ये बात मेरे घर के ही जुड़े कुछ लोगों की है , इसमें संदेह के कोई गुंजाइश नहीं है लेकिन अगर कोई ये कहे कि इतना सब सुनकर मैं चुप कैसे रही ? इसके लिए मैं कहूं कि अपनी सलाह वहीँ दी जाती है जहाँ उसका मान हो, नहीं तो दुनियां में बहुत से लोग हैं जो अपने को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं .
रीमा के संयुक्त परिवार में जुड़े कुछ रिश्तेदार एक कार्यक्रम में इकट्ठे थे . उनमें से एक परिवार का बेटा आई ए एस की तैयारी कर रहा था . ये बात सभी को पता थी। उस समय सब रिश्तेदारों के गोष्ठी चल रही थी।बच्चों को लेकर बाते हो रही थी कि किस बच्चे की पढाई अपनी मंजिल के करीब आ चुकी है और कौन अभी भी संघर्षरत है।
उनमें जिन रिश्तेदार का बेटा आईएएस की तैयारी कर रहा था , उसने प्री ही निकाला था . वह गाँव से जुड़े एक परिवार से था और उसके पिता भी एक ईमानदार कृषक थे . जिन्होंने अपनी उसी मेहनत की कमाई से ही अपने बच्चों को पढाया था . उसके मामाजी बोले - '"बस तुम आईएएस निकाल लो फिर देखो कैसे मैं पैसे बनाने की तरकीब सुझाता हूँ . तुम बस मुझे काम देते जाना और मैं करूंगा वो काम जिसको तुमने सोचा भी नहीं होगा . बस दस साल में तुम्हारे घर और घर वालों की जिन्दगी बदल जायेगी . तुम्हारे पापा ने तो कभी कुछ कर नहीं पाया तुम्हें भी वही पाठ पढ़ाएंगे।"
ऐसे लोग ही बर्बाद करने में मुख्य भूमिका निभाते हैं। बच्चे तो इस स्तर तक पहुँचते पहुँचते अपना रात दिन एक करके सब कुछ लगा देते हैं, तब उन्हें मंजिल मिलती है लेकिन यहाँ पहुँच कर दिशा भटक जाने वाले ऐसे ही लोगों के संरक्षण में रहते होंगे। तारीफ की बात ये है कि उस परिवार से जुड़े किसी भी व्यक्ति ने इस बात पर कोई सकारात्मक या नकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं जताई बल्कि हंस हंस कर उसको दुहरा रहे थे। बाकी लोगों को क्यों दोष दें ? यही लोग जब कहीं और जाते हैं तो फिर कहेंगे कि वहां कोई काम ही बिना लिए दिए होता नहीं है। आप पैसे दूसरे ढंग से कमाना चाहते हैं और उसी तरह से बच्चों को कमाने के नुस्खे सिखा रहे हैं फिर और जगह जाकर रोते क्यों है ? अब इस बात को गलत भी नहीं समझा जाता है क्योंकि हमने इसको सामाजिक शिष्टाचार में शामिल कर लिया है .
एक सरकारी नौकरी के लिए लोग लाखों रुपये देने को तैयार रहते हैं , सबसे पहले कॉल आने से पहले ही जुगाड़ खोजने लगते हैं कि कहाँ पहुँच कर सौदा पटाया जा सकता है . जब वे पैसे भर कर वहां पहुँच जाते हैं तो फिर अपने पैसे को वसूल करके और अधिक कमाने के रास्ते खुद ही निकल आते है .
रीमा के संयुक्त परिवार में जुड़े कुछ रिश्तेदार एक कार्यक्रम में इकट्ठे थे . उनमें से एक परिवार का बेटा आई ए एस की तैयारी कर रहा था . ये बात सभी को पता थी। उस समय सब रिश्तेदारों के गोष्ठी चल रही थी।बच्चों को लेकर बाते हो रही थी कि किस बच्चे की पढाई अपनी मंजिल के करीब आ चुकी है और कौन अभी भी संघर्षरत है।
उनमें जिन रिश्तेदार का बेटा आईएएस की तैयारी कर रहा था , उसने प्री ही निकाला था . वह गाँव से जुड़े एक परिवार से था और उसके पिता भी एक ईमानदार कृषक थे . जिन्होंने अपनी उसी मेहनत की कमाई से ही अपने बच्चों को पढाया था . उसके मामाजी बोले - '"बस तुम आईएएस निकाल लो फिर देखो कैसे मैं पैसे बनाने की तरकीब सुझाता हूँ . तुम बस मुझे काम देते जाना और मैं करूंगा वो काम जिसको तुमने सोचा भी नहीं होगा . बस दस साल में तुम्हारे घर और घर वालों की जिन्दगी बदल जायेगी . तुम्हारे पापा ने तो कभी कुछ कर नहीं पाया तुम्हें भी वही पाठ पढ़ाएंगे।"
ऐसे लोग ही बर्बाद करने में मुख्य भूमिका निभाते हैं। बच्चे तो इस स्तर तक पहुँचते पहुँचते अपना रात दिन एक करके सब कुछ लगा देते हैं, तब उन्हें मंजिल मिलती है लेकिन यहाँ पहुँच कर दिशा भटक जाने वाले ऐसे ही लोगों के संरक्षण में रहते होंगे। तारीफ की बात ये है कि उस परिवार से जुड़े किसी भी व्यक्ति ने इस बात पर कोई सकारात्मक या नकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं जताई बल्कि हंस हंस कर उसको दुहरा रहे थे। बाकी लोगों को क्यों दोष दें ? यही लोग जब कहीं और जाते हैं तो फिर कहेंगे कि वहां कोई काम ही बिना लिए दिए होता नहीं है। आप पैसे दूसरे ढंग से कमाना चाहते हैं और उसी तरह से बच्चों को कमाने के नुस्खे सिखा रहे हैं फिर और जगह जाकर रोते क्यों है ? अब इस बात को गलत भी नहीं समझा जाता है क्योंकि हमने इसको सामाजिक शिष्टाचार में शामिल कर लिया है .
एक सरकारी नौकरी के लिए लोग लाखों रुपये देने को तैयार रहते हैं , सबसे पहले कॉल आने से पहले ही जुगाड़ खोजने लगते हैं कि कहाँ पहुँच कर सौदा पटाया जा सकता है . जब वे पैसे भर कर वहां पहुँच जाते हैं तो फिर अपने पैसे को वसूल करके और अधिक कमाने के रास्ते खुद ही निकल आते है .