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मंगलवार, 4 अगस्त 2020

कजरी महोत्सव !

               

बुन्देलखण्ड में सावन के महीने का एक विशेष पर्व होता है जिसे कजरी कहा जाता है।  इस पर्व का अपने आप में बहुत महत्व है और यह सिर्फ बुन्देलखण्ड की अपनी लोक संस्कृति का प्रतीक है।
                 वैसे तो पूरा का पूरा सावन मास  ही महिलाओं विशेष रूप से घर की बेटियों से सम्बंधित पर्वों का मास कहा जाता है। रक्षाबंधन तो बहन और बेटियों को मायके आकर पर्व मनाने का अवसर होता है।  रक्षाबंधन के दूसरे दिन कजरी महोत्सव होता है।  वैसे तो ये महोत्सव के रूप में महोबा नामक स्थान पर मनाया जाता है क्योंकि कजरी का पर्व रक्षाबंधन के एक दिन बाद मनाने के पीछे तथ्य है जो कि सदियों पहले की एक ऐतिहासिक घटना के परिणाम स्वरूप कजरी रक्षाबंंधन के दूसरे दिन मनाया जाता है।



          नागपंचमी के दिन खेतों से मिटटी लाकर घर में गेंहू भिगो कर बोये जाते हैं , जिसकी संरचना भी विशेष होती है।  बीच में गोलाकार मिट्टी फैलाकर उसमें गेंहूं बोकर उसे फिर से मिट्टी से ढक दिया जाता है।  इस गोलाकार को खेत कहते हैं और इसके चारों  तरफ सकोरा या पत्ते के बने दोनों में भी मिटटी भर कर गेहूं बोकर उस खेत के चारों  तरफ रख कर एक डलिया  से ढक देते हैं।  कजरी के दिन तक इसमें बड़ी बड़ी कजरी उग आती हैं और कहीं कहीं पर इनको भुंजरियाँ भी कहते हैं। इन का रक्षाबंधन के दूसरे दिन तालाब या नदी में विसर्जन किया जाता है।  घर के बेटियाँँ या महिलायें इन कजरी को मिट्टी लेकर जाती हैं और कजरी को हाथ में पकड़ कर मिट्टी नदी या तालाब में प्रवाहित कर देती हैं।  कजरी वापस घर में लेकर आ जाती हैं और ये कजरी प्रेम और सौहाद्रता का प्रतीक मानी जाती है। छोटे अपने बड़े बुजुर्गों को कजरी देकर पैर छूते है और आशीष लेते हैं।  समवयस्क लोग आपस में कजरी का आदान प्रदान करके गले लगते हैं।  महिलाओं में भी यही होता है।  कजरी मिलन विशेष रूप से महत्व रखता है।
                 
                           कजरी विसर्जन स्थल पर चाहे वह नदी हो या तालाब मेले का आयोजन भी होता है , जहाँ पर खासतौर पर महिलाओं की वस्तुओं की बिक्री और खरीदारी होती है।  गाँव की महिलायें भी इस मेले में शामिल होने के लिए बैल गाड़ियों और ट्रैक्टर में बैठ कर आती हैं।  मेले स्थल पर झूले और कई ऐसे दर्शनीय या मनोरंजन के खेल होते हैं।  जिनसे मनोरंजन भी होता है और एक बंधे हुए माहौल से अलग तरह का सम्मिलन हो जाता है।
                         आज से 831 साल पहले दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान ने राजकुमारी चंद्रावल को पाने और पारस पथरी व नौलखा हार लूटने के इरादे से चंदेल शासक राजा परमाल देव के राज्य महोबा पर चढ़ाई की थी. युद्ध महोबा के कीरत सागर मैदान में हुआ था, जिसमें महोबा से निष्कासित  सेनापति आल्हा - उदल ने अपने देश पर आये संकट से निबटने के लिए वेश बदल कर पृथ्वीराज चौहान से युद्ध किया और उनको पराजित किया।  इस युद्ध के कारण  ही वहां पर कजरी का विसर्जन नियत दिन न हो सका और रक्षाबंधन के दूसरे दिन हुआ।  उसी विजय पर्व के प्रतीक के रूप में आज भी महोबा में सबसे बड़ा कजरी महोत्सव मनाया जाता है , जिसको सरकारी संरक्षण में आयोजित किया जाता है। 
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