मैंने अपने जीवन में पता नहीं कितने लोगों की काउंसलिंग की . उसका परिणाम भी मुझे सुखद ही देखने को मिलता हैं तो वह सुखद अनुभूति मेरे लिए किसी मेडल को जीतने जैसी लगती है। इसके लिए मुझे किसी ऑफिस में बैठ कर काम करने की जरूरत महसूस नहीं हुई और न ही मैंने कभी किया
कल शाम विशेष मेरे घर आया , विशेष मेरा कोई रिश्तेदार या फिर हमउम्र मित्र नहीं है बल्कि आज से १८ साल पहले मुझे अपनी लैब में ही मिला था. वह अपना प्रोजेक्ट करने के लिए आया था. वह ऐसे तबके से था जहाँ पर शादी जल्दी कर दी जाती थी. उसकी उम्र बहुत अधिक न थी. ६ महीने उसे मेरे साथ काम करना था. धीरे धीरे हमारी लैब के माहौल के अनुसार सब घर की तरह ही अपनी बातें शेयर करने लगते थे. धीरे धीरे उसके साथ ही पढ़ाने वाले एक मित्र से पता चला कि विशेष की शादी हो चुकी है और उसकी पत्नी उसके साथ नहीं रहती है , वह उसको छोड़ कर मायके चली गयी है और साथ में उसकी चार साल की बेटी भी है.
मेरे दिमाग ने उस टूटते हुए घर को बचाने के लिए विशेष के साथ लंच में अपने पास बैठ कर लंच करने को कहा और उस समय में हम लोग ( हम कई लोग थे जो शहर से आते थे और लंच साथ में ही लेते थे. ) विशेष लंच नहीं लाता था , वह कहीं कैंटीन में बैठ कर कुछ खा लेता. लंच बना कर कौन देता? माँ बीमार रहती थी. सुबह जल्दी नहीं उठ पाती थी. एक दिन मैंने उससे पूछ ही लिया.
'विशेष , तुम शादी क्यों नहीं कर लेते? माँ की परेशानी को समझो.'
'नहीं , मैम मेरी शादी हो चुकी है.'
'फिर तुम्हारी वाइफ कहाँ है?'
'वह अपनी मायके चली गयी है.'
'ले आओ जाकर.'
'वह नहीं आएगी और मैं लाऊंगा भी नहीं.'
'क्यों?'
'वह जो चाहती है वह मैं कर नहीं सकता, '
'वह क्या चाहती है?'
'वह चाहती है कि मैं अपनी तनख्वाह से कुछ पैसे उसे भी दूं, उसे घुमाने ले जाऊं.'
'तुम अपने तनख्वाह किसको देते हो? '
'अपनी अम्मा को, घर वही चलाती हें.'
'पत्नी को कुछ भी नहीं देते.'
'नहीं, घर में सब कुछ तो मिल रहा है, उसे पैसे की क्या जरूरत?'
'वह गाँव की है, पढ़ी लिखी भी है या नहीं.'
'यहीं कानपुर की है, हाई स्कूल तक पढ़ी है. शादी बचपन में हो गयी थी . हाई स्कूल के बाद गौना हुआ था.'
'वह गलत क्या चाहती है? उसे कभी कभी घुमाने तुम नहीं ले जाओगे तो वह किसके के साथ जायेगी.? कुछ पैसे तो उसको भी चाहिए होंगे, हर वक्त तो वह माँ से अपनी जरूरत के लिए नहीं कहेगी. उसका कुछ तो हक है तुमसे पैसे लेने का. तुम उसके जाने के बाद कभी गए उसको लेने.'
'नहीं, वह अपने से गयी है अपने से आये तो आये नहीं तो कोई जरूरत नहीं है.'
'तुम जब अपने भाई , बहन और बाकी लोगों पर खर्च करते हो तो वह कुछ कहती थी?
'नहीं, कभी उसने कुछ नहीं कहा? वह तो अपने लिए पैसे मांगती थी. '
'बस इतनी सी बात पर तुमने उसे न लाने का फैसला कर लिया, अपने आप से सोचो कि वह तुमसे नहीं मांगेगी तो किससे मांगेगी और तुम्हारी कमाई पर थोड़ा सा हक उसका भी है. '
मैं ये सारी बातें उसको धीरे धीरे बैठ कर समझाती रही और फिर एक दिन वह अपनी पत्नी को ले आया. और हमारे यहाँ से उसका प्रोजेक्ट ख़त्म हो गया. लेकिन वह कभी कभी फ़ोन से बात कर लेता था. एक दो साल बाद पता चला कि उसके घर में एक बेटे ने भी जन्म लिया है और वह अपनी पत्नी के साथ खुश है.
फिर एक लम्बे अरसे तक कोई खबर नहीं मिली. जैसे जीवन में ढेरों बच्चे आये और चले गए. कोई कहीं से और कोई कहीं से.
कल शाम विशेष घर आया. उसकी बेटी की शादी तय हो चुकी थी और यहाँ से गुजर रहा था तो आ गया और बताने लगा कि उसकी बेटी की शादी है. मुझे आना जरूर पड़ेगा. बेटा भी अब हाई स्कूल में पढ़ने लगा है और वह एक पब्लिकेशन में काम कर रहा है. उसके जाने के बाद से मैंने कितनी बार उन दिनों में उसके साथ गुजरे उसके नैराश्य के क्षणों को बार बार रिप्ले करके देखा और पाया कि अगर इंसान को सही दिशा मिल जाए और वह खुद भी चाहे तो कितने जीवन बर्बाद होने से बच जाते हैं और एक खुशहाल परिवार बना रहता है.