन बहुत मुश्किल काम था कि हम लोगों ने कैसे संजय के नाम को न दुहराने की कसम के साथ ये निर्णय लिया था।